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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समय-ई. 17 वीं शती। ग्रंथ-दशवैकालिक-दीपिका (सं. 1691) - "अब्दुल-मर्दन" (2) "प्रतिकार" नामक दो नाटक (रचनाकाल (श्लोक 3450) स्तम्भतीर्थ (खंभात) में लिखित । सन् 1933 के लगभग) (3) काकदूतम् (4) चायगीता । समरपुंगव दीक्षित - पिता-वेंकटेश । माता-अनंतम्मा । गुरु-अप्पय सांबशिव - ई. 18 वीं शती। मद्रास के गोपालसमुद्र नामक दीक्षित। समय-ई. 16 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध । ग्राम के निवासी। शृंगारविलास नामक भाण के रचयिता । "तीर्थ-यात्रा-प्रबंध-चम्पू" के रचयिता। इन्हीं का दूसरा ग्रंथ सांब दीक्षित हारीत - ई. 20 वीं शती। कर्नाटक-निवासी । "आनंदकंद-चम्पू" है (जो अप्रकाशित है)। ये वाधूल गोत्रीय पिता- दामोदर । व्याकरण में निपुण। श्रौत तथा स्मार्त कर्मकाण्ड ब्राह्मण थे। इनका जन्म दक्षिण के वटवनाभिधान नामक नगर के मर्मज्ञ। कृतियां- नित्यानन्दचरित (काव्य), अग्निसहस्र व में हुआ था। भ्राता-सूर्यनारायण। "तीर्थ-यात्रा-प्रबंध-चम्पू" का महागणपति-प्रादुर्भाव (नाटक)। प्रकाशन, काव्यमाला (36) निर्णय सागर प्रेस, मुंबई से 1936 सागरनन्दी - इनके प्रमुख ग्रन्थ का नाम हैई. में हो चुका है। "नाटकलक्षण-रत्नकोश"। सर्वप्रथम 1922 ई. में सिल्वां लेवी सरफोजी भोसले - तंजौर के व्यंकोजीराव भोसले के द्वितीय ने नेपाल से प्राप्त पाण्डुलिपि के आधार पर इसका प्रकाशन पुत्र । समय-ई. 18 वीं शती। रचना-कुमारसम्भवचम्पू। जर्नल आफ् एशियाटिक सोसाइटी में किया था। सन् 1937 सर्वज्ञमित्र - काश्मीर-निवासी स्तोत्रकवि। ई. 8 वीं शती का में श्री. डिल्लन ने इस ग्रंथ को लन्दन से प्रकाशित करवाया। पूर्वार्ध। कल्हण द्वारा उल्लिखित । कथ्यनिर्मित विहार में रहते बाबूलाल शुक्ल के सम्पादन में हिन्दी टीका सहित यह चौखम्बा थे। अपनी रचना स्रग्धरास्तोत्र द्वारा बौद्ध देवी तारा की स्तुति से प्रकाशित हुआ है। सागरनंदी, धनंजय तथा भोज के परवर्ती कर, अपने स्वतः के साथ 100 लोगों को नरबलि होने से आचार्य थे। इनके ग्रंथ में हर्षवार्तिक, मातृगुप्त गर्ग, कश्यकुट्ट, बचाया। एक दरिद्र ब्राह्मण को द्रव्य देने के लिये, अपने को नखकुट्ट तथा बादरि का उल्लेख हुआ है जिनसे पता चलता एक राजा को बेच दिया था। यही राजा, इनके समवेत 100 है कि इन्होंने इन आचार्यों के सिद्धान्तों का अनुशीलन करने नरबलि देने के प्रयास में था। तारादेवी की स्तुति से, राजा के पश्चात् अपना ग्रन्थ लिखा होगा। इन्होंने कारिका के रूप का प्रयास असफल रहा। में यह ग्रन्थ लिखा है जिसमें कहीं-कहीं भरतकृत नाट्यशास्त्र सर्वज्ञात्ममुनि - अद्वैत सम्प्रदाय के एक प्रमुख आचार्य। आप के श्लोक मूलतः उद्धृत किये गये हैं। "नित्यबोधाचार्य" भी कहलाते थे। गुरु थे सुरेश्वराचार्य । सागरनन्दी, अभिनवगुप्त के