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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यतियों के छः कर्तव्य - भिक्षाटन, जप, ध्यान, स्नान, शौच और देर्वाचन। जल स्नान के छः प्रकार - नित्य, नैमित्तिक, काम्य, क्रियांग, मलापकर्षण एवं क्रियास्नान । गौण स्नान - मन्त्र, भौम, आग्नेय, वायव्य, दिव्य एवं मानस। ये स्नान रोगियों के लिए बताये गए हैं। नारियों एवं शूद्रों के लिए वर्जित छः कार्य - जप, तप, संन्यास, तीर्थयात्रा, मन्त्रसाधन और देवताराधन । संवत् प्रवर्तक छः महापुरुष - युधिष्ठिर, विक्रम, शालिवाहन, विजयाभिनन्दन, नागार्जुन एवं कल्कि। सात सोमयज्ञ - अग्निष्टोम, उक्थ्य, षोडशी, वाजपेय, अतिरात्र और आप्तोर्याम। सात पाकयज्ञ - अष्टका, पार्वण-स्थालीपाक, श्राद्ध, श्रावणी, आग्रहायणी, चैत्री, आश्वयुजी। सात हविर्यज्ञ - अग्न्याधान, अग्निहोत्र, दर्शपूर्णमास, आग्रायण, चातुर्मास्य, निरूढपशुबन्ध एवं सौत्रामणि। पूजनीय सप्तर्षि - कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, एवं वसिष्ठ-अरुंधती । ऋषि पंचमी व्रत में इनका पूजन होता है। श्राद्ध में आवश्यक सात विषयों की शुचिता - कर्ता, द्रव्य, पत्नी, स्थल, मन, मन्त्र एवं ब्राह्मण। अस्पृश्यता न मानने के स्थान - मंदिर, देवयात्रा, विवाह यज्ञ और सभी प्रकार के उत्सव, संग्राम और बाजार । पुनर्भू - (अर्थात् पुनर्विवाहित "विधवा") के सात प्रकार - (1) विवाह के लिए प्रतिश्रुत कन्या, (2) मन से दी हुई, (3) जिसकी कलाई में वर के द्वारा कंगन बांध दिया है। (4) जिसका पिता द्वारा जल के साथ दान दिया हो, (6) जिसने वर के साथ अग्निप्रदक्षिणा की हो और (7) जिसे विवाहोपरान्त बच्चा हो चुका हो। इनमें प्रथम पांच प्रकारों में वर की मृत्यु अथवा वैवाहिक कृत्य का अभाव होने के कारण, इन कन्याओं को "पुनर्भू" (अर्थात पुनर्विवाह के योग्य) माना जाता है। सात प्रकार से पापियों से संपर्क - यौन, स्रौव, मौख, एकपात्र में भोजन, एकासन, सहाध्ययन, अध्यापन । न्यास के सात प्रकार - हंसन्यास, प्रणवन्यास, मातृकान्यास, मन्त्रन्यास, करन्यास, अंतास और पीठन्यास। सात मोक्षपुरी - अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवन्तिका (उज्जयिनि), एवं द्वारका। (27 या 28) नक्षत्रों के 7 विभाग - (1) ध्रुवनक्षत्र उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी। (2) मृदु नक्षत्र अनुराधा, चित्रा, रेवती, मृगशीर्ष। (3) क्षिप्र नक्षत्र - हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित्। (4) उग्र नक्षत्र - पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढा, पूर्वाभाद्रपदा, भरणी, मघा। (5) चर नक्षत्र - पुनर्वसु श्रवण, धनिष्ठा, स्वाती, शतभिषक् । (6) क्रूर नक्षत्र - मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा आश्लेषा। (7) साधारण - कृत्तिका, विशाखा। प्रमुख आठ यज्ञकृत्य - (1) ऋत्विग्वरण (2) शाखाहरण, (3) बहिराहरण (4) इध्माहरण (5) सायंदोह (6) निर्वाप (7) पत्नीसनहन और (8) बर्हिरास्तरण। आठ गोत्र संस्थापक - विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वसिष्ठ, कश्यप और अगस्त्य । प्रत्येक गोत्र के साथ 1,2,3 या 5 ऋषि होते हैं, जो उस गोत्र के प्रवर कहलाते हैं। धर्मशास्त्र के अनुसार सगोत्र एवं सप्रवर विवाह वर्जित माना जाता है। आठ प्रकार के विवाह - ब्राह्म, प्राजापत्य, आर्ष, दैव, गान्धर्व, आसुर, राक्षस एवं पैशाच। संन्यास लेने के पूर्व करने योग्य आठ श्राद्ध - दैव, आर्ष, दिव्य, मानुष, भौतिक, पैतृक, मातृश्राद्ध और आत्मश्राद्ध । आठ दान के पात्र - माता-पिता, गुरु, मित्र, चरित्रवान व्यक्ति, उपकारी, दीन, अनाथ एवं गुणसंपन्न व्यक्ति। व्रतों के आठ प्रकार - तिथिव्रत, वारव्रत, नक्षत्रव्रत, योगव्रत, संक्रान्तिव्रत, मासव्रत, ऋतुव्रत और संवत्सरव्रत । दुष्ट अन्न के आठ प्रकार - जातिदुष्ट, क्रियादुष्ट, कालदुष्ट, संसर्गदुष्ट, सल्लेखा, रसदुष्ट, परिग्रहणदुष्ट और भवदुष्ट । भूमिशुद्धि के आठ साधन - संमार्जन, प्रोक्षण, उपलेपन, अवस्तरण, उल्लेखन, गोक्रमण, दहन, पर्जन्यवर्षण । तांत्रिक पूजा में उपयुक्त आठ मण्डल - (1) सर्वतोभद्र मंडल, (2) चतुर्लिंगतोभद्र (3) प्रासाद (4) वास्तु (5) गृहवास्तु (6) ग्रहदेवतामंडल (7) हरिहरमंडल (8) एकलिंगतोभद्र। पितरों की नौ कोटियाँ - अग्निष्वात्त, बर्हिषद, आन्यव, सोमप, रश्मिप, उपहूत, आयुन्तु, श्राद्धभुज एवं नान्दीमुख। तांत्रिक क्रिया में आवश्यक नौ मुद्राएं -अर्थात् हस्तक्रियाएं - आवाहनी, स्थापिनी, सन्निधापिनी, सन्निरोधिनी, संमुखीकरणी, सकलीकृती, अवगुण्ठनी धेनुमुद्रा, महामुद्रा । पाप के नौ प्रकार - अतिपातक, महापातक, अनुपातक, उपपातक, जातिभ्रंशकर, संकरीकरण, अपात्रीकरण, मलावह और प्रकीर्णक। नौ प्रकार के कालमान - ब्राह्म, दैव, मानुष, पित्र्य, सौर, सायन, चान्द्र, नाक्षत्र एवं बार्हस्पत्य (व्यवहार में इनमें से अंतिम पांच ही प्रयुक्त होते हैं। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 39 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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