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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाट्यायन गृह्यसूत्र एवं जैमिनीय उपनिषद्-ब्राह्मण आपकी रचनाएं मानी जाती है। शातातप - याज्ञवल्क्य एवं पाराशर के अनुसार एक प्रमुख धर्मशास्त्रकार। आपका स्मृतिग्रंथ गद्य-पद्यात्मक है। ग्रंथ में छ: अध्याय और 231 श्लोक हैं। प्रायश्चित्त, विवाह, वैश्वदेव, श्राद्ध, अशौच आदि विषय इस स्मृति में है। शारदातनय - ई. 13 वीं सदी का मध्य । नाट्य्-शास्त्र एवं रसासिद्धान्त का विवेचन करने वाला भावप्रकाशन नामक ग्रंथ आपकी रचना है। यह दस अधिकारणों में विभाजित है। इसमें भाव, रस, शब्दार्थ-संबंध, रूपक इन चार विषयों का प्रतिपादन किया गया है। शाङ्गदेव - ई. 13 वीं सदी। इनका जन्म काश्मीर के संपन्न परिवार में हुआ था। इनके पितामह भास्कर दक्षिण में आए। पिता-सोड्ढल, देवगिरि के यादव-राज्य-संस्थापक राजा सिंहल (1132-1169 ई.) के लेखापाल थे। संगीतशास्त्रज्ञ। देवगिरि के सिंघण यादव के दरबार में गायक। "संगीत-रत्नाकर" ग्रंथ की आपने रचना की। इसमें स्वरगत, रागविवेक, प्रकीर्णक, प्रबंध, ताल, वाद्य, नृत्य पर कुल सात अध्याय हैं। भरत, मतंग, सोमेश्वर, अभिनवगुप्त आदि प्राचीन आचार्यों के मतों का विवेचन भी शाङ्गिदेव ने अपने “संगीत-रत्नाकर" में किया है। ___ शाङ्गिदेव ने कहा है कि उनमें सरस्वती निवास करती है। वे स्वयं को "निःशंक" कहते है। इस नाम से उन्होंने एक वीणा का आविष्कार किया है। शागधर - ई. 11 वीं सदी। पिता-दामोदराचार्य। वैद्यकशास्त्र पर शाङ्गिधरसंहिता नामक ग्रंथ लिखा (इसके 3 खंड और बत्तीस अध्याय हैं)। प्रथम खंड में औषधियों के गुणधर्म, उनके परिणाम, निदान एवं चिकित्सा, शरीर-शास्त्र, पदार्थविज्ञानशास्त्र, गर्भशास्त्र आदि विषय हैं। दूसरे विभाग में आसव, कषाय, रसायन, मादक पेय की चर्चा है। अंतिम खंड में रोग-निवारण संबंधी उपचार हैं। चरक, सुश्रुत एवं माधव से भी अधिक चर्चा आपके ग्रंथ में रोगों के बारे में है, नाडी-परीक्षा के बारे में विपुल जानकारी है। उमेशचंद्र दत्त के अनुसार भस्मीकरण आदि पर लिखने वाले आप सबसे प्राचीन ग्रंथकार हैं। रसायन तैयार करने में भी आप कुशल थे। सोना, चांदी, लोह आदि निरिन्द्रिय धातुओं के भस्मीकरण की पद्धति आपने ही ढूंढ निकाली। (2) ई. 12 वीं सदी। राजस्थान के हम्मीरदेव के दरबार में थे। हम्मीरविजय और सुभाषितशाङ्गधर नामक दो ग्रंथों की रचना की। प्रथम ग्रंथ लोकभाषा में एवं द्वितीय संस्कृत में (4689 पद्यों में) है। शर्ववर्मा - ई. पू. 