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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवपूजा के उपचार :- जल, आसन, आचमन, पंचामृत, अनुलेप (या गन्ध), आभूषण, दीप और कर्पूर से आरती, नैवेद्य, ताम्बूल, नमस्कार, प्रदक्षिणा इत्यादि। विवाह के धार्मिक कृत्य :- वधूवर गुणपरीक्षा, वरप्रेषण, वाग्दान, मण्डपवरण, नान्दीश्राद्ध एवं पुण्याहवाचन, वधूगृहगमन, मधुपर्क, स्नापन, परिधायन एवं सन्नहन, समंजन, प्रतिसरबन्ध, वधूवर-निष्क्रमण, परस्पर-समीक्षण, कन्यादान, अग्निस्थापन एवं होम, पाणिग्रहण, लाजाहोम, अग्निपरिणयन, अश्मारोहण, सप्तपदी, मूर्धाभिषेक, सूर्योदीक्षण, हृदयस्पर्श, प्रेक्षकानुमंत्रण, दक्षिणादान, गृहप्रवेश, धृवारुंधती-दर्शन, हरगौरीपूजन, आर्द्राक्षतारोपण, मंगलसूत्रबंधन, देवकोत्थापन एवं माण्डपोद्वासन। इन विविधकृत्यों में मधुपर्क, होम, अग्निप्रदक्षिणा, पाणिग्रहण, लाजाहोम एवं आर्द्राक्षतारोपण विधि महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। व्रतों में आवश्यक कुछ कर्तव्य :- स्नान, संध्यावंदन, होम, देवतापूजन, उपवास, ब्राह्मणभोजन कुमारिका-विवाहिता का भोजन, दरिद्रभोजन, दान, गोप्रदान ब्रह्मचर्य भूमिशयन, हविष्यान्नभक्षण, इ.। धर्मशास्त्र में निर्दिष्ट महत्त्वपूर्ण व्रत उत्सव :- नागपंचमी, व मनसा पूजा रक्षाबन्धन, कृष्णबन्धन, कृष्णजन्माष्टमी, हरतालिका, गणेशचतुर्थी, ऋषिपंचमी, अनन्तचतुर्दशी, नवरात्रि (या दुर्गोत्सव), विजया दशमी, दीपावलि, भातृद्वितीया (या यमद्वितीया) मकरसंक्रान्ति, वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि, होलिका एवं ग्रहण, अक्षय्य तृतीया, व्यासपूजा, तथा रामनवमी इत्यादि। भूतबलि के अधिकारी :- कुत्ता, चाण्डाल, जातिच्युत, महारोगी, कौवे, कीडे मकोडे इत्यादि । भोजन के पूर्व इन को अन्न देना चाहिए। श्राद्ध के विविध प्रकार :- नित्य, नैमित्तिक, पार्वण, एकोद्दिष्ट, प्रतिसांवत्सरिक, मासिक, आमश्राद्ध (जिस में बिना पका हुआ अन्न दिया जाता है) हेमश्राद्ध। (भोजनाभाव में, प्रवास में, पुत्रजन्म में, या ग्रहण में हेमश्राद्ध किया जाता है। स्त्री तथा शूद्र हेमश्राद्ध कर सकते हैं।) धृवश्राद्ध, आभ्युदयिक, नान्दीश्राद्ध, महालयश्राद्ध, आश्विन कृष्णपक्ष में किये जाते हैं। मातामह श्राद्ध (या दौहित्र प्रतिपदाश्राद्ध), अविधवा नवमीश्राद्ध (कृष्णपक्ष की नवमी को होता है) जीवच्छाद्ध (जीवश्राद्ध) संघातश्राद्ध (किसी दुर्घटना में अनेकों की एक साथ मृत्यू होने पर किया जाता है) वृद्धिश्राद्ध, सपिण्डन, गोष्ठश्राद्ध, शुद्धिश्राद्ध कर्मांग, दैविक, यात्राश्राद्ध, पुष्टिश्राद्ध, इ. षण्णवति श्राद्ध नामक ग्रंथ (ले. गोविंद और रघुनाथ) में एक वर्ष में किये जानेवाले 96 श्राद्धों का विवरण है। श्राद्ध में निमंत्रण योग्य पंक्तिपावन ब्राह्मण के गुण :- त्रिमधु (मधु शब्द युक्ततीन