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से दर्पण दिखा कर दानव को डराता है कि इस थैले में कई दानव बंद हैं। उससे स्वर्णमुद्राएं प्राप्त कर वह घर लौटता है। दानव के मामा उससे निपटने आते हैं। उन्हें रामकिशोर एकदम छः दर्पण दिखाकर डराता है तथा उससे भी धन ऐंठता है। नरेशविजयम् (काव्य) - ले. वेंकटकृष्ण दीक्षित। नरेश्वरपरीक्षा-प्रकाश - ले. रामकण्ठ। श्लोक 2500 । सर्वदर्शनसंग्रहान्तर्गत शैवदर्शन में उल्लिखित नरेश्वरपरीक्षा पर टीका। नरेश्वरविवेक - ले. परमेष्ठी। नरोत्तमविलास - ले. विश्वनाथ चक्रवर्ती। नर्मभाला- (व्यंग्य काव्य ) ले. क्षेमेंद्र। ग्रंथ की रचना के उद्देश्य पर विचार करते हुए क्षेमेंद्र ने सज्जनों के विनोद को ही अपना लक्ष्य बनाया है। नर्ममाला में 3 परिच्छेद या परिहास हैं। उनमें कायस्थ, नियोगी आदि अधिकारियों की घृणित लीलाओं का सूक्ष्म दृष्टि से वर्णन है। क्षेमेंद्र ने इसमें समकालीन समाज व धर्माचार का पर्यवेक्षण करते हुए उनकी बुराइयों का चित्रण किया है, किंतु कहीं-कहीं वर्णन ग्राम्य व उद्वेगजनक हो गया है। क्षेमेंद्र की यह रचना संस्कृत साहित्य में सर्वथा नवीन क्षेत्र का उद्घाटन करनेवाली है। नलचंपू - ले. · त्रिविक्रमभट्ट। पिता- नेमादित्य। ई. 10 वीं शती। विषय- महाराज नल व भीमसुता दमयंती की प्रणय कथा । प्रस्तुत काव्य का विभाजन 7 उच्छवासों में किया गया है।
प्रथम उच्छ्वास- इसका प्रारंभ चंद्रशेखर भगवान् शंकर व कवियों के वागविलास की प्रशंसा से हुआ है। सत्काव्य-प्रशंसा, खल-निंदा व सज्जन प्रशंसा के पश्चात् वाल्मीकि व्यास, गुणाढ्य व बाण की प्रशंसा की गई है। तदनंतर वर्षा वर्णन के बाद एक उपद्रवी शूकर का कथन किया गया है जिसे मारने के लिये राजा नल आखेट के लिये प्रस्थान करता है। आखेट के कारण थके हुए नल का शालवृक्ष के नीचे विश्राम करना वर्णित है। इसी बीच दक्षिण देश से आया हुआ पथिक दमयंती का वर्णन करता है। पथिक ने यह भी सूचना दी कि दमयंती के समक्ष राजा नल की भी प्रशंसा किसी पथिक द्वारा हो रही थी। उसके रूपसौंदर्य का वर्णन सुनकर दमयंती के प्रति नल का आकर्षण होता है और पथिक चला जाता है।
द्वितीय उच्छ्वास - इसमें वर्षा काल की समाप्ति व शरद् ऋतु का आगमन, विनोद के हेतु घूमते हुए नल के समक्ष हंसों की मंडली उतरती है। उनमे से एक को नल पकड लेता है। आकाशवाणीद्वारा यह सूचना प्राप्त होती है कि दमयंती को आकष्ट करने के लिये यह हंस दूतत्व करेगा राजा दमयंती के विषय में हंस से पूछता है। हंस कुंडिनपुर के राजा भीम व उनकी रानी प्रियंगुमंजरी का वर्णन करता है।
तृतीय उच्छ्वास- रानी प्रियंगुमंजरी को दमनक मुनि के
वरदान से दमयंती कन्या होती है। उसके शैशव, शिक्षा एवं तारुण्य का वर्णन है।
चतुर्थ उच्छ्वास- हंस द्वारा दमयंती के सौंदर्य का वर्णन सुनकर राजा नल की उत्कंठा बढ़ती है। हंस-विहार, हंस का कुंडिनपुर जाना व नल के रूप-गुण का वर्णन सुनकर दमयंती रोमांचित होती है। नल के लिये सालंकायन का उपदेश, वीरसेन द्वारा सालंकायन की नीति का समर्थन, नल का राज्याभिषेक वर्णन, पत्नी के साथ वीरसेन का वानप्रस्थ अवस्था व्यतीत करने हेतु वन-प्रस्थान व पिता के अभाव में नल की उदासीनता का वर्णन है। ___ पंचम उच्छ्वास- नल के गुणों का वर्णन श्रवण कर दमयंती के मन में नल विषयक उत्कंठा होती है। वह नल को देने के लिए हंस को अपनी हारलता देती है। दमयंती के स्वयंवर की तैयारी, उत्तर दिशा में निमंत्रण देने जाने वाले दूत से दमयंती की श्लिष्ट शब्दों में बातचीत, सेना के साथ नल का विदर्भ देश से लिये प्रस्थान, नर्मदा के तट पर इंद्रादि लोकपालों द्वारा दमयंती- दौत्य-कार्य में नल की नियुक्ति। लोकपालों का दूत बनने के कारण नल चिंतित होता है, श्रुतशील नल को सांत्वना देता है।
षष्ठ उच्छ्वास में प्रभात काल और विंध्याटवी का वर्णन है। विदर्भ देश के मार्ग में दमयंती का दूत पुष्कराक्ष दमयंती का प्रणयपत्र नल को अर्पित करता है। नल व पुष्कराक्षसंवाद। पयोष्णी-तट पर सेना का विश्राम, दमयंती द्वारा प्रेषित किन्नरमिथुन द्वारा दमयंती वर्णन- विषयक गीत, रात्रि में नल का विश्राम, प्रातः अग्रिम यात्रा की तैयारी व कुंडिनपुर में नल के आगमन के उपलक्ष्य में हर्ष ।
सप्तम उच्छ्वास में नल के समीप विदर्भराज का आगमन, अन्यान्य कुशल-प्रश्न. दमयंती द्वारा भेजी गई किरात कन्याओं का नल के समीप आगमन। नलद्वारा प्रवर्तक, पुष्कराक्ष व किनरमिथुन दमयंती के पास भेजे जाते हैं। नल का मनोविनोद व औत्सुक्य, दमयंती के यहां से पर्वतक लौट कर अंतःपुर एवं दमयंती का वर्णन करता है। इंद्र के वर प्रभाव से कन्यांतःपुर में नल का प्रकट होना व दमयंती तथा उसकी सखियों का विस्मय। नल-दमयंती का अन्योन्य दर्शन व तन्मूलक रसानुभूति । नलद्वारा दमयंती के समक्ष द का संदेश सुनाया जाता है। दमयंती विषण्ण होती है। दयमंती के भवन से नल प्रस्थान करता है और उत्कंठापूर्ण स्थिति में हर-चरण-सरोजध्यान के साथ किसी भांति नल रात्रि यापन करता है।
प्रस्तुत सुप्रसिद्ध चंपू में नल-दमयंती की पूरी कथा वर्णित न होकर आधे वत्त का ही वर्णन किया गया है। यह श्रृंगारप्रधान रचना है. अतः इसकी सिद्धि के लिये अनेक काल्पनिक मनोरंजक घटनाओं की इसमें योजना की गई है। प्रस्तुत 'नलचंपू' व श्रीहर्ष-रचित 'नषेधचरित' की कथाओं व
152 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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