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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेंकटाचार्य - मैसूर-निवासी। पिता- अण्णय्याचार्य। चाचा-श्रीनिवासतातार्य । सुरपुरम्नरेश वेंकट नायक (1773-1802 ई.) का समाश्रय। परकाल मठ के महादेशिक के उपासक।। कृतियां- गणसूत्रार्थ (व्याकरणविषयक), कृष्णभावशतक-स्तोत्र, अलंकारकौस्तुभ, शृंगारलहरी (गीतिकाव्य), दशावतारस्तोत्र, हयग्रीवदण्डक स्तोत्र, यतिराजदण्डकस्तोत्र (रामानुजाचार्य विषयक), झंझामारूत दर्शन, श्रीकृष्णशृंगार-तरंगिणी (नाटक) और तेलगु में अचलात्मजा-परिणयमु। वेंकटाचार्य - शतकर्तृ ताताचार्य के पुत्र । रचना- कोकिल-सन्देश नामक दूतकाव्य। वेंकटाचार्य - रचनाएं- कावेरी-महिमादर्शः, (2) व्याघ्रतटाकभूविवरम्, (3) ग्रन्थिज्वरचरितम्, (4) रामानुजमताभासविलासः, (5) यादवगिरिमाहात्म्य संग्रहः, (6) काकान्योक्तिमाला, (7) चम्पकान्योक्तिमाला, (8) दिव्यसूरिवैभवम् (गद्य प्रबंध)। वेंकटाद्रि - (श. 19)- राजा शोभनाद्रि अप्पाराव के पुत्र । "राजलक्ष्मीपरिणय" नामक प्रतीक नाटक के रचयिता। वेंकटाध्वरी - समय- ई. 17 वीं शती। अत्रि गोत्री। रामानुजी वैष्णव संप्रदायी। इन्होंने 3 प्रसिद्ध व लोकप्रिय चंपू-काव्यों की रचना की है। वे हैं- विश्वगुणादर्श-चंपू (निर्णयसागर प्रेस मुंबई से 1923 ई. में प्रकाशित), वरदाभ्युदय-चंपू (इसका दूसरा नाम हस्तगिरि-चंपू- संस्कृत सीरीज मैसूर से 1908 ई. में प्रकाशित) और उत्तररामचरित-चंपू (गोपाल नारायण एण्ड कं. मुंबई से प्रकाशित)। __ ये अप्पय दीक्षित के पौत्र तथा रघुनाथ-दीक्षित के पुत्र थे। माता-सीतांबा। ये रामानुज के मतानुयायी व लक्ष्मी के भक्त थे। ग्रंथ-रचना-काल 1637 ई. के आस-पास। इनका निवास स्थान कांचीपुर के निकट अर्शनफल (अर्सनपल्ली) नामक ग्राम था। "उत्तररामचरित-चंपू" कवि की प्रौढ रचना है, जिसमें वर्णनसौंदर्य की आभा देखने योग्य है। ये नीलकण्ठचंपू के प्रणेता कवि नीलकंठ दीक्षित के सहाध्यायी थे। इन्होंने लक्ष्मीसहस्रम् नामक एक अन्य काव्य का भी प्रणयन किया था। "वरदाभ्युदय या हस्तगिरिचंपू' के अंत में कवि ने अपना परिचय दिया है। वेंकटेश - तैत्तिरीय संहिता के अन्तिम तीन काण्डों पर ही इनका भाष्य विद्यमान है। भाष्य का नाम है "वेदभाष्य संग्रहसार" या वेदार्थ-संग्रह। यह भाष्य कई स्थानों पर भट्ट भास्कर भाष्य से अक्षरशः मिलता है। रुद्रभाष्यकार, एक वेंकटनाथ भी हुए हैं। वे दोनों एक या भिन्न यह निश्चित नहीं है। वेंकटेश - पिता-श्रीनिवास। कांचीवरम् के पास स्थित, आर सलाई ग्राम के निवासी। इन्होंने रामचरित्र पर आधारित रामचन्द्रोदयम् नामक महाकाव्य (30 सर्ग) लिखा। इन्हीं