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का नाम सुपुरुषकार है। पुरुषदशासहस्रकम् - मूल शेक्सपिअरकृत "अॅज् यु लाईक । इट।" अनुवादकर्ता - रामचन्द्राचार्य । पुरुषनिश्चय - ले. नाथमुनि। दक्षिण भारत के एक वैष्णव आचार्य। ई. 19 वीं शती। न्यायतत्त्व व योगरहस्य नामक दो और ग्रंथ नाथमुनि ने लिखे हैं। पुरुष-पुंगव (भाष्य) - ले. जीव न्यायतीर्थ (जन्म 1894) नायक वाग्वीर अपनी पत्नी पर निर्बन्ध लगाता है। परंतु दूसरों की पत्नियों को स्वच्छन्दता सिखाता है। उसकी हास्योत्पादक फजीहत का वर्णन इस में किया है। "संस्कृत -साहित्यपरिषद् पत्रिका' में प्रकाशित । परिषद् के सारस्वत उत्सव में अभिनीत। " पुरुष-रमणीय - ले.जीव न्यायतीर्थ (जन्म 1894) रचनाकालसन 1947। "संस्कृत साहित्य परिषद् पत्रिका' में सन 1940 में कलकत्ता से प्रकाशित। इस प्रहसन में गीतों का समावेश। देशकालोपयोगी छायातत्त्वानुसारी घटनाएं चित्रित हैं। कथासारदो स्नातक सुबन्धु और सोमदत्त जीविका की खोज में रानी सीमन्तिनी के पास जाते हैं। वहां सुबन्धु राजपुरुष से कलह कर से प्रतिज्ञा करता है कि डाका ही डालूंगा। इतने में सीमन्तिनी से दान पाकर एक वृद्ध दम्पती निकलते हैं उन्हीं को लूटना चाहता है। वृद्ध समझाता है कि लूटने से अच्छा है सीमन्तिनी से दान लो। मित्र सोमदत्त को भार्या के वेष में ले जाकर सुबन्धु सीमन्तिनी से दान पाता है। सोमदत्त सचमुच ही स्त्री बन जाता है। पुरुषार्थ - सन 1910 मे धारवाड से चिन्तामणि सहस्त्रबुद्धे के सम्पादकत्व में यह मासिक पत्रिका प्रारंभ हुई। पुरुषार्थचिन्तामणि - ले.विष्णुभट्ट आठवले। रामकृष्ण के पुत्र । काल, संस्कार आदि पर धर्मशास्त्र के विषयों एक विशाल ग्रंथ। मुख्यतः हेमाद्रि एवं माधव पर आधारित । पुरुषार्थप्रबोध - ले.ब्रह्मानन्द भारती। ई. 16 वीं शती। रामराज सरस्वती के शिष्य । भस्म, रुद्राक्ष, रुद्र-भक्ति के धार्मिक महत्त्व पर क्रम से 4,5,6 अध्यायों में तीन भागों वाला एक विशाल ग्रंथ। पुरुषार्थरत्नाकर - ले. रंगनाथ सूरि। कृष्णानंद सरस्वती के । शिष्य। विषय- पुराणप्रामाण्य विवेक, त्रिवर्गतत्त्वविवेक, मोक्षतत्त्वविवेक, वर्णादिधर्मविवेक, नामकीर्तनादि, प्रायश्चित्त, अधिकारी, तत्त्वंपदार्थविवेक, मुक्तिगतविवेक इत्यादि। 15 तरंगों में पूर्ण। पुरुषार्थसुधानिधि - ले.सायणाचार्य। ई. 13 वीं शती। चतुर्विध पुरुषार्थ विषयक महाभारत और पुराणों के वचनों का संग्रह। कुछ विद्वान् इस के कर्ता विद्यारण्य को मानते हैं। पुरुषार्थसिद्धयुपपाद - ले.अमृतचन्द्रसूरि। समय- लगभग ई. 9 से 11 वीं शती। जैनाचार्य ।
