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धर्मसेतु - ले- तिरुमल। पराशरगोत्र । विषय- व्यवहार। लेरघुनाथ। धर्मस्य सूक्ष्मा गतिः (रूपक)- ले-वेंकटकृष्ण तम्पी। अंकसंख्या- तीन। सन् 1924 में प्रकाशित । धर्मादर्श-ले- पं. देवकृष्ण। महाराष्ट्र के संतोजी महाराज कुकरमुण्डेकर के आदेश से लिखित महाप्रबन्ध। इसमें धर्म विषयक अद्ययावत् सभी मतों का परामर्श लिया है। धर्माधर्मप्रबोधिनी - ले- प्रेमनिधि ठक्कुर । इन्द्रपति ठक्कुर के पुत्र। लेखक निजामशाह के राज्य में माहिष्मती के निवासी थे किन्तु उसने सं. 1410 (1353-54 ई.) में मिथिला में अपना निबंध संगृहीत किया। आह्निक, पूजा, श्राद्ध, अशौच, शुद्धि, विवाह, धार्मिक दान, आपद्धर्म, वैकल्पिक भोज, तीर्थयात्रा, प्रायश्चित्त, कर्मविपाक, सर्वसाधारण के कर्तव्य इत्यादि विषयों पर 12 अध्यायों में विवेचन किया है। धर्माध्वबोध - ले-रामचंद्र । धर्मानुबन्धिश्लोका - ले-कृष्णपण्डित। टीका-राम पण्डित द्वारा लिखित। धर्मामृतम् - ले-नयसेन । जैनाचार्य । ई. 12 वीं श. (पूर्वार्ध) धर्मामृतमहोदधि - ले-रघुनाथ। पिता- अनन्तदेव । धर्माम्भोधि - अनूपविलास का अपरनाम । धर्मार्णव - ले- पीताम्बर। काश्यपाचार्य के पुत्र । धर्मोदयम् (नाटक) - ले- धर्मदेव गोस्वामी। असम-निवासी। रचनाकाल 1770 ईसवी। रंगपर में अभिनीत । विषय-अहोम राजा लक्ष्मीसिंह (1769-1780 ई.) द्वारा मंडिया ग्राम की प्रजा के विद्रोह के शमन की ऐतिहासिक कथा। संस्कृत संजीवनी सभा, नालवाडी (आसाम) में प्राप्य । धर्मोपदेश - पं. रामनारायण शास्त्री के सम्पादकत्व में बरेली • में सन् 1883 से यह मासिक पत्रिका संस्कृत-हिन्दी में प्रकाशित
की जाती थी। धातुकल्प - ले- धन्वंतरि। विषय- आयुर्वेद ।। धातुचिन्तामणि - ले- हर्षकुलमणि । ई. 16 वीं शती। लेखक ने स्वकृत कविकल्पद्रुम पर लिखी हुई यह टीका है। धातुपाठ - अर्थ सहित धातुपाठ के प्राच्य, उदीच्य और दाक्षिणात्य ऐसे देशभेदानुसार तीन प्रकार हैं। मैत्रेय प्रभृति की व्याख्या प्राच्य पाठ पर है। क्षीरस्वामी प्रभृति की वृत्ति उदीच्य पाठ पर है और पाल्यकीर्ति आचार्य का प्रवचन संभवतः दाक्षिणात्य पाठ पर है। जिस धातुपाठ का प्रकाशन चन्नवीर कवि की कत्रड टीका के साथ हुआ है, वह काशकृत्स्रकृत धातुपाठ माना जाता है। (2) ले- अनुभूतिस्वरूपाचार्य । धातुपाठतरंगिणी - ले- हर्षकीर्ति। ई. 17 वीं शती। धातुपारायणम् - ले- हेमचन्द्राचार्य। स्वकृत धातुपाठ पर
हेमचंद्राचार्य की यह अपनी टीका है। श्लोक- 5600। हेमचंद्र ने इसका संक्षेप भी लिखा है। (2) ले- पूर्णचंद्र। ई. 12 वीं शती। चांद्र व्याकरण की प्रणाली के अनुसार यह धातुपाठ है। (3) ले- देवनन्दी। यह पाणिनीय धातुपाठ की व्याख्या है। पाणिनीय धातुपाठ का अपर नाम है 'दण्डकपाठ' । धातुप्रत्ययपंजिका - ले- हरयोगी। (नामान्तर- प्रोलनाचार्य) ई. 12 वीं शती। धर्मकीर्ति नामक विद्वान ने भी इसी नाम का अन्य ग्रंथ लिखा है। धातुप्रदीप - ले-मैत्रेयरक्षित। ई. 11-12 वीं शती। पाणिनि के "धातुपाठ" पर भाष्य। धातु-प्रबोध - ले. कालिदास चक्रवर्ती। ई. 18 वीं शती उत्तरार्ध । धातुमाला - ले. षष्ठीदास विशारद । ई. 18 वीं शती उत्तरार्ध । धातु-रत्नाकर - ले. नारायण बन्दोपाध्याय। ई. 17 वीं शती। यह एक पद्यमय व्याकरण ग्रंथ है। धातुरूपभेद - ले. दशबल (अथवा वरदराज) विषयआख्यातों का अर्थबोध। धातुविवरणम् - ले. पाल्यकीर्ति धातुवृत्ति - ले. सायणाचार्य। इसमे लेखक ने धातुपाठ का निर्धारण आत्रेय, मैत्रेय, पुरुषकार, न्यासकार इनके अनुसार किया है। पाणिनीय धातुपाठ में चिरकाल से अव्यवस्था अथवा विपर्यास हो गया था। सायणाचार्य ने अपनी धातुवृत्ति में स्वमतानुसार पाठों का परिवर्तन परिवर्धन और शोधन किया है। धातवत्ति सधानिधि - ले. सायणाचार्य। 13 वीं शती। पाणिनीय धातुपाठ की विस्तृत टीका। प्रस्तुत ग्रंथ में हेलाराज, भट्ट-भास्कर, क्षीरस्वामी, शाकटायन, पतंजलि, भागुरि, कैयट, हरदत्त, जयादित्य इत्यादि प्राचीन वैयाकरणों का यत्र तत्र उल्लेख किया है। शब्दशास्त्र विषयक ज्ञानकोश के समान इसका महत्त्व है। धारायशोधारा - लें. दिगंबर महादेव कुलकर्णी । संस्कृताध्यापक। न्यू इंग्लिश स्कूल, सातारा। मालव प्रदेश तथा उसके इतिहास का वर्णन। धीर-नैषधम् (नाटक) - ले. म.म. रामावतार शर्मा। जन्म 1874 ई.। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् से रामावतार शर्मा ग्रंथावलि में प्रकाशित। यह कवि के विद्यार्थिकाल की रचना है। अंकसंख्या सात। नल-दमयन्ती की कथा को नया रूप देने का लेखक ने प्रयास किया है। धूतावतीदीपदानपूजा - रुद्रयामलान्तर्गत, शिव-पार्वती संवादरूप । विषय- धूमावती देवी के निमित्त प्रज्वलित दीपदान और पूजाविधि । धूतावतीपंचागंम् - श्लोक 3251 धूर्तनाटकम् - सामराज दीक्षित। ई. 17 वीं शती (उत्तरार्ध) मथुरानिवासी। प्रथम अभिनय भगवान् नरकेसरी की यात्रा के अवसर पर हुआ था। कथासार- नायक मूढेश्वर अपने शिष्य
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 149
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