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अथवा ज्ञानवृद्ध ब्राह्मण अपने से कनिष्ठ हो तो भी उसे गुरु बना लेना चाहिए। दीक्षा का समय, दीक्षायोग्य मंत्र का विचार, मंत्र के दस संस्कार, आगमतत्त्वविलास में उक्त दीक्षाविधि, मंत्रचैतन्य, मंत्रेन्द्रियज्ञान, सप्तांग पुरश्चरण, ग्रहण व्यवस्थादि, कलियुग में होम का निषेध, मिश्रित आचार, गुरु-ध्यान, गायत्री-ध्यान इ.। तान्त्रिक संध्या, विशेष पूजा, अन्तर्यागमुद्रा, तांत्रिक लिंगपूजा, काम्यपूजादि, दीपान्वित पूजा की व्यवस्था रटन्तीपूजा-व्यवस्था, अजपामन्त्रप्रयोगादि, सीता, राम इ. के मंत्र, ताराष्टक का व्याख्यान कवच इ.। तंत्रसारपूजापद्धति - विषय- मध्वाचार्यकृत तंत्रसार के अनुसार मध्वाचार्य के उपास्य देवता लक्ष्मीनारायण देव की पूजापद्धति । तंत्रसारसंग्रह - ले-द्वैत-मत के प्रतिष्ठापक मध्वाचार्य। यह वैष्णव पूजा-अर्चा एवं दीक्षा का वर्णनपरक ग्रंथ है। तंत्रसिद्धान्तकौमुदी - ले- काशीनाथ। पिता- भडोपनामक . श्रीजयरामभट्ट। माता- वाराणसी। प्रकार- 3 | विषय- शाम्भव, शाक्त और आणव उपाय । तंत्रसिद्धान्त- दीपिका- दुरूह- शिक्षा - ले- अप्पय्य दीक्षित (तृतीय)। ई. 17 वीं शती। तंत्रहृदयम् - ले- काशीनाथ। पिता- भडोपनामक जयरामभट्ट । श्लोक- 1501 विषय- दक्षिणाचार। इस पर ग्रंथकार की खररचित टीका है। तंत्राधिकार - विषय- पंचरात्र तंत्रों का प्रामाण्य सिद्ध करना । तंत्राधिकारिनिर्णय - ले- भट्टोजि। श्लोक- 6241 विषयपंचरात्र मत के अनुयायियों द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले तांत्रिक अधिकारों का अनुसन्धान । तंत्रालोक - ले- अभिनवगुप्त। टीकाकार- जयरथ। संपूर्ण तांत्रिक वाङ्मय में यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माना गया है। तंत्रोक्तचिकित्सा - ले-शिव-पार्वती संवाद रूप। श्लोक 888। विषय- बहुत से रोगों की औषधियों के साथ जगद्वशीकरण, वीर्यकरण, स्थूलीकरण, सर्वविषहरण, स्त्रीवन्ध्यात्वहरण इ.। तपोलक्षणपक्तिकथा - ले- श्रुतसागरसूरि । जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती। तपोवैभवम् (रूपक) - ले-नित्यानंद। कलकत्ता की संस्कृत साहित्य-परिषत् पत्रिका में प्रकाशित। परिषद् में अभिनीत । लेखक के पिता रामगोपाल स्मृतिरत्न का चरित्र इसमें वर्णित है। कथानक की दृष्टि से यह रूपक अनूठा है। इसमें नायक रामगोपाल का गंभीर अध्ययन, उनकी पत्नी दीनतारिणी की पति के अनुकूल दिनचर्या, नायक का स्वामी सच्चिदानन्द का शिष्य बनना, अन्त में देवी से साक्षात्कार पाना आदि घटनाएं चित्रित हैं। तप्तमुद्राविद्रावणम् - ले-भास्कर दीक्षित । पिता- उमा महेश्वराचार्य श्लोक- 1600।
तंरगिणी - सन 1958 में उस्मानिया विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. आर्येन्द्र शर्मा के सम्पादकत्व में विश्वविद्यालयीन पत्रिका के रूप में प्रकाशित की जाने लगी। इसमें शोध-परक निबन्धों के अलावा हास्य, व्यंगप्रधान कविताओं का भी प्रकाशन हुआ। पत्रिका के मुखपृष्ठ पर अजन्ता आदि के प्राचीन चित्रों की अनुकृति प्रकाशित होती है। तंरगिणीसौरभ - ले-वनमाली मिश्र । तत्त्वभारतम् (काव्य) - ले-चित्रभानु । तर्क-ताण्डवम् - लें- व्यासराय। (अपरनाम- व्यासतीर्थ) माध्व-मंत की गुरु-परंपरा में 14 वें गुरु जो द्वैत-संप्रदाय के 'मुनित्रय' में समाविष्ट होते हैं। इस ग्रंथ का मुख्य विषय है न्याय-वैशेषिक के सिद्धातों का परीक्षण एवं खंडन। अतः इसमें उदयन की 'कुसुमांजलि', गंगेश के 'तत्त्व-चिंतामणि' आदि प्रौढ न्याय-ग्रंथों का प्रखर खंडन किया गया है। न्यायामृत के अद्वैत-खंडन तक नैयायिक-गण व्यासराय की प्रशंसा में मुखर थे। किन्तु प्रस्तुत 'तर्क-ताण्डव' को देख उन्होंने अपना रोष 'न्यायामृतार्जिता कीर्तिः ताण्डवेन विनाशिता' इस वचन से प्रकट किया, ।" प्रमाण का स्वरूप, संख्या, लक्षण आदि विषयों का गंभीर विश्लेषण इस ग्रंथ की विशेषता है। तर्कभाषा - ले- केशव मिश्र । ई. 13 वीं शती। न्यायदर्शन का प्रसिद्ध लोकप्रिय ग्रंथ। प्रस्तुत ग्रंथ में न्याय के पदार्थो का अत्यंत सरल ढंग से वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ विद्वानों व छात्रों में अत्यंत लोकप्रिय है। इस पर 14 टीकाएं लिखी गई हैं। गोवर्धन, केशव मिश्र के शिष्य थे। उनकी टीका का नाम है 'तर्कभाषा-प्रकाश'। इस टीका में गोवर्धन ने अपने गुरु का परिचय भी दिया है। नागेश्वर भट्ट ने भी 'तर्कभाषा' पर 'युक्ति-मुक्तावलि' नामक टीका लिखी है। इसका हिंदी विवरण आचार्य विश्वेश्वर ने किया है। तर्कभाषाप्रकाश - ले- 16 वीं शताब्दी में गोवर्धन नामक नैयायिक द्वारा अपने गुरु केशवमिश्र के तर्कभाषा नामक ग्रंथ पर लिखी गई प्रसिद्ध टीका। तर्करहस्यदीपिका (व्याख्या) - ले-आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्त शिरोमणि। तर्कशास्त्रम् - ले- वसुबन्धु । विषय- बौद्धन्याय का विवेचन । इसमें वाक्य के पंचावयव, जाति एवं निग्रहस्थान का क्रमशः वर्णन है। ई. 550 में परमार्थ द्वारा इसका चीनी अनुवाद हुआ। तर्कसंग्रह - ले- अन्नंभट्ट । तर्कसंग्रहटीका - ले- नीलकंठ। (2) रुद्रराम । तर्कामृतम् - ले-जगदीश भट्टाचार्य तर्कालंकार । ई. 17 वीं शती । तर्जनी - ले- दुर्गादत्त शास्त्री। निवास- कांगडा जिला (हिमाचल प्रदेश) में नलेटी नामक गाव । इस काव्य में 11 अध्याय है।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 123
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