पुरुषोत्तमक्षेत्रतत्त्वम् - ले.रघु। विषय- उडीसा का प्रसिद्ध जगन्नाथ मन्दिर। पुरुषोत्तमचम्पू - ले.नृसिंह। पुरुसिकंदरीयम् - ले. साहित्याचार्य लक्ष्मीनारायण त्रिवेदी । विषय- पुरु-सिंकदरसम्बधित ऐतिहासिक घटना। पुलस्त्य-स्मृति - ले.पुलस्त्य नामक एक धर्मशास्त्री। प्रस्तुत स्मृति का रचनाकाल (डा. काणे के अनुसार) 400 से 700 के मध्य है। वृद्ध याज्ञवल्क्य ने पुलस्त्य को धर्मशास्त्र का प्रवक्ता माना है। विश्वरूप ने शरीर-शौच के संबंध में इस स्मृति का एक श्लोक दिया है, और मिताक्षरा में भी इसके श्लोक उद्धृत किये गये हैं। अपरार्क ने इस ग्रंथ से उद्धरण दिये हैं तथा "दान-रत्नाकर" में भी मृगचर्मदान के संबंध में इस ग्रंथ के मत का उल्लेख करते हुए इसके श्लोक उद्धृत किये हैं। इस स्मृति ने श्राद्ध-प्रसंग पर ब्राह्मण के लिये मुनि
को भोजन, क्षत्रिय व वैश्य के लिये मांस तथा शूद्र के लिये मधु खाने की व्यवस्था दी गई है। पुष्टिमार्गीयाह्निकम् - ले.व्रजराज। वल्लभाचार्य के वैष्णव सम्प्रदाय के लिए उपयोगी ग्रंथ।। पुष्पचिन्तामणि - यह तांत्रिक निबन्ध 4 प्रकाशों में पूर्ण है। विविध देवीदेवताओं में से किसके पूजन के लिए कौन से पुष्प या पत्र विहित हैं और कौन से निषिद्ध हैं यह विषय इसमें विस्तार के साथ वर्णित है। पुष्पमाला - ले.रुद्रधर । विषय- देव-पूजा में प्रयुक्त होने वाले पुष्प एवं पत्तियां। पुष्पमाहात्म्यम् - पश्चिमाम्नाय, उत्तराम्नाय, सिद्धिलक्ष्मी, दक्षिणाम्नाय, नीलसरस्वती तथा उर्ध्वाम्नाय की देवियों को कौन से पुष्प चढाना, कौन से शुभफलप्रद और कौन से अशुभफलदायक हैं इसका वर्णन है। किस महीने मे महादेवजी को कौन से पुष्प चढाना चाहिये यह भी प्रतिपादित है। पुष्परत्नाकरतन्त्रम् - ले.भूपालेन्द्र नवमीसिंह। 8 पटलों में पूर्ण । विषय- पूजा में विहित एवं निषिद्ध पुष्पों का विवरण। पुष्पसूत्रम् - यह सामवेदीय प्रातिशाख्य है। रचयिता- पुष्प नामक ऋषि । इसमें 10 प्रपाठक या अध्याय हैं। इसका संबंध गर्ग संहिता से है। इसमें "स्तोभ" का विशेष रूप से वर्णन है और इन स्थलों व मंत्रों का विवरण दिया गया है जिनमें स्तोभ का विधान या अपवाद होता है। इस पर उपाध्याय अजातशत्रु ने भाष्य किया है जो प्रकाशित हो चुका है (चौखंबा संस्कृत सीरीज से, ग्रंथ व भाष्य 1922 ई. में प्रकाशित) "इसमें प्रधानतया गेयगान व अरण्यगेयगान में प्रयुक्त का ऊहन अन्य मंत्रों पर कैसे किया जाता है इस विषय का विशद विवेचन है"। पुष्पसेन-तनय-राज्यधिरोहणम् (रूपक)- ले.गोविंद जोशी।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/195
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