________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
केवल-थों का ज्ञान आवश्य और चरकों का मन्त्र निर्देश
मुद्रित हैं। ये तंजौर के राजा विजय-राघव (ई. सन् 1672) सन 1935 में। सन् 1935 से 1955 तक योरोपीय संग्रहालय की सभा के सदस्य थे। गुरु-रघुनाथ नरेश। साहित्य, संगीत में भारतीय पुरातत्त्व के ग्रंथों का पर्यालोचन । संस्कृत के कई तथा मीमांसा में ये निपुण थे। इन्होंने वाजपेय यज्ञ किया था। हस्तलिखित ग्रंथों का प्रकाशन। ऑल इण्डिया ओरियण्टल वेंकटमाधव - ई. 11 वीं शती। सायण और देवराज यज्वा कान्फेरन्स के श्रीनगर- अधिवेशन के तथा विश्व संस्कृत सम्मेलन के पूर्ववर्ती- ऋग्वेद के प्रगल्भ भाष्यकार । एक ही ऋग्वेद पर
के दिल्ली-अधिवेशन के अध्यक्ष। मद्रास वि.वि. के संस्कृत उन्होंने दो भाष्य लिखे ऐसी संभावना है। संप्रति प्रथम भाष्य विभागाध्यक्ष। विदेशी संस्कृत संस्थाओं द्वारा प्रायः आमंत्रित । ही उपलब्ध है जिसका नाम है 'ऋगर्थदीपिका'। इस भाष्य में 'कविकोकिल', 'सकल-कला-कलाप','विद्वत्कवीन्द्र' तथा वेंकट माधवाचार्य ने अपने कुल आदि के विषय में कहा है - 'पद्मभूषण' की उपाधियों से विभूषित । सन् 1958 में मद्रास पितामह- माधव। पिता- वेंकटार्य। मातामह- भवगोल।।
में संस्कृत रंगमंच के संस्थापक। अलंकारशास्त्रविषयक 25 माता-सुन्दरी। गोत्र- कौशिक । मातृगोत्र- वासिष्ठ । अनुज-संकर्षण।
ग्रंथों का प्रकाशन किया। पुत्र- वेंकट और गोविन्द। निवास- दक्षिणापथ में चोलदेश। कृतियां- (लघु काव्य)- देववन्दीवरदराज, सर्वधारी, महीपो कावेरी के समकालीन राजा- एकवीर।
मनुनीतिचोलः, फाल्गुन, षोडशी-स्तुतिः, किं प्रियं कालिदासस्य, वेंकटमाधव का भाष्य याज्ञिक पद्धति के अनुसार और
नरेन्द्रो विवेकानन्दः, श्लिष्टप्रकीर्णक, किमिंद तव कार्मणम्, कालः संक्षिप्त है। 'वर्जयन् शब्दविस्तरम्' शब्दविस्तार को वर्ण्य कर
कविः, संक्रान्तिमहः, कविर्ज्ञानी ऋषिः, विश्वभिक्षुस्तवः, यह उनकी प्रतिज्ञा है। 'ऋक्संहिता का अर्थ जानने के लिए
कामकोटिकार्मण, गृहीतमिवान्तरंगम्, कावेरी, शब्दः (नृत्यगीत), केवल- निरुक्त और व्याकरण पर्याप्त नहीं, उसके लिये
वैवर्तपुराणम्, ब्रह्मपत्र, महात्मा, दम्मविभूतिः,गोपहम्पनः, और ब्राह्मण-ग्रंथों का ज्ञान आवश्यक है'- यह माधवाचार्य की
स्वराज्यकेतु। संपादक- प्रतिभा (साहित्य अकादमी की संस्कृत भूमिका है। भाल्लानि, मैत्रायणीय और चरकों का मन्त्रोपबृंहण
पत्रिका, जर्नल ऑफ ओरिएंटल रिसर्च, जर्नल ऑफ म्युझिक करने वाले ब्राह्मण-ग्रंथ हमने सुने नहीं, ऐसा उन्होंने निर्देश
