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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नक्षत्रशान्ति - ले. बोधायन । नगर-नूपूरम् (रूपक) - ले. डा. रमा चौधुरी। अंकसंख्या दस । कथासार मेखला नाम की सुन्दरी गणिका पूरे नगर को अपने नृत्य से वश कर लेती है परंतु अन्त में उसे प्रतीत होता है कि ऐहिक भोग वस्तुतः व्यर्थ है । हरिद्वार के किसी महात्मा से उपदेश ग्रहण कर वह संन्यासिनी बन जाती है। नखस्तुति - ले. मध्वाचार्य। ई. 12-13 वीं शती । स्तोत्रकाव्य । जराज- यशोभूषणम् ले. नरसिंह कवि। इस ग्रंथ की रचना विद्यानाथ कृत "प्रतापरुद्र- यशोभूषण" के अनुकरण पर की गई है। यह ग्रंथ मैसूर राज्य के मंत्री नंजराज की स्तुति में लिखा गया है। इसमें 7 विलासों में नायक, काव्य, ध्वनि, रस, दोष, नाटक व अलंकार का विवेचन है। प्रत्येक विषय के उदाहरण में नंजराज संबंधी स्तुतिपरक श्लोक दिये गए हैं। और नाटक के विवेचन में (षष्ठ विलास में) स्वतंत्र रूप से एक नाटक की रचना कर दी गयी है। इसका प्रकाशन गायकवाड ओरिएंटल सीरीज से हो चुका है। नवाद1) ले. गदाधर भट्टाचार्य 2) रघुनाथशिरोमणि । नवादीका ले. विश्वनाथ सिद्धान्तपंचानन । नटाङ्कुशम् - ले. महिमभट्ट । इस में रस तथा अभिनय पर सशक्त चर्चा तथा उनका संबंध दिग्दर्शित है। गलत प्रकार के अभिनय पर कड़ी आलोचना है। इसके उदाहरण के लिये आश्चर्यचूडामणि (शक्तिभद्र कृत) से श्लोक उद्धृत किए हैं। प्रथम श्लोक में महिम शब्द आने से यह रचना महिमभट्ट की हो ऐसा सुझाया गया है। इसमें प्रतिज्ञा यौगन्धरायण तथा वीणावासवदत्ता के साथ यौगन्धरायण और अविमारक की कुरंगी का आत्मदाह उल्लिखित है। नटेशविजयम् ( काव्य ) कवि वेङ्कटकृष्ण यज्वा । पितावेङ्कटाद्रि । ई. 17 वीं शती। सात सर्ग के इस महाकाव्य में चिदम्बर क्षेत्र के नटेश भगवान् का विलास वर्णित है । नन्दिघोषविजयम् (अपरनाम- कमलाविलास) (नाटक) ले. शिवनारायण दास इ. 16 वीं शती। पांच अङ्कों में कमला तथा पुरुषोत्तम की पारस्परिक चर्या का अङ्कन । नना- विताइनम् (रूपक) लो. डा. सिद्धेश्वर पट्टोपाध्याय । जन्म 1918 | संस्कृत साहित्य परिषद् द्वारा सन 1974 में प्रकाशित। आधुनिक तंत्र से लिखित कथासार - सूत्रधार अशौच वेष में प्रवेश कर कहता है कि नना के मरणासन्न होने से आज अभिनय न होगा। दर्शकों में से एक तरुण, एक शिक्षक तथा एक पंडित उठ कर मंचपर जा कर विचार विमर्श करते हैं तथा वैद्यों के बुलाने जाते हैं। तीनों स्वकुम्भ, मकुम्भ तथा वसुकुम्भ नामक वैद्यों को बुलाने जाते हैं। तीनों की उपाय-योजना अलग अलग रहती है। इतने में उत्तरा घोषित करती है कि नना मर गयी। अब उसके शव की - - व्यवस्था करने की चर्चा चलती है इतने में नना उठ खडी होती है। उसे प्रेताविष्ट समझ वैद्य भाग जाते हैं। उत्तरा डरती है कि जब यह मेरा गला मरोडेगी, क्यों कि उसी ने वैद्यों की सहायता से नना को विष देने की योजना बनायी थी । नन्दिकेश्वरसंहिता ले. नंदिकेश्वर। ई. पू. 4 थी शती । प्रायः भरत के समकालीन माने जाते है। इस संगीतविषयक ग्रंथ में षड्ज, ऋषम, गंधार, मध्यम और पंचम इन पाच स्वरों के निर्माता नारद और धैवत तथा निषाद के निर्माता तुंबरु थे ऐसा विशेष निर्देश किया है। अभिनयदर्पण नामक ग्रंथ के निर्माता भी नन्दिकेश्वर माने जाते हैं। नन्दिचरितम् ले कृष्णकवि । नपुंसकलिंगस्य मोक्षप्राप्तिले सत्यन्नत शास्त्री (श. 20) लघु रूपक विषय नपुंसकलिंगी शब्दों की महिमा । नरकासुरविजयम् (1) कवि- माधवामात्य । विषय कृष्णचरित्र । 2) ले. धर्मसूरि । ई. 15 वीं शती । नरपतिराजचर्या ले. नरपति। विषय- शुभाशुभ शकुन की चर्चा । नरवरशतकम् ले. तिरुवेंकट तातादेशिक । नेलोर (आंध्र ) में मुद्रित । नरसिंहपंचागंम् रुद्रयामल- तन्त्रान्तर्गत । श्लोक 468 1 नरसिंहपुराणम् इसी प्राचीन वैष्णव उपपुराण को नृसिंह अथवा नारसिंह पुराण भी कहते हैं। इसमें निम्न विषयों का समावेश है। नरसिंह को परब्रह्म मानकर उनकी स्तुति, ब्रह्मांड की उत्पत्ति काल विभाग, संसार वृक्ष का वर्णन, ज्ञानस्तुति, विष्णुपूजा, "ओम् नमो नारायणाय'' इस मन्त्र का जाप, सूर्यसोम वंशावलि, उसमें विशेषतः नरसिंहपूजक राजाओं का इतिहास, लक्षकोटि होम, विष्णु प्रतिष्ठा, वर्णाश्रम के कर्तव्य, वैष्णव तीर्थक्षेत्र, व्रत, दान, सदाचार और दुराचार । उक्त विषयों से संबंधित कथाएं भी हैं इस उपपुराण में यह पुराण सन 400 से 500 के कालखंड में प्रमुखतया नरसिंह के गुण गौरव हेतु रचा गया है। इसका अधिकांश भाग पद्य में तथा अल्प भाग गद्य में है। - - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only - नरसिंहभारतीचरितरम् ले. राजवल्लभ शास्त्री, मद्रास । शृंगेरी के शांकर पीठाधिपति स्वामी का महाकाव्यात्मक चरित्र, इ. 1936 में लिखित । नरसिंहसरस्वती मानसपूजास्तोत्रम् - कवि - श्रीगोपाल । नरसिंहाट्टहास - ले. मु. नरसिंहाचार्य । नराणां नापितो धूर्तः ले. नारायणशास्त्री काङ्कर । जयपुर निवासी । सन 1957 में "मधुरवाणी" पत्रिका में प्रकाशित । एकांकी। दृश्यसंख्या चार । कथासार निठल्ला रामकिशोर, पत्नी कमला के समझाने पर धन अर्जित करने हेतु दूसरे ग्राम को जात है। मार्ग में रात में किसी दानव से मुठभेड होती है। वह अपने थैले संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 151
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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