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शठगोप रामानुज - ई. 19 वीं शती। रचनाएं- कवि-हृदयरंजिनी और वेदगिरिवर्णन। शतप्रभेदन वैरूप - विरूप के पुत्र। ऋग्वेद में आपका उल्लेख नहीं किन्तु ऋग्वेद के दसवें मंडल के 113 वें सूक्त के द्रष्टा । प्रस्तुत सूक्त इंद्रस्तुति पर है। शतानंद - 11 वीं सदी। एक प्रसिद्ध वैष्णव ज्योतिष-ग्रंथकार । जगन्नाथपुरी में निवास। वराहमिहिर के सूर्यसिद्धान्त के आधार पर आपने भास्वतीकरण नामक करणग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में क्षेपक और ग्रहगति के गुणक-भाजक शतांश पद्धति से दिये गये हैं जो दशांशपद्धति से मिलती जुलती है।
यह ग्रंथ तिथिधुवाधिकार, ग्रहध्रुवाधिकार, स्फुटतिथ्यधिकार, ग्रहस्फुटाधिकार, त्रिपात्र, चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण एवं परिलेख नामक आठ अधिकारों में विभाजित है। मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत नामक ग्रंथ में भी इसकी चर्चा है। यह लोकप्रिय ग्रंथ रहा है। इसके सभी टीकाकार उत्तर-भारत के ही हैं। शत्रुघ्न (मिश्र) - ई. 15 वीं शती। मन्त्रार्थ-दीपिका नामक ग्रंथ के रचयिता। ग्रंथकार के कथनानुसार यह टीकाग्रंथ उवटाचार्य कृत यजुर्वेदभाष्य, गुणविष्णुकृत छन्दोगमन्त्रभाष्य, हलायुध का ब्राह्मणसर्वस्व और गौरधर की वेदविलासिनी टीका को देखकर हुआ है। स्नानमन्त्र, सन्ध्यामन्त्र, देवार्चनमन्त्र, श्राद्धमन्त्र, षडंगशतरुद्र, विवाहादि मन्त्र आदि पर यह सरल रूप से सविस्तर व्याख्यान है। शबरस्वामी - ईसापूर्व 3 री सदी। मीमांसासूत्र के प्रसिद्ध भाष्यकार। आपका जीवनचरित उपलब्ध नहीं। कुछ लोग आपको तामिलनाडु के मानते हैं तो कुछ उत्तरभारत के। डा. संपूर्णानंद का मत है कि आपका जन्म तमिलनाडु का एवं कार्यक्षेत्र बिहार रहा।
शबरस्वामी का वास्तव नाम आदित्य था। वे राजा थे। चार वर्ण की चार कन्याओं से आपने विवाह किया था। आप ब्राह्मण रहे होंगे क्यों कि उस काल में ब्राह्मणों को चारों वर्णो की स्त्रियां करने का अधिकार था। ब्राह्मण स्त्री से हुए पुत्र थे वराहमिहिर, क्षत्रिय से भर्तृहरि एवं विक्रम, वैश्य से हरचंद वैद्य एवं कुशलशंक तथा शद्र से अमर। दंतकथा के अनसार वे जैनियों के भय से शबर का वेश धारण करते थे, अतः शबरस्वामी कहलाये। आपने जैमिनी के मीमांसासूत्र पर भाष्य लिखा। इसे 'शाबर-भाष्य' कहते हैं। जैमिनि के सूत्रों पर लिखा गया यह पहला ग्रंथ है। आप प्रगत विचारों के थे। वेद एवं यज्ञ के प्रति अंधश्रद्धा दूर कर उन्हें उपयुक्तवाद के क्षेत्र में लाकर रखा। उनका सारा विवेचन ताधिष्ठित है।
वेद का प्रामाण्य अबाधित रखने का आपने अपने भाष्य में प्रयत्न किया है। आपने ईश्वर के स्थान पर 'अपूर्व' को ही मान्य किया।