मत के प्रतिकूल, वर्तमान संक्षेपशारीरक, पंचप्रक्रिया एवं प्रमाणलक्षण नामक आपने नरपति के चरित्र को नाटक का विषय बनाने के पक्ष में है। तीन ग्रंथ हैं। संक्षेपशारीरक, ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य के आधार पर वे रसों की दृष्टि से नाट्यवृत्तियां के विभाजन के अवसर पर लिखा गया ग्रंथ है। उसमें 1240 श्लोक हैं। चार अध्यायों कोहल का अनुसरण करते है, भरत का नहीं। कहीं-कहीं वे में वह विभाजित है। उसमें प्रतिबिंबवाद का पुरस्कार किया धनंजय से भी मतभेद प्रकट करते हैं। इन्होंने उपरूपक के गया है। संक्षेपशारीरक पर नृसिंहाश्रम की तत्त्वबोधिनी, विभिन्न प्रकारों के उदाहरण-ग्रन्थों के नाम गिनवाए हैं। मधुसूदनसरस्वती की सारसंग्रह, पुरुषोत्तम दीक्षित की सुबोधिनी "नाटकलक्षण-रत्नकोश" मध्ययुग का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना एवं रामतीर्थ की अन्वयार्थ-प्रकाशिका नामक टीकाएं प्रसिद्ध हैं। जाता है। अन्य कृतियां- "जानकी-राघव" (नाटक) तथा सर्वानन्दसूरि - सुद्यर्भागच्छीय जयसिंह नामक विद्वान थे, छंदशास्त्र, संगीत व निघंटु विषयक ग्रंथ। जिनकी पट्टपरम्परा में क्रमशः चन्द्रप्रभसूरि, धर्मघोषसूरि, सातवळेकर, श्रीपाद दामोदर (वेदमूर्ति) - जन्म-सावंतवाडी शीलभद्रसूरि, गुणरत्नसूरि और सर्वानन्दसूरि हुए। रचनाएं- (महाराष्ट्र)। चित्रकला में अत्यंत निपुण थे। 40 वर्ष की पार्श्वनाथचरित (सं.1291/8000 श्लोक) और चन्द्रप्रभचरित आयु में चित्रकार का व्यवसाय छोडकर वेदाध्ययन में रममाण (सं. 1302/13 सर्ग, 6141 श्लोक) । मूल कथा और अवान्तर हुए। राष्ट्रीय वृत्ति के कारण तत्कालीन अंग्रेजी सरकार द्वारा कथाएं चमत्कारपूर्ण हैं। सतत उपद्रव हुआ। अतः भारत में अन्यान्य स्थानों में निवास सर्वारुशर्मा त्रिवेदी - सर विलियम जोन्स की प्रेरणा से । करना पड़ा। औन्ध नरेश भवानराव पंत प्रतिनिधि के आश्रय रचना-विवादसारार्णवः। में वेद प्रचार का कार्य किया। आपने संपादन की हुई चारों सवाई ईश्वरीसिंह - समय-ई. 18 वीं शती। जयपुर के वेदों की दैवतसंहिता अपूर्व है। वेद और रामायण के मराठी महाराजा थे। रचना-"भक्तमाला" नामक संस्कृत काव्य। अनुवाद प्रकाशित किए। गोज्ञानकोश में गोविषयक वैदिक मंत्रों का संकलन किया है। पुरुषार्थ (मराठी) और वैदिक धर्म सव्य आंगिरस - ऋग्वेद के पहले मंडल के 44 से 51 (हिंदी) मासिक पत्रिकाओं द्वारा वैदिक विचारों का प्रचार तक के सात सूक्तों के द्रष्टा । इंद्र के पराक्रम का वर्णन इनमें है। किया। पुरुषार्थबोधिनी नामक आपकी भगवद्गीता की हिंदी सहस्रबुद्धे - धारवाड (कर्नाटक) निवासी। रचनाएं टीका अत्यंत लोकप्रिय है। "संस्कृत स्वयंशिक्षिका" नामक संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड/483 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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