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(2) ले- गदाधर। पिता- राघवेन्द्र। पितामह- धीरसिंह ।। तंत्रराज - (1) ले- काशीराम भट्टाचार्य विद्यावाचस्पति । शारदातिलक का व्याख्यान। यह व्याख्यान शारदातिलक के (2) (कादिमत) श्लोक- 40401 विषय- विद्या-प्रकरण, 25 वें प्रकाश (भुवनप्रकाश) तक पूर्ण है।
दक्षिणाम्नाय, उत्तराम्नाय, भाषा की सृष्टि और स्थिति, स्वप्नावती (3) ले- मैत्रेयरक्षित। ई. 12 श.। यह काशिकावृत्ति पर माहात्म्य, मधुमती का सिद्धिप्रकार, ककारादि का फल, मंत्रादि लिखित "न्यास" की विद्वत्तापूर्ण विपुल व्याख्या व्याकरण के निर्माण की विधि, श्रीचक्र के दर्शन का माहात्म्य, व्यापकादि महाभाष्य के आधार पर लिखी गई है।
व्यास, कामकलाध्यान इ. अमाय, अनहंकार इ. 10 प्रकार के तंत्रप्रदीपोद्योतनम् - ले- नन्दन मिश्र न्यायवागीश। पिता
पुष्प, अहिंसा इन्द्रियनिग्रह इ.5 प्रकार के पुष्प, 64 उपचार धनेश्वर। अन्य हस्तलेखानुसार पिता-बाणेश्वर मिश्र। कलकत्ता
तथा 16 उपचारों का उल्लेख। में इसका प्रथमाध्याय विद्यमान है। यह तंत्रप्रदीप की टीका है। तंत्रराज की टीकाएं (1)- मनोरमा - ले-सुभगानन्दनाथ । तंत्रप्रमोद - ले- श्रीरामेश्वर। पिता- रामभद्र। श्लोक- 268 |
इन का वास्तविक नाम श्रीकण्ठेश था। ये काश्मीर महाराज पटल-7। विषय- कुण्ड-निर्णय, सुवादि- अग्निसंस्कार, होमविधि,
के कर्मचारी थे। प्रपंचसारसिंह नाम से भी इनकी प्रसिद्धि थी। संक्षेप-होमविधि, हवनीय वस्तुओं के परिणाम, संक्षेप-दीक्षाविधि
इसकी पूर्ती प्रकाशानन्द ने की।
(2) सुदर्शना - ले-प्रेमानिधि पन्त की तृतीय पत्नी प्रेममंजरी। तंत्रभूषा - ले- श्रीकाशीनाथ। पिता- भडोपनामक जयराम । (3) - शिवराम कृत टीका।। विषय- तंत्रों की वेदमूलकता का प्रतिपादन।
तंत्रलीलावती - ले-कर्णसिंह । पटल- 5। तंत्रमणि - ले- काशीश्वर । पटल-4। विषय- गुरु और शिष्य तंत्रसंक्षेपचन्द्रिका - ले- भवानीशंकर बंद्योपाध्याय। (ग्रंथ की के लक्षण, कुल-अकुल चक्रों का विचार, राशिचक्र, दीक्षा पुष्पिका में वंद्यघटीय भवानीशंकरदेव विरचिता लिखा है।) का योग्य समय, माला-संस्कार, पुरश्चरण, दीक्षा-प्रयोग, सकल विषय- गुरु-शिष्य लक्षण, साधक के कर्तव्य, अकडमचक्र, मंत्रों की गायत्री, सामान्य पूजापद्धति। सब मन्त्रों के बीज, राशिचक्र और कुलाकुलचक्र का निरूपण, दीक्षाकाल, मालानिर्णय, तारा-पूजा प्रयोग, मंत्र सिद्धि के उपाय, बलिदान विधि इ.। मंत्र के 10 संस्कार, तान्त्रिक संध्या, गायत्री, दुर्गादि की पूजा, तंत्ररक्षामणि - ले- राजचूडामणि दीक्षित। ई. 17 वीं शती। पुरश्चरण, अन्नपूर्णा इ. के मंत्र- श्यामापूजा प्रकरण, ऋष्यादि टीकाग्रंथ। (2) ले- दिङ्नाग। ई. 5 वीं शती।