405 वर्ष। इन्होंने कातन्त्र धातुपाठ का संक्षिप्त धातुपाठ किया था। उसका तिब्बती अनुवाद जर्मन विद्वान् लिबिश ने प्रकाशित किया है। शर्ववर्मा ने कातन्त्र व्याकरण और धातुपाठ पर भी वृत्ति लिखी थी जिसमें चुरादि धातुओं में क्रियाफल स्वगामी और परगामी होने पर भी आत्मनेपद और परस्मैपद दोनों इष्ट माना गया है। पाणिनि ने क्रियाफल कर्तृगामी होने पर चुरादि धातु का आत्मनेपद और अकर्तृगामी होने पर परस्मैपद इष्ट माना है। शालिकनाथ मिश्र - ई. 9 वीं सदी के पूर्व। गौड देश में जन्म। प्रभाकर परंपरा के श्रेष्ठ मीमांसक ग्रंथकार। प्रभाकर के लध्वी एवं बृहती दोनों ग्रंथों पर दीपशिखा एवं ऋजुविमला नामक व्याख्या लिखी है। आपका तीसरा ग्रंथ प्रकरणपंचिका। यह सर्वाधिक लोकप्रिय है। आपको ब्राह्मणत्वादि जातियां मान्य नहीं थी। शालिग्राम द्विवेदी - ई. 20 वीं शती। मुंबई में गोकुलदास तेजपाल संस्कृत म.वि. के छात्र । व्याकरणशास्त्री। काव्यतीर्थ नागेश पण्डित तथा अच्युत पाध्ये के साथ "भ्रान्त-भारत" नामक नाटक की रचना की। शालिग्राम शास्त्री - लखनऊवासी। आशुकवि। सन् 1923 में संपन्न अ.भा. संस्कृत परिषद में पं. मदनमोहन मालवीय के प्रश्न के उत्तर में आधुनिक शिक्षा पद्धति का दोषदर्शन करनेवाली रचना- “पाश्चात्य-शिक्षादूषणानि । इस उत्तर से प्रचुर विनोद-निर्मिति । सन् 1931 में अ.भा. संस्कृत कविसम्मेलन में पद्यात्मक अध्यक्षीय भाषण पढा । शालिहोत्र - कपिल ऋषि के पुत्र। आप अश्वविद्या के आचार्य थे। अश्वायुर्वेद पर शालिहोत्रतंत्र अथवा शाल्यहोत्र नामक ग्रंथ आपने लिखा है। अग्निपुराण के अनुसार (292.44) आपने अपने सुश्रुत नामक पुत्र को अश्वायुर्वेद का ज्ञान कराया। शालिहोत्र ग्रंथ का अनुवाद बाद में 14 वीं सदी में अरबी में हुआ। लंदन की इंडिया हाऊस लायब्ररी में शाल्यहोत्र की दो प्रतियां सुरक्षित हैं। महाभारत के अनुसार शालिहोत्र एक ऋषि भी थे। महर्षि व्यास कुछ काल तक आपके आश्रम में थे। पांडव भी आपसे मिलने वहां गये थे। शालिहोत्र राणायनी-शाखा के आचार्य भी थे। सामवेद पर आपने छह संहिताएं लिखीं। आपका दूसरा नाम लांगली था। शास भारद्वाज - ऋग्वेद के दसवें मंडल के 152 वें सूक्त के द्रष्टा। प्रस्तुत सूक्त की प्रथम ऋचा में आपका उल्लेख भी है। इंद्र इस सूक्त के देवता हैं और उनकी स्तुति इसका विषय । आश्वलायन गृह्यसूत्र के अनुसार, युद्ध के लिये निकले राजा का उत्साह बढाने हेतु इस सूक्त का पाठ किया जाता है। शास्त्राचार्य आनन्दताण्डव दीक्षित और सोमशेखर दीक्षित - इन दो पंडितों ने नटसहस्रम् नामक अति प्राचीन नामस्तोत्र के भाष्य की रचना की। शास्त्री एच. वी. - ई. 20 वीं शती। बंगलौर-निवासी। "श्रीकृष्ण-भिक्षा" नामक रूपक के प्रणेता। पी.बी.एस. शास्त्री - रचनाएं- (1) मेकडॉनेल की हिस्ट्री संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 471 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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