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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सारनिष्कर्षटिप्पणी, वादाद्रिकुलिश ग्रंथ भी आप ही के कहे जाते हैं। श्रीनिवास दीक्षित - ई. 16 वीं शती। पिता-श्रीभवस्वामी भट्ट। भाष्यकार श्रीभवस्वामी, आह्निक प्रणेता श्रीकृष्णार्य, अद्वैत चिंतामणिकार कुमार भवस्वामी जैसे विद्वानों के वंश में इनका जन्म हुआ। राजा सूरप नायक द्वारा प्रतिष्ठापित सूर-समुद्र-अग्रहार में निवास। चोलराज के द्वारा प्रशस्तिपत्र प्राप्त। रचनाभावनापुरुषोत्तम (नाटक)। श्रीनिवास दीक्षित (रत्नखेट) - ई. 17 वीं शती। 'अभिनव-भवभूति' तथा 'रत्नखेट' इन नामों से प्रसिद्ध । रचना'शितिकण्ठविजय-काव्यम्'। चोलराजा ने 'रत्नखेट' उपाधि प्रदान की। षड्भाषाचतुर तथा अद्वैतविद्याचार्य यह उपाधियां भी इन्हें प्राप्त हुई थीं। साहित्यशास्त्रविषयक साहित्यसंजीवनी, भावोद्भेद, रसाय, अलंकारकौस्तुभ, काव्यदर्पण, काव्यसारसंग्रह और साहित्यसूत्रसरणी नामक ग्रंथों की रचना श्रीनिवास दीक्षित ने की है। श्रीनिवास भट्ट - साहित्यशिरोमणि । अध्यापक- प्रबांधी संस्कृत पाठशाला। रचना- रामानन्दम्। विषय- माध्वसिद्धान्त। श्रीनिवासरंगार्य - ई. 20 वीं शती। कौशिक गोत्री। भाषाद्वय-पंडित। 'गुरुदक्षिणा' नामक नाटक के प्रणेता । श्रीनिवास विद्यालंकार - इन्होंने अपने 'देहली- महोत्सव-काव्य' में दिल्ली में संपन्न राजमहोत्सव का वर्णन किया है। श्रीनिवास शास्त्री - जन्म कावेरी नदी के तट पर सहजपुरी ग्राम में, सन् 1850 के लगभग। पिता- वेंकटेश्वर। पितामहसुब्रह्मण्य शास्त्री। "तिरुवसलूर पंडित' नाम से विख्यात । माधव यतीन्द्र द्वारा 'वेद-वेदान्त-वर्धक' की उपाधि से समलंकृत। 'उपहार-वर्म-चरित" नामक नाटक के रचयिता। श्रीनिवास शास्त्री - समय- ई. 19 वीं शती का उत्तरार्ध । कुम्भकोणम्-निवासी शैव। माता-सीताम्बा। पिता- रामस्वामी यज्वा। पितामह- रामस्वामी शास्त्री। अनुज-नारायण शास्त्री। गुरु-त्यागराज मखी। 'ब्रह्मविद्या' नामक दर्शन विषयक पत्रिका के सम्पादक। अप्पय दीक्षित के शिवाद्वैत सिद्धान्त के प्रचारक । परम धार्मिक और वैष्णव। कृतियां- सौम्यसोम (नाटक), विज्ञप्तिशतक, योगि-भोगिसंवाद-शतक, शारदा-शतक, महाभैरव-शतक, हेतिराज शतक, श्रीगुरुसौन्दर्य-सागर-साहस्रिका तथा उपनिषदों की सुबोध टीकाएं। श्रीनिवास सूरि - सिद्धान्त प्रतिपादन की दृष्टि से भागवत के दो स्थल विशेष महत्त्व रखते हैं। वे हैं : ब्रह्म-स्तुति तथा वेद-स्तुति। इन दोनों स्तुतियों पर श्रीनिवास सूरि द्वारा लिखी गई टीका का नाम है तत्त्व-दीपिका। इस टीका में विशिष्टाद्वैत के द्वारा उद्भावित दार्शनिक तथ्यों का निर्धारण, भागवत के पद्यों से बड़ी गंभीरता के साथ किया गया है। श्रीनिवास सूरि, द्रविड पंडित थे, किन्तु वृंदावन के श्रीरंगनाथजी के विशाल मंदिर एवं संस्थान से आकृष्ट होकर, वृंदावन ही में रहते थे तथा इस संस्था से संबद्ध थे। इनके गुरु थे गोवर्धनवासी वेंकट या वेंकटाचार्य जिनकी स्तुति इन्होंने वेद स्तुतिव्याख्या (टीका) के अंत में की है। आपके शिष्य थे रंगदेशिक, जिनके आदेश से सेठ राधाकृष्ण ने वृंदावन में रंगनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। निर्माणकार्य का आरंभ 1902 वि.