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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष्णु वेङ्कटेश रूप में विराजमान हैं। वे उसे उपदेश देते है कि सदैव पुरंजनी का ध्यान करने से ही तुम स्त्री बन गये हो, अब मेरा ध्यान कर मुझसे तादात्म्य प्राप्त करो। पुरंजन को अद्वैत का ज्ञान होता है। पुरन्दरविधानकथा - ले- शतसागरसूरि । जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती। पुरश्चरणम् - ले-गोपीनाथ पाठक। श्लोक- 4001 पुरश्चरणकौमुदी (1) -ले- मुकुन्द पण्डित । पिता- माधवाचार्य। श्लोक- 1305 । (2) विद्यानन्दनाथ विरचित । श्लोक- 537। पुरश्चरणकौस्तुभ - ले- अहोबल। विषय- पापनिवृत्ति करने वाले व्रतादि तथा उनकी विधियों का वर्णन । पुरश्चरणचन्द्रिका - ले- देवेन्द्राश्रम । गुरु-विबुधेन्द्राक्षम । श्लोक1300 (2) ले- माधव पाठक। (3) ले- देवेन्द्राश्रम। गुरुविबुधेन्द्राश्रम। (4) ले- काशीनाथ। पिता- जयरामभट्ट । पुरश्चरणदीपिका - (1) ले- चंद्रशेखर । ई. 16 वीं शती। 15 प्रकाशों में पूर्ण। (2) रामचंद्र। (3) विबुधेन्द्राश्रम। पुरश्चरणप्रपंच - ले- सहजानन्दनाथ। श्लोक- 250। ले- (2) ले- श्रीनिवास। श्लोक-300। पुरश्चरणबोधिनी - इसमें विविध पुरश्चरणों का विस्तार से वर्णन है। इस ग्रंथ के रचयिता प्रसिद्ध टेगौर परिवार के थे, जो महाराज यतीन्द्रमोहन टैगोर के पिता महाराज प्रद्योतकुमार टैगोर के पितामह थे। बंगला लिपि में यह मुद्रित है। रचनाशकाब्द 1735 में। पुरश्चरणरसोल्लास - देव-देवी संवाद रूप। श्लोक- 488 | पटल-101 पुरश्चरणलहरीतन्त्रम् - नारद-सुभगा संवादरूप। पटल 51 विषय- उपासक के प्रातःकाल के कृत्य, रुद्राक्ष-धारण का फल, पूजनविधि, जपविधि आदि। पुरश्चरणविधि - ले- शैव-गोपीनाथ। पिता- शैव माधव।। श्लोक- 400। विषय- पुरश्चरण, तत्संबंधी दीक्षा, गुरु और शिष्य की परीक्षा, मंत्र संस्कार इ.। पुरश्चर्याकौमुदी - ले- माधवाचार्य। पुरश्चर्या-रसाम्बुनिधि - ले- शैलजा मंत्री। श्लोक- 8791 विषय- पुरश्चरणविधि, इन्द्रादि के आवाहन की विधि, क्षेत्रपाल आदि के लिए बलिदानविधि, पापनिवृत्ति के लिए सावित्री जप की विधि, संकल्प, जप आदि का क्रम, कुल्लुका, सेतु आदि का निरूपण, जिह्वाशुद्धि की विधि, श्यामा, तारा, त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बंगला, मातंगी आदि की जपसंख्या का निरूपण, होम, तर्पण, ब्राह्मण-भोजन आदि की विधि, मंत्र के स्वप्न, जागरण आदि का निरूपण, बलिदान, रहस्यपुरश्चरण, तारिणीस्तोत्र, घोरमंत्र आदि का निर्देश, कामिनीतत्त्व मंत्रसिद्धि के लक्षण तथा उसके उपाय इ. । पुरश्चर्यार्णव - ले. नेपाल के महाराजधिराज प्रतापसिंहशाह । श्लोक 2000। ग्रंथरचना- काल वि. सं. 1831। विविध आगम, उपनिषद्, स्मृतियां, पुराण, ज्योतिषशास्त्र, शालिहोत्र तथा नाना प्रकार की पद्धतियों का भली भांति अवलोकन कर ग्रंथकार ने इसका निर्माण किया है। तरंग 12। विषय- छह आम्नायों के देवता, आम्नायों के आचार का निर्णय, दीक्षा के देश और काल, वास्तुयाग, कुण्डमण्डपादि-निर्णयपूर्वक अंकुरार्पण, दीक्षा विधि मे पुरूपूजनपूर्वक देवतापूजन, क्रियावत् दीक्षाविधि, क्रियादीक्षा-प्रयोग-पूर्वक दीक्षा के भेदों का निर्णय, सामान्य पुरश्चरणविधि, मंत्रसिद्धि के लक्षण, उपाय इ. पुराणम् - सन 1958 से राजेश्वरशास्त्री द्रविड और वासुदेवशरण अग्रवाल के संपादकत्व में इस षण्मासिक पत्रिका का वाराणसी से प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसका उद्देश्य है "आत्मा पुराण वेदानाम्" यह तथ्य प्रतिपादन करना। पुराणमीमांसा (सूत्रबद्ध)- ले. प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज। विदर्भनिवासी। ई. 20 वीं शती। पुराणसर्वस्वम् - ले. गोवर्धन । वंगवासी। 2) ले. पुरुषोत्तम । 3) ले. हलायुध। पिता- पुरुषोत्तम। ई.15 वीं शती। 4) बंगाल के जमीनदार श्री सत्य के आश्रय में संगृहीत । समयसन 1474-751 पुराणसार - ले. नवद्वीप के राजकुमार रुद्रशर्मा । पिता- राघवराय। पुराणसारसंग्रह - ले, सकलकीर्ति। जैनाचार्य। ई. 14 वीं शती। पिता- कर्णसिंह। माता- शोभा। पुरातन-बलेश्वरम् - ले. रामानाथ मिश्र। रचना सन 1957 . में। विषय- अंग्रजी प्रभाव से अपनी महिमा खोये हुए बलेश्वर नगर की ऐतिहासिक गरिमा का चित्रण । पुरुदेवचंपू - ले. अर्हद्दास (या अर्हदास), आशाधर के शिष्य। समय 13 वीं शती का अंतिम चरण। इस चंपू-काव्य में जैन संत पुरुदेव का चरित्र वर्णन है। कवि ने इस चंपू के प्रारंभ में जिन की वंदना की है और अपने काव्य के संबंध में कहा है कि उसका उद्भव भगवान् के भक्तिरूपी बीज से हुआ है। नाना प्रकार के छंद (विविध वृत्त) इसके पल्लव हैं और अलंकार पुष्प-गुच्छ हैं। उसकी रचना "कोमल-चारु-शब्द-निश्चय" से पूर्ण है, तथा गद्य की भाषा "अनुप्रासमयी समस्तपदावली" से युक्त है। इस चंपू का अंत अहिंसा के प्रभाव वर्णन से हुआ है और श्रोताओं को सभी जीवों पर दया प्रदर्शित करने की ओर मोडने का प्रयास है। इसका प्रकाशन मुंबई से हुआ है। पुरुषकारम् - ले. लीलाशुकमुनि। ई. 13-14 वीं शती। यह देवकृत "देव' नामक धातुपाठवृत्ति पर लिखा हुआ एक वार्तिक है। 2) ले. लीलाशुकमुनि। यह भोजकृत सरस्वतीकंठाभरण की व्याख्या है। इसी लेखक की लिखी हुई केनोपनिषद् की व्याख्या 194 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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