वैदिक मंत्रों का पाठक) त्रिसुपर्ण का पाठक, त्रिणाचिकेत एवं चतुर्मेध (अश्वमेघ, पुरुषमेध, सर्वमेध, एवं पितृमेध) के मंत्रों का ज्ञानी, पांच अग्नियों को आहुति देने वाला, ज्येष्ठ साम का ज्ञानी, नित्य वेदाध्यायी, एवं वैदिक का पुत्र ।। दान योग्य पदार्थ :- (उत्तम)- भोजन, गाय, भूमि, सोना, अश्व, एवं हाथी इ.। (मध्यम)- विद्या, गृह, उपकरण, औषध इ.। (निकृष्ट)- जूते, हिंडोला, गाडी, छाता, बरतन, आसन, दीपक, फल, जीर्णपदार्थ इ. उपपातक (सामान्य पापकर्म) :- गोवध, ऋणादान (ऋण को न चुकाना), परिवेदन (बडो भाई से पहले विवाह करना) शुल्क लेकर वेदाध्यापन, स्त्रीहत्या, निंद्य जीविका, नास्तिकता, व्रतत्याग, माता-पिता का निष्कासन, केवल अपने लिए भोजन बनाना, स्त्रीधन पर उपजीविका, नास्तिकों के ग्रंथों का अध्ययन इत्यादि (ऐसे उपपातक पचास तक बताए गये हैं। ब्रह्मबन्धु (केवल जातिमात्र से ब्राह्मण) के प्रकार :- शूद्र एवं राजा का नौकर, जिसकी पत्नी शूद्र है, ग्रामपुरोहित, पशुहत्या से जीविका चलानेवाला, एवं पुनर्विवाहिता का पुत्र । भूमि की अशुद्धता के कारण :- प्रसूति, मरण, प्रेतदहन, विष्ठा, कुत्ते, गधे तथा सूअरों का स्पर्श, कोयला, भूसी, अस्थि एवं राख का संचय (इन कारणों से दूषित भूमि की शुद्धि संमार्जनादि उपायों से करना आवश्यक है) मंगल वृक्ष :- अश्वत्थ, उदुम्बर, प्लक्ष, आम्र, न्यग्रोध, पलाश, शमी, बिल्व, अमलक, नीम, इ. तीर्थयात्री को गंगा तटपर त्यागने योग्य कर्म :- शौच, आचमन, केशशृंगार, अघमर्षण सूक्तपाठ, देहमर्दन, क्रीडा, कौतुक, दानग्रहण, संभोग, अन्यतीर्थों की प्रशंसा, वस्त्रदान, ताडन, तीर्थजल को तैर कर पार करना। पवित्रस्थान :- सरोवर, तीर्थस्थल, ऋषिनिवास, गोशाला एवं देवमंदिर, गंगा, हिमालय, समुद्र और समुद्र मे मिलनेवाली नदियाँ, पर्वत (श्रीमद् भागवत में पुनीत पर्वतों के 27 नाम दिये हैं (भाठ 5-19-16) अग्निहोत्र शाला इ.। नर्मदा के प्रमुख उपतीर्थ :- महेश्वर (ओंकार), शुक्लतीर्थ (चाणक्य को यहां सिद्धि प्राप्त हुई थी), भृगुतीर्थ, जामदग्न्यतीर्थ (समुद्रसंगम का स्थान) अमरकण्टक पर्वत, माहिष्मती (ओंकार मांधाता), भृगुकच्छ (भडोच)। गया के उपतीर्थ :- अश्मप्रस्थ (प्रेताशिला) निरविन्द-गिरि, क्रौंचपदी, ब्रह्मकूप, प्रभास (मुण्डपृछ) उत्तरमानस, उद्यन्त पर्वत, अगस्त्य कुण्ड, फल्गुतीर्थ, महाबोधि वृक्ष, गदालोल, भरताश्रम, अक्षयवट, रामशिला । __संस्कृत में धर्मशास्त्र विषयक वाङ्मय चार प्रकार का है- 1) सूत्र वाङ्मय, 2) स्मृतिवाङ्मय, 3) उपस्मृति ग्रंथ और 4) निबन्ध ग्रंथ । संपूर्ण धर्मशास्त्रीय ग्रंथों की संख्या बहुत बड़ी है। प्रस्तुत कोश में बहुसंख्य ग्रंथों का निर्देश यथाक्रम हुआ है। सस्कृत वाङमय कोश - प्रथकार खण्ड/41 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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