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हिंसा तथा पाप एकत्रित होते हैं। तभी धर्म वहाँ पहुंचकर चतुरर्थी - ले-अज्ञात। कई महत्त्वपूर्ण श्लोकों के चार अर्थ 'विश्वकल्याणमस्तु' भरत वाक्य सुनाता है।
इसमें दिए हैं। चण्डभास्करपताका - ले- दामोदर शास्त्री। श्लोक-300। चतुर्दण्डीप्रकाशिका - ले-व्यंकटमखी। (वेंकटमखी) ई.स.
1625 में तंजौर के राजा विजयराघव नायक की आज्ञा से चण्डरोषणमहातन्त्रम् - कल्पवीराख्य नीलतन्त्रान्तर्गत ।
कर्नाटक संगीतशास्त्र पर लिखा हआ ग्रंथ। इस ग्रंथ को अध्यायसंख्या 251
दक्षिण के संगीतज्ञों में अत्यंत प्रतिष्ठा प्राप्त है। छह अध्यायों चण्डानुरंजनम् (प्रहसन) - ले-घनश्याम । समय- 1700-1750
के इस ग्रंथ में रागों के स्थायी, आरोही, अवरोही और संचारी ई.। बीभत्स व्याभिचार का वर्णन इस रूपक में है।
नामक चार भाग किए हैं। वीणा वादन विषयक चर्चा विशेष चण्डिकानवाक्षरी-मन्त्रप्रकाशिका - ले-विद्याचरण। श्लोक
रूप से की है। 300।
चतुर्भाणी - ले- इसमें 4 भाणों का संग्रह है। इनके नाम चण्डिकार्चनक्रम - ले-कृष्णनाथ ।
हैं, वरवरुचिकृत उभयाभिसारिका शूद्रककृत पद्मप्राभृतक, ईश्वरदत्त चण्डिकार्चनचन्द्रिका - ले-वृन्दावन शुक्ल ।
कृत धूर्तविटसंवाद, श्यामिलकृत पादताडितक। चण्डिकार्चनदीपिका - ले-काशीनाथभट्ट। पिता- जयरामभट्ट । भाण संस्कृत साहित्य के दश रूपकों में से एक रूपक विषय- नवरात्रोत्सव के संबंध में कर्तव्य और नवरात्रोत्सव का है। भाण रूपक मे धूर्त, विश्वासधातकी, शृंगारी आदि नीच वर्णन।
व्यक्तियों का वर्णन होता है। विट उसका नायक होता है तथा चण्डिकाशतकम् - (नामान्तर चण्डीशतकम्) ले- बाणभट्ट। वह अपने या दूसरे व्यक्ति के साहसी कार्यों का वर्णन करता ई-7 वीं शती। सुप्रसिद्ध स्तोत्र काव्य ।
है। इसमें एक अंक तथा दो संधियां होती हैं। रंगभूमि पर चण्डीकुचपंचशती - ले-लक्ष्मणार्य। स्तोत्रकाव्य ।
एक ही पात्र उपस्थित होकर वह अन्य काल्पनिक पात्रों से चण्डीटीका - ले-कामदेव कविवल्लभ। श्लोक- 1000।
संभाषण करता है। भाण रूपक में श्रृंगार या वीररस प्रधान
होता है। चतुर्भाणी के संपादक डॉ. मोतीचंद्र के अनुसार चण्डीनाटकम् - ले-भारतचन्द्र राय। ई. 18 वीं शती। इसका समय ई. 4-5 वीं शताब्दी है। गुप्तकालीन भारत की कलकत्ता से भारतचन्द्र ग्रन्थावली में वंग संवत् 1308 में । सामाजिक एवं सांस्कृतिक अवस्था समझने के लिए इस ग्रंथ प्रकाशित । प्राकृत के स्थान पर बंगाली तथा हिन्दी भाषा का का महत्त्व माना जाता है। चतुर्भाणी का, हिंदी अनुवाद सहित प्रयोग इस नाटक की विशेषता है। बंगाली गीत विविध रागों प्रकाशन, हिंदी ग्रंथ रत्नाकर मुंबई से हुआ है। डॉ. वासुदेव
और तालों में दिये हैं। असम के 'अंकिया नाट' से मिलती। शरण अग्रवाल व डॉ. मोतीचंद्र चतुर्भाणी के अनुवादक एवं जुलती रचना है।
प्रकाशक है। चण्डीपुराणम् - ले- मार्कण्डेयमुनि। विषय- दक्ष को शाप, चतुर्वर्गसंग्रह - ले- क्षेमेन्द्र। ई. 11 वीं शती। पितासती के देहत्याग से उत्पन्न पीठों का माहात्य, मधुकैटभ, प्रकाशेन्द्र। इसमें चतुर्विध पुरुषार्थों की चर्चा की है। दुन्दुभि, घोर, नमुचि, क्षुर, महिषासुर सुन्दोपसुन्द और मुर इन चतुर्मतसारसंग्रह - ले- अप्पय दीक्षित । श्लोक- 600। दैत्यों का वध तथा सनत्कुमारोपाख्यान ।
चतुर्विंशतिमतम् - इस धर्मग्रंथ में मनु, याज्ञवल्क्य, अत्रि, चण्डीप्रयोगविधि - ले-नागोजिभट्ट। श्लोक- 462।
विष्णु, वसिष्ठ आदि चोबीस धर्मशास्त्रज्ञों के उपदेशों का सार कात्यायनीतन्त्रान्तर्गत।
ग्रंथित हुआ है। इसीलिये ग्रंथ का नामकरण (चतुर्विंशतिमत) चण्डीरहस्यम् - ले-नीलकण्ठ दीक्षित । ई. 17 वीं शती। यह
सार्थक हुआ है। भक्तिकाव्य है।
चतुर्वेदोपनिषद् - ले- इसे महोपनिषद् भी कहते हैं। इस चण्डीविधानम् - ले-श्रीनिवास । श्लोक- 8001
ग्रंथ के प्रारंभ में सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार है:
आदिनारायण के माथे पर से जो पसीना हुआ उससे जल चण्डीविधानपद्धति - ले- कमलाकरभट्ट ।
निर्माण हुआ। उसमें से ब्रह्मदेव का आविर्भाव हुआ। ब्रह्मदेव चण्डीसपर्याकल्प - ले-श्रीनिवासभट्ट। श्लोक- 1100।
ने जब पूर्वाभिमुख होकर ध्यान किया तब ऋग्वेद तथा गायत्री चण्डीसपर्याक्रमकल्पवल्ली - ले- श्रीनिवासभट्ट। श्लोक
छन्द निर्माण हुए। इसी प्रकार पश्चिमाभिमुख, उत्तराभिमुख तथा 15461 स्तबक विषय- नवाक्षर मंत्र देवीमाहात्म्य, चण्डीपूजा दक्षिणाभिमुख होकर ध्यान किया तब क्रमशः यजुर्वेद तथा में अभिषेक, तर्पण, अर्चन, आसन, विविध न्यास पीठपूजा, त्रिष्टुभ छन्द, सामवेद तथा जगती छन्द और अर्थवेद तथा मानसपूजा, नैमित्तिकार्चन इत्यादि।
अनुष्टुभ् छन्द की उत्पत्ति हुई। चण्डीस्तोत्रप्रयोगविधि - ले-नागोजिभट्ट। श्लोक- 5601 चतुःशतक - ले- बौद्धपंडित आर्यदेव। पिता- सिंहलद्रीप के
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 103
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