अकादमी। किया है। इससे स्पष्ट है कि माधवाचार्य का ब्राह्मण-ग्रंथों के
महाकाव्य- मुत्तुस्वामी दीक्षितचरित। इसका प्रकाशन सन् अभ्यास पर कितना बल था। सामवेद का विवरण भी
1955 में मद्रास में कांचीकामकोटि के शंकराचार्य की अध्यक्षता माधवाचार्य के नाम पर प्रसिद्ध है। विवरणकार और ऋग्भाष्यकार में हुआ। माधवाचार्य एक ही हैं या नहीं यह गवेषणा का विषय है। रूपक- विमुक्ति, रासलीला, कामशुद्धि, पुनरुन्मेष, वेंकट रंगनाथ (म.म.) - सन् 1822-1900 । भारद्वाज-वंशीय। लक्ष्मीस्वयंवर, आषाढस्य प्रथमदिवसे, महाश्वेता, प्रतापरुद्रविजय विजगापट्टम-निवासी। राजकीय उपाधि से सम्मानित। संस्कृत और अनारकली। पाठशाला में अध्यापक। प्रसिद्ध पौरिणिक कथावाचक। पिता- प्रेक्षणक (ओपेरा) -विकटनितम्बा, अवन्तिसुन्दरी तथा महाकवि श्रीनिवास गुरु थे। अंग्रेजी तथा संस्कृत के विद्वान्। विज्जिका।
कृतियां- मंजुल-नैषध (नाटक), कुंभकर्णविजय, अनूदित रूपक - वाल्मीकि-प्रतिभा और नदीपूजा। आंग्लाधिराज- स्वागत, संस्कृत भाषा और साहित्य विषयक इसके अतिरिक्त संस्कृत में अनेक समावर्तन, भाषण, अनुवाद, विश्वकोश (अप्रकाशित) तथा संस्कृत व्याकरण के सरलीकरण टीकाएं तथा गद्य-निबन्ध। इनका प्रमुख कार्य है न्यू कैटलागस विषयक दो निबंध।
कॅटलागोरम् का सम्पादन। वेंकटरमणार्य - ई. 20 वीं शती। चेन्नराय नामक गांव वेंकटसुब्रह्मण्याध्वरी - त्रावणकोर के राजा बालरामवर्मा (कर्नाटक) के निवासी। कुछ दिन बंगलोर की चामराजेन्द्र (1758-1782 ई.) की राजसभा में सम्मानित । पिता-वेंकटेश्वर संस्कृत महापाठशाला के अध्यक्ष। तत्पश्चात् मैसूर की संस्कृत मखी। विख्यात पंडित अप्पय दीक्षित के वंशज । व्याकरण, पाठशालाओं के निरीक्षक। सेवानिवृत्ति के समय मैसूर की मीमांसा, तर्क तथा साहित्य के प्रकाण्ड पण्डित । संस्कृत शाला के उपदेष्टा।
"वसुलक्ष्मीकल्याण" नामक नाटक के प्रणेता। कृतियां- स्तुतिकुसुमांजलि, हरिश्चन्द्रकाव्य, सर्वसमवृत्त-प्रभाव, वेंकटाचार्य - समय- ई. 18 वीं शती का उत्तरार्ध । कमलाविजय (टेनिसनकृत नाटक का अनुवाद) और पिता-श्रीनिवास, माता-वेंकटाम्बा। गुलबर्गा (आन्ध्रप्रदेश) के जीवसंजीवनी।
निवासी। गुरु- वेंकटदेशिक। अनुज- अण्णैयाचार्य ("रसोदार" वेंकटराम राघवन् (डॉ) (पद्मभूषण) - जन्म दि. भाण के प्रणेता)। छोटे भाई श्रीनिवासाचार्य (कल्याणराघव 22-8-1908 को, तिरूवायुर नगर (जिला तंजौर) में। पिता- नाटक के प्रणेता) । भागिनेय वुच्चि वेंकटाचार्य) "कल्याणपुरंजन" वेंकटराम