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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दस प्रकार अवतारों की लिस्य, कूर्म, वरना इत्यादि कृष्णाजिन, शा दस यज्ञयात्र या यज्ञायुध - रूप्य, कपाल, अग्निहोत्रवहणी, शूर्प, कृष्णाजिन, शम्भा, उलूखल, मुसल, दृषद और उपला। इनके अतिरिक्त सुरु जुहू उपधृत ध्रुवा, इडापात्र, पिष्टोद्वपनी इत्यादि अन्य पात्रों का भी उपयोग यज्ञकर्म में होता है। विष्णु के दश अवतार - मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि। श्रीमद्भागवत पुराण में विष्णु के अवतारों की संख्या 24 बताई है। दस प्रकार के ब्राह्मण - (पांच गौड और पांच द्रविड) अथवा देवब्राह्मण, मुनिब्राह्मण, द्विजब्राह्मण, क्षत्रब्राह्मण, वैश्यब्राह्मण, शूद्रब्राह्मण, निषादब्राह्मण, पशुब्राह्मण, म्लेच्छब्राह्मण और चांडालब्राह्मण ।। अद्वैती संन्यासियों की. दस शाखाएं - तीर्थ, आश्रम, वन, अरण्य, गिरि, पर्वत, सागर, सरस्वती, भारती एवं पुरी। दस महादान - सुवर्ण, अश्व, तिल, हाथी, दासी, रथ, भूमि, घर, दुलहिन एवं कपिला गाय (सोने या चांदी का दान, दाता के बराबर तोलकर ब्राह्मणों को दिया जाता है, तब उसे तुलापुरुष नामक महादान कहते है। पापमुक्ति के दस उपाय - (1) आत्मापराध स्वीकार, (2) मंत्रजप (3) तप (4) होम, (5) उपवास (6) दान (7) प्राणायाम (8) तीर्थयात्रा (9) प्रायश्चित्त और (10) कठोर व्रतपालन। अशुद्ध को शुद्ध करने वाली दस वस्तुएं - जल, मिट्टि, इंगुद, अरिष्ट (रीठा), बेल का फल, चांवल, सरसों का उवटन, क्षार, गोमूत्र और गोबर। विवाह योग्य 11 नक्षत्र -रोहिणी, मृगशीर्ष, मघा, उत्तरा-फाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा, हस्त, स्वाती, मूल, अनुराधा एवं रेवती। 12 देवतीर्थ - विन्ध्य की दक्षिण दिशा में 6 नदियाँ- गोदावरी, भीमरथी, तुंगभद्रा, वेणिका, तापी और पयोष्णी। विध्य की उत्तर दिशा में 6 नदियाँ- भागीरथी, नर्मदा, यमुना, सरस्वती, विशोका, वितस्ता, (चंद्र-सूर्य ग्रहण के काल में इन देवीों में स्नान श्रेयस्कर माना है। बारह ज्योतिर्लिंग- सौराष्ट्र में सोमनाथ । (आन्ध्र कुर्नूल जिले में श्रीशैल पर) मल्लिकार्जुन। मध्यप्रदेश (उज्जयिनी) में महाकाल। ओंकारक्षेत्र में (मध्यप्रदेश में नर्मदा तट पर) परमेश्वर। हिमालय में केदार। महाराष्ट्र (पुणे के पास) भीमशंकर। वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में विश्वेश्वर । महाराष्ट्र में (नासिक के पास) त्र्यम्बकेश्वर । चिताभूमि में (बिहार) बैद्यनाथ। दारुकावन में नागेश। सेतुबन्ध में (तामिळनाडु) रामेश्वर। महाराष्ट्र में (औरंगाबाद के पास) घृष्णेश्वर । चौदह विद्याएं - 4 वेद, 6 वेदांग, पुराण, न्याय, मीमांसा एवं धर्मशास्त्र । (इन में आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद और अर्थशास्त्र मिलाकर 18 विद्याएँ भी मानी जाती हैं, जिनका अध्ययन ब्रह्मचर्याश्रम में आवश्यक माना जाता है। आयुर्वेदादि चार उपवेद छोड़ कर अन्य 14 धर्मज्ञान के प्रमाण माने जाते हैं। काशी में विद्यमान 14 महालिंग - ओंकार, त्रिलोचन, महादेव, कृत्तिवास, रत्नेश्वर, चन्द्रेश्वर, केदार, धर्मेश्वर, वीरेश्वर, कामेश्वर, विश्वकर्मेश्वर, माणिकर्णीश, अविमुक्त एवं विश्वेश्वर । सोमयाग के 16 पुरोहित - होता, मैत्रावरुण, अच्छावाक, ग्रावस्तुत, अध्वर्यु, प्रतिप्रस्थाता, नेष्टा, उन्नेता, ब्रह्मा, ब्राह्मणाच्छंसी, अग्निध्र, पोता, उद्गाता, प्रस्तोता, प्रतिहर्ता, और सुब्रह्मण्य । सोलह संस्कार - गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, चौल, उपनयन, चार वेदव्रत, गोदान, समावर्तन, विवाह और अंत्योष्टि । 18 प्रकार की शान्तियाँ - अभयशान्ति, सौम्य, वैष्णवी, रौद्री, ब्राह्मी, वायवी, वारुणी, प्राजापत्य, त्वाष्ट्री, कौमारी, आग्नेयी, गान्धर्वी, आंगिरसी, नैर्ऋती, याम्या, कौबेरी, पार्थिवी एवं ऐन्द्री. इन शान्तियों के अतिरिक्त विनायक शान्ति (या गणपतिपूजा), नवग्रह, उग्ररथ (षष्ट्यन्दिपूर्तिनिमित्त), भैमरथी, (70 या 75 वर्षों की आयु पूर्ण होने पर, अमृतामहाशान्ति, उदकशान्ति, वास्तुशान्ति, पुष्याभिषेकशान्ति इत्यादि शान्तियाँ धर्मशास्त्र में कही हैं। चैत्र से लेकर बारह मासों की 24 एकादशियों के क्रमशः नाम – कामदा, वरुथिनी। मोहिनी, अपरा। निर्जला, योगिनी । शयनी, कामदा। पुत्रदा, अजा। परिवर्तिनी, इन्दिरा। पापांकुशा, रमा। प्रबोधिनी उत्पत्ति। मोक्षदा, सफला। पुत्रदा, षट्तिला। जया, विजया। आमर्दकी (आमलकी), पापमोचनी। इनमें शयनी (आषाढी और प्रबोधिनी (कार्तिकी) एकादशी का उपोषणादि व्रत सर्वत्र मनाया जाता है। वैश्वदेव के देवता :- अग्नि, सोम, अग्निष्टोम, विश्वेदेव, धन्वन्तरि, कुहू, अनुमति, प्रजापति, द्यावापृथिवी, स्विष्टकृत् (अग्नि), वासुदेव, संकर्षण, अनिरुद्ध, पुरुष, सत्य, अच्युत, मित्र, वरुण, इन्द्र इंद्राग्नी वास्तोष्पति, इ. | गृहस्थाश्रमी को भोजन के पूर्व इन देवताओं को भोजन समर्पण करना चाहिये। 40/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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