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अपने इस राष्ट्र के ऐतिहासिक एवं अर्वाचीन सभी सात्त्विक सत्पुरुषों का स्वाभाविक व्यक्तिमत्त्व रामायणीय आदर्शवाद के कारण बना हुआ है। इस देश के रीतिरिवाजों पर रामायणीय घटनाओं का दृढ प्रभाव पड़ा हुआ है। कहते हैं कि बिहार की कुछ देहाती जातियों में आज भी ससुराल जाने के बाद लड़की फिर कभी मायके नहीं आती, ना वह मायके बुलाई जाती। इस सामाजिक रूढि का मूलकारण बताते हुए अपने बिहारीबंधु रामायण का प्रमाण देते हैं। वे कहते हैं, "सीतामाई ससुराल गई तो फिर मायके नहीं आई"।।
रामायण का प्रभाव हमारे हिंदु समाज पर के कितना गहरा हो चुका है इसके और भी अनेक प्रमाण दिये जा सकते हैं। रामायण हमारे राष्ट्रीय सामाजिक और पारिवारिक जीवन में घुल मिल गया है। रामायण का प्रत्येक सात्त्विक व्यक्तिमत्त्व, हमारे लिए अपना निजी पारिवारिक व्यक्तिमत्त्व सा हुआ है, उन्हें जो अप्रिय था वह हमें अप्रिय है। रामायण के व्यक्तित्त्व हमारे लिए केवल वाङ्मयीन या साहित्यिक व्यक्तित्त्व नहीं हैं अपि तु उन्हें हमारे भावविश्व में पवित्रतम और प्रियतम स्थान प्राप्त हुआ है। भारतीय हिंदुओं के भावविश्व में प्रभु रामचंद्र को जो परमोच्च स्थान प्राप्त हुआ है, उसी प्रकार भारत-बाह्य जिन देशों की
जनता ने अपने भावविश्व में उन्हें परमोच्च स्थान दिया है; वे देश एक दृष्टि से भारत की सांस्कृतिक चतुःसीमा में समाविष्ट हो जाते हैं। तिब्बत, खोतान, सयाम, जावा, बलिद्वीप, सिंहलदीप इत्यादि पौरस्त्य राष्ट्रों में, हिंदुस्थान के राष्ट्रीय धर्म का प्रचार न होते हुए भी प्राचीन कालसे आजतक रामकथा का महत्त्व संपूर्ण समाज में मान्य हुआ है।
5 रामकथा का विश्वसंचार ई. तीसरी सदी से चीन देश में बौद्ध साहित्य के द्वारा रामकथा का परिचय हुआ। तिब्बत में आठवीं शती में, खोतान में नौवी शती में, हिंदचीन एवं कांबोडिया में छठी शती में, जावा में पांचवीं शती में, मलाया में सत्रहवीं शती में और बर्मा
में अठराहवीं शती में, रामायण कथा का प्रथम परिचय हुआ। रांची के ईसाई विद्वान डॉ. कामिल बुल्के ने अपने शोधप्रबंध में इस संबंध में भरपूर जानकारी दी है। डॉ. बुल्के के प्रबंध में अन्यान्य पौरस्त्य देशों में प्रचलित रामायण ग्रंथों के नाम इस प्रकार दिये है :
काम्बोडिया : रेयाम केर (राम कीर्ति) यह ग्रंथ प्राचीन ख्मेर भाषा में लिखा है।