सं. में अर्थात् 1845 ई. में हुआ था। अतः श्रीनिवास सूरि का समय ई. 19 वीं शती का पूर्वार्ध मानना युक्तियुक्त है। श्रीनिवासाचार्य - वैष्णवों के निंबार्क-संप्रदाय के प्रवर्तक । आचार्य निंबार्क के प्रधान शिष्य। इनका निवासस्थान मथुरा जिला में गोवर्धन से एक कोस दूर (श्री राधाकंड) ललितासंगम पर माना जाता है। जन्मतिथि-वसंत पंचमी। इनके द्वारा निर्मित ग्रंथ हैं- (1) वेदांत-कौस्तुभ नामक शारीरक-मीमांसा-भाष्य और (2) लघु-स्तवराज सभाष्य। ख्यातिनिर्णय, पारिजात-कौस्तुभ-भाष्य तथा रहस्य-प्रबंध नामक तीन अन्य ग्रंथों के भी होने का संकेत है, किंतु अभी तक ये अप्राप्य हैं। श्रीनिवासाचार्य - शासकीय महाविद्यालय कुम्भकोणम् में संस्कृत प्राध्यापक (ई. 1848 से 1914) । पितृनाम- वेदान्ताचार्य । पिता- तिरुवाहीन्द्रपुर के निवासी। आप आमरण संस्कृत पद्यभाषी थे। रचनाएं- शृंगारतरंगिणी (भाण), उषापरिणय (नाटक), हंसविलास (काव्य) श्रीकृष्णलीलायित (गद्यकाव्य), अमृतमन्थन (गेयकाव्य), शाङ्गकोपाख्यान (काव्य) तथा नागानन्द और मृच्छकटिक की टीका। सभी रचनाएं मुद्रित । श्रीपतिदत्त - ई. 11 वीं शती। बंगाल-निवासी। कातन्त्र-परिशिष्ट के रचयिता। श्रीपतिभट्ट - ई. 11 वीं सदी। महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के रोहिणखेड ग्राम के निवासी। ज्योतिष शास्त्र की प्रत्येक शाखा पर आपने एक-एक ग्रंथ लिखा है। धीकोटिकरण, सिद्धान्तशेखर, जातकपद्धति, पाटीगणित, श्रीपतिनिबंध, ध्रुवमानसकरण, दैवज्ञवल्लभ, श्रीपतिसमुच्चय एवं ज्योतिषरत्नमाला, ये सभी ग्रंथ आपके हैं। रमल पर भी आपका एक ग्रंथ है ज्योतिष-रत्नमाला मुहूर्तग्रंथ है। श्रीपति ने स्वयं उस पर मराठी गद्यटीका लिखी है। गृहनिर्माण, गृहप्रवेश, विवाह, उपनयन आदि पर हर घडी मुहूर्त देखा जाता है। इस आवश्यकाता को पहिचानकर यह ग्रंथ उपलब्ध किया गया है। श्रीपुरुषोत्तमाचार्य - हरिव्यास देवाचार्य के शिष्य। आपके वेदान्त- रत्नमंजूषा व श्रुत्यन्तसुरद्रुम नामक टीकाग्रंथ प्रसिद्ध हैं। श्रीभूषण - काष्ठासंघ, नन्दितट गच्छ और विद्यागम के भट्टारक विद्याभूषण के पट्टधर । सोजिना (गुजरात) की गद्दी के पट्टधर । पिता- कृष्णासह । माता- माकेहो। वादिविजेता और प्रतिष्ठाचार्य । समय-ई. 17 वीं शती। रचनाएं- (1) पाण्डव-पुराण (वि.सं. 1657) (6700 श्लोक)। (2) शान्तिनाथ-पुराण (वि.सं. 1659) (4025 श्लोक), (3) हरिवंश पुराण (वि.सं. 1675) (4) द्वादशांगपूजा और (5) प्रतिबोधचिंतामणि। 478 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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