न्यासों का निरूपण, दुर्गाशतनामस्तोत्र, श्यामास्तोत्र, शिवस्तुति, तंत्ररत्नम् (1) नामान्तर- तंत्रदीपिका - ले.- नवद्वीपनिवासी
कवच इ.। संक्षेपहोम, कूर्मादिचक्रों का निरूपण, सर्वतोभद्र कृष्ण विद्यावागीश भट्टाचार्य । पटल- 51 विषय- अनेक प्रधान
मंडल। पंचायतनी दीक्षा, कुण्ड-विधान इत्यादि। तंत्रों का अवगाहन और विवेचन कर उनका सारभूत उत्तम ग्रंथ ।
तंत्रसमुच्चय (1) - ले- नारायण। श्लोक 53600। इसमें (2) ले- श्रीकृष्ण विद्यावागीश। श्लोक 1800। पटल
मंदिर का पताका और वन्दनवारों से सजाना, द्वार पर कलश 5। विषय- चक्रविचार, दीक्षाकाल नियम, सर्वतोभद्रमण्डलादि,
आदि का पूजन, अग्नि की उत्पत्ति, शय्यापूजन, शयनपट आदि सांगोपाग पूजनविधि, मातृकान्यास इ. ।
की स्थापना, बिम्ब की विशुद्धि आदि कर्मों का निरूपण है। (3) ले- आनन्दनाथ। गुरु-सहजानन्द । विविध तंत्रों का
(2) - ले-रविजन्मा। श्लोक- 1500। यत्नपूर्वक अवलोकन कर ग्रंथकार ने इसमें श्रीचक्रविधि लिखी
तंत्रसमुच्चय (3) - विषय- मंदिर निर्माण की विद्या । अन्नमलै है। विषय- कौलिकोपनिषत् कौलिकस्वरूप, आत्मरहस्य,
विश्वविद्यालय के डा. एन. व्ही. मलय्या ने इसके आधार पर कौलिक-प्रतिष्ठा, कौलिकों में शक्ति की प्रधानता, कौलीश्वरों के
शोधकार्य कर, "स्टडीज इन् संस्कृत टेक्स्टस् ऑन टेंपल लक्षण एवं पंचमकारविधि, विविध शक्तियों का निरूपण इ. ।
आर्किटेक्चर विथ रेफरन्स टू तंत्रसमुच्चय" है शोध प्रबन्ध (4) ले. शिवराम। विषय- गुरु और शिष्य के लक्षण,
लिखा जो प्रकाशित हुआ है। नक्षत्रचक्र, अकथचक्र, अकडमचक्र, ऋणि-धनिचक्र, विद्यारम्भ
तंत्रसार (1) - ले-अभिनवगुप्त। श्लोक- 772 । में वार और तिथि का नियम, नक्षत्र, लग्न, पक्ष और मास . (2) ले- कृष्णानन्द । विषय- योगिनी- साधन, कामेश्वरीसाधन, का निर्णय, मंत्र-नमस्कार, दीक्षा-प्रयोग, उपदेश, पंचायतनी बगलामुखी, कर्णपिशाचीमंत्र, मंजुघोषा, मातंगी, उच्छिष्ट-चाण्डाली, दीक्षा, पुरश्चरण, कूर्मचक्र, ग्रहण के समय के पुरश्चरण का धूमावती, भद्रकाली, उच्छिष्ट-गणेश इत्यादि के मंत्र । संकल्प, विष्णुगायत्री, गोपाल-गायत्री इ.।
(3) - ले- सिद्धनार्थ। श्लोक- 288 । (5) ले.- पार्थसारथि मिश्र । ई. 10 वीं अथवा 11 वीं (4) - ले- मध्वाचार्य। ई. 12-13 श.। शती। पिता- यज्ञात्मा।
तंत्रसारपरिशिष्टम् - ले- यतिवर। विषय- गुरुविचार। यदि (6) ले- नरोत्तम शुक्ल।
गुरुकुल का व्यक्ति छोटी अवस्था का भी हो तो भी उसे
122/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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