का दूसरा काव्य यमकार्णव यमकमय है। इसका लेखन सन् 1656 में संपन्न हुआ। वेंकटेश - रामनाड संस्थान (तामिलनाडु) के सेतुपति के आश्रित । रचना-त्रिंशच्छलोकी अर्थात् विष्णुतत्त्वनिर्णय (सटीक) जिसमें न्यायेन्दुशेखर का खण्डन है। वेंकटेश्वर - तंजौर के महाराज शाहजी (1684-1711 ई.) द्वारा सम्मानित। सरफोजी के आश्रित। मनलूर-निवासी। रचनाएं-उन्मत्त-कविकलशम् अर्थात् लम्बोदरप्रहसन, राघवानन्द, नीलापरिणय, सभापति-विलास और भोसले-वंशावली-चम्पूः । वेंकप्रभु - वेंकसूरिचन्द्र अथवा प्रधान वेंकप्पा नामों से भी प्रसिद्ध। माता-बाबाम्बिका, पिता-हम्पार्य (राज्यमन्त्री)। भार्गव-वंशी ब्राह्मण। श्रीरामपुर के निवासी। ब्रह्मविद्या में पारंगत। “षड्दर्शनीवल्लभ' की उपाधि से विभूषित। राम तथा हनुमान् के भक्त। सुशीलता तथा दानशूरता के लिए विख्यात । सन् 1763 से सन् 1780 तक मैसूर के राजा कृष्णराज (द्वितीय), नंन्जराज तथा चामराज के मंत्री। कृष्णराज द्वारा अनेक विभागों के अध्यक्षपद पर नियुक्त । मराठा-अधिपति राघोबा के साथ कृष्णराज की सन्धि वेंकप्प ने ही करायी थी। युद्धनिपुण। हैदरअली ने मैसूर का शासन संभालने के बाद वेंकप्प को राजधानी से दूर भगाया। रचनाएं- (16) कामकलाविलास (भाण), कुक्षिम्भरभैक्षव (प्रहसन), महेन्द्रविजय (डिम), वीरराघव (व्यायोग), लक्ष्मीस्वयंवर और विबुधानंद (समवकार), सीताकल्याण (वीथी), रुक्मिणीमाधव (अंक), ऊर्वशीसार्वभौम (ईहामृग), सुधाझरी (उपन्यास), कुशलविजय (चम्पू), आंजनेयशतक, सूर्यशतक, हनुमज्जय, चिदद्वैतक जगन्नाथविजयकाव्य (व्याकरणनिष्ठ), अलंकारमणिदर्पण (साहित्य-शास्त्रीय) और कन्नड रचनाएं- कर्णाटरामायण, हनुमविलास और इन्दिराभ्युदय । वेचाराम न्यायालंकार - ई. 18 वीं शती। पिता-राजाराम । "काव्यरत्नाकर" के कर्ता । बंगाल के निवासी। अन्य कृतियांआनन्दतरंगिणी (प्रवासवृत्त) और सिद्धान्त-तरी (आनन्दतरंगिणी पर व्याख्या)। वेणीदत्त तर्कवागीश - बंगाल के निवासी। ई. 18 वीं शती। "श्रीवर" के नाम से विख्यात। वीरेश्वर पंडित के पुत्र । "अलंकार-चन्द्रोदय" के कर्ता। वेदगर्भ पद्मनाभाचार्य - ई. 18 वीं शती। रचनामाध्वसिद्धान्तसारः। वेदान्तवागीश भट्टाचार्य - "भोजराज-सच्चरित" (नाटक) के प्रणेता। वेलणकर, श्रीराम भिकाजी - जन्म महाराष्ट्र के सारन्द ग्राम (जिला-रत्नागिरी) में, सन् 1915 में। उच्च शिक्षा विल्सन कालेज, मुंबई में। सन् 1940 में एम.ए.,एलएल.बी. कर डाक तार विभाग में नियुक्ति व उच्चाधिकार प्राप्त । भारत में पिन-कोड 460 / संस्कृत वाङ्मय काश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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