शबरस्वामी के पूर्व-मीमांसा की स्वतंत्र दार्शनिक विचारधारा नहीं थी। बौद्धों का भी जोर था। उस कठिन समय में वेदों की रक्षा और प्रामाण्य अबाधित रखने का कार्य आपने किया। शरणदेव - बौद्ध-मतावलम्बी। समय-ई. 13 वीं शती। अष्टाध्यायी की दुर्घटवृत्ति के लेखक। संस्कृत भाषा के जो पद व्याकरण से साधारणतया सिद्ध नहीं होते उनका साधुत्व बताने का प्रयास इस ग्रंथ में है और यही उसका वैशिष्ट्य है। श्रीसर्वरक्षित द्वारा इनके ग्रंथ का संक्षेप तथा प्रतिसंस्करण हुआ। यह ग्रंथ उपलब्ध है। समय-वि.सं. 12301 शरफोजी (द्वितीय) - तंजौर के शासक महाराज । शासन-काल 1800 ई. से 1832 ई. तक। कुमारसंभव-चम्पू, स्मृति-सार-समुच्चय, स्मृतिसंग्रह व मुद्राराक्षस-छाया नामक 4 ग्रंथों के प्रणेता। इन ग्रंथों में से "कुमारसंभवचम्पू" का प्रकाशन वाणी विलास प्रेस श्रीरंगम् से 1939 ई. में हो चुका है। शर्ववर्मा - कातंत्र व्याकरण के कर्ता । भृगुकच्छ (भडोच-गुजरात) निवासी। हाल सातवाहन ने अपनी गाथा सप्तशती की पुष्पिका में इन्हें "धीसखा" याने विद्वत्ता के कारण हुआ मित्र कहा है। कहते हैं कि कार्तिकेय की आराधना कर शर्ववर्मा ने सरल व्याकरण प्राप्त किया और हाल सातवाहन को संस्कृत 6 माह में सिखा दी। कार्तिकेय के वाहन कलापक (मोर) पर, इसे (व्याकरण को) कालापक भी कहा गया है। राजा ने गुरुदक्षिणा के रूप में भृगुकच्छ (भडोच) राज्य इन्हें दान में दिया था। शशकर्ण काण्व - कण्वकुल के सूक्तद्रष्टा । ऋग्वेद के आठवें मंडल का नौंवा सूक्त आपके नाम पर है। इसमें अश्विनीकुमारों की स्तुति है। शांडिल्य (धर्मसूत्रकार) - आपस्तम्ब श्रौत के रुद्रदत्तकृत भाष्य में (9-11-12) शाण्डिल्य गृह्य उद्धृत हैं। वह सामशाखा का गृह्य है ऐसा कुछ विद्वानों का तर्क है। शाण्डिल्य सूत्रकार याजुष थे ऐसा भी कुछ विद्वानों का अनुमान है। शांडिल्य - बृहदारण्यक उपनिषद् में शांडिल्य के गुरु वात्स्य बताये गये हैं। यज्ञविधि में आप कुशल थे। शतपथ ब्राह्मण के 6 से 10वें काण्ड में शाण्डिल्य के मतानसार वेदी का विचार किया गया है। गोत्र-सूची में आपका नाम है तथा शांडिल्य, असित, एवं देवल इस गोत्र के प्रवर हैं। शांडिल्यविद्या नामक तत्त्वज्ञानविषयक विचार आपके नाम पर है। आपके अनुसार आत्मा में विलीन हो जाना जीवन का साध्य है। शांडिल्यस्मृति, शांडिल्यतत्त्वदीपिका एवं भक्तिमार्ग का शांडिल्यसूत्र नामक ग्रंथ आपकी रचनाएं हैं। शातलूरी कृष्णसूरि - रचना-अलंकारमीमांसा। इस ग्रंथ में रसगंगाधर के मतों का परामर्श लेने का प्रयास लेखक ने किया है। अन्य रचना- साहित्यकल्पलतिका।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 469
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