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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पापमुक्ति के चार उपाय चार प्रकार की तांत्रिक वानप्रस्थों के चार प्रकार वैखानस, उदम्बर, वालखिल्य एवं वनवासी। आहार की दृष्टि से दो प्रकार (पक्वभोजी) और (2) अपचमानक (अपना भोजन न पकानेवाले) ऐसे दो प्रकार भी माने जाते हैं। वानप्रस्थाश्रमी के लिए आवश्यक श्रौत यज्ञ (1) आग्रायण इष्टि, (2) संन्यासियों के चार प्रकार = - - - - व्रत, उपवास, नियम और शरीरोत्ताप । दीक्षा क्रियावती, वर्णमयी, कलावती एवं वेधमयी । -- - - भारत में मान्य चार युग चार प्रकार के प्रलय नित्य, नैमित्तिक, प्राकृतिक तथा आत्यंतिक सभी कर्मों के लिए शुभवार सोम, बुध, गुरु, एवं शुक्र । धार्मिक कृत्य करने के लिए विचारणीय चार तत्त्व - तिथि, नक्षत्र, करण एवं मुहूर्त (इनमें मुहूर्त का महत्व सर्वश्रेष्ठ है) - - www.kobatirth.org - - विवाह के योग्य चार नक्षत्र रोहिणी, मृगशीर्ष, उत्तरा फाल्गुनी एवं स्वाति । तिथिवर्ज्य चार कर्म षष्ठी को तैल, अष्टम को मांस, चतुर्दशी को सुरकर्म और पूर्णिमा अमावस्या को मैथुन। चार धाम बदरीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वर एवं द्वारका। जीवन में इन धामों की यात्रा होना आवश्यक है । उत्कल (उडिसा) के चार महत्त्वपूर्ण तीर्थ - चक्रतीर्थ (भुवनेश्वर), शंखतीर्थ (जगन्नाथ पुरी), पद्मतीर्थ (कोणार्क), गदाक्षेत्र (जाजपुर ) । वेदमंत्रों के पांच विभाग विधि, अर्थवाद मन्त्र, नामधेय और प्रतिषेध । यज्ञ के पांच अग्नि (1) आहवनीय (2) गार्हपत्य (3) दक्षिणाग्नि (इन्हें प्रेता तीन पवित्र अग्नियां कहते है।) (4) औपासन एवं (5) सभ्य । पंचाग्नि आराधना करने वाले गृहस्थाश्रमी ब्राह्मण को "पंक्तिपावी" उपाधि दी जाती है। पंच महायज्ञ दैव, पितृ, मनुष्य, भूत एवं ब्रह्म । पांच मानस व्रत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अकल्कता ( अकुटिलता) | देवता पंचायतन विष्णु, शिव, सूर्य, देवी और गणेश । इन पांच देवताओं की स्थापना में जो देवता केंद्र स्थान में स्थापित हो, उसके नाम से पंचायतन कहा जाता है। चक्र हैं : दुर्गापूजा में प्रयुक्त पांच चक्र राजचक्र, महाचक्र, देवचक्र वीरचक्र एवं पशुचक्र (इन के अतिरिक्त तांत्रिक साधना में उपयुक्त अकडमचक्र, ऋणधन शोधनचक्र, राशिचक्र, नक्षत्रचक्र इ. सब तांत्रिक चक्रों में श्रीचक्र प्रमुख एवं प्रसिद्ध है ।) संन्यासी के भिक्षान्न के पांच प्रकार माधुकर, प्राक्प्रणीत, अयाचित, तात्कालिक एवं उपपन्न । पंचामृत दुग्ध, दधि घृत, मधु एवं शर्करा । पंचगव्य - गाय का दूध, दही, घृत मूत्र और गोबर इनका विधियुक्त मिश्रण इसीको "ब्रह्मकूर्व" कहते हैं। ब्रह्महत्या, सुरापान, चोरी, गुरुपत्नी से संभोग और महापातकी से दीर्घकाल तक संसर्ग । पापफल के पांच भागीदार - कर्ता, प्रयोजक, अनुमन्ता, अनुग्राहक, एवं निमित्त । पांच महापातक वाराणसी के पांच प्रमुख तीर्थस्थान दशाश्वमेध घाट, लोलार्क (एक सूर्यतीर्थ), केशव, बिन्दुमाधव एवं मणिकर्णिका । जगन्नाथपुरी के पांच उपतीर्थं मार्कण्डेय सरोवर, वटकृष्ण, बलराम, महोदधि (समुद्र) एवं इन्द्रद्युम्न सर । मानव धर्मशास्त्र के अनुसार काल की पांच इकाईयां 2 नाडिका मुहूर्त 30 मुहूर्त पंचांग के पांच अंग अहोरात्र । तिथि, वार, नक्षत्र, योग, एवं करण । तिथियों के पांच विभाग - नन्दा (1,6,11) भद्रा (2,7,12) विजया (3,8,13) रिक्ता (4,9,14 ) पूर्णा - (5, 10, पूर्णिमा) चातुर्मास्य, (3) तुरायण एवं ( 4 ) दाक्षायण (अमावस्या पूर्णिमा के दिन ये यज्ञ करना चाहिए ) विद्वत्परमहंस और विविदिषु) कुटीचक, बहूदक, हंस, और परमहंस (परमहंस के दो प्रकार कृत, त्रेता, द्वापर एवं कलि (या तिष्य) = - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (1) पचनामक For Private and Personal Use Only - 18 = निमेष काष्ठा । 30 काष्ठा = कला। 40 कला नाडिका । = दिन के पांच भाग प्रातः संगव, मध्याह्न, अपराह्न और सायाह्न (संपूर्ण दिन 15 मुहूर्तों में बांटा जाता है। दिन का प्रत्ये भाग तीन मूहुर्तों का रहता है । (श्राद्ध के लिए आठवें से बारहवें तक के पांच पुहूर्त योग्य काल हैं । छः प्रकार का धर्म वर्णधर्म, आश्रमधर्म, गुणधर्म, निमित्तधर्म और साधारण धर्म । दिन के छः कर्म - स्नान, संध्या, जपहोम देवतापूजन एवं अतिथिसत्कार। ब्राह्मण के षट् कर्म यजन, याजन, अध्ययन, अध्यापन, दान एवं प्रतिग्रह । 38 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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