सयाम : रामकियन और रामजातक। बर्मा : रामयत् रामयागन् (लेखक यूतो)। मलाया : हिकायत सेरिराम । जावा : रामकेकेलिंग, रामायण काकाविन (लेखक योगीश्वर); तिब्बत : रामायण। इन परदेशीय रामायणों में मूल वाल्मीकीय रामकथा में यत्र तत्र परिवर्तन किया है। भारत मे भी बौद्ध और जैन परम्परा में प्रचलित रामकथा में काफी हेर फेर किया गया है। इन देशों की शिल्पकला, चित्रकला, नृत्य-नाट्यकला इत्यादि सांस्कृतिक अंगों पर रामचरित्र का भरपूर प्रभाव दिखाई देता है। सयाम का प्राचीन राजा सुमन मुनि (अथवा आटंग) ने जो नई राजधानी निर्माण की, उसको नाम दिया अयोध्या। वह राजा अपने लिए "रामाधिपति" यह उपाधि धारण करता था। जावा में नौवीं शर्ती में “परमवनम्" (ब्रह्मवन) में एक शिवमंदिर का निर्माण हुआ जिस पर सर्वत्र रामायणीय घटनाओं का शिल्पांकन और चित्रांकन किया है। 12 वीं शती में कांबोडिया के राजा सूर्यवर्मा ने अंगकोरवाट में एक अतिविशाल मंदिर का निर्माण किया। इस मंदिर में सर्वत्र रामायण (और साथ में महाभारत तथा हरिवंश) की घटनाओं को शिल्पांकित किया है। सयाम के रामनाटकों का प्रभाव 18 वीं शती से बर्मा के नाट्य प्रेमियों पर
भी पड़ने लगा। महर्षि वाल्मीकि के प्रति कृतज्ञता पूर्ण भक्तिभाव व्यक्त करने के लिए 7 वीं शताब्दी में हिंदचीन के राजा प्रकाशधर्म ने आदिकवि वाल्मीकि को भगवान् विष्णु का अवतार मान कर, उनका विशाल मंदिर निर्माण किया। भारत में वाल्मीकि के ही “अवतार" माने गये। राजशेखर अपने बालरामायण (महानाटक) की प्रस्तावना में
"बभूव वल्मीकभवः कविः पुरा, ततः प्रपेदे भुवि भर्तमेण्ठताम्।
स्थितः पुनर्यो भवभूतिरेखया स वर्तते सम्प्रति राजशेखरः ।। इस श्लोक में वाल्मीकि की जो कल्पित अवतार-परंपरा बताई, तदनुसार भर्तमेण्ठ, भवभूति और स्वयं राजशेखर वाल्मीकि के “अवतार" थे। परंतु यह अवातर-परंपरा राजशेखर तर ही सीमित नहीं है। भारत के सभी प्रादेशिक साहित्यों के इतिहास में संपूर्ण मध्ययुगीन साहित्य पर, आध्यात्मिक दृष्टि से कवियों की रामभक्ति का एवं वाङ्मयीन दृष्टि से मूल वाल्मीकि के
आदिकाव्य का, इतना गहरा संस्कार दिखाई देता है कि, उस कालखण्ड में भारत के सभी प्रदेशों में मानो "वाल्मीकि के अवतार" ही प्रकट हुए थे। तामिल भाषा में कम्ब रामायण, तेलगु में रंगनाथ रामायण और भास्कर रामायण, प्रेमानंद और प्रीतमदास का गुजराती में रामायण, कन्नड भाषा में पम्प रामायण, मलयालम में एज्युतच्चन का अध्यात्मरामायण, बांगला भाषा में कृतिवासा का रामायण, असमिया में माधवकंदली का रामायण, उडिया भाषा में सारलादास तथा बलरामदास का रामायण, व्रज भाषा में केशवदास की रामचंद्रिका, अवधी भाषा में तुलसीरामायण, आधुनिक हिंदी में मैयिलीशरण गुप्त का साकेत काव्य, पंजाबी में गुरुगोविंदसिंह का गोविंद-रामायण, मराठी में संत एकनाथ का भावार्थ रामायण, श्रीधर का रामविजय, समर्थ रामदास का युद्धकांड, मोरोपंत के 108 रामायण और नवकवि माडगूलकर का लोकप्रिय गीतरामायण इत्यादि रामायण ग्रंथ उन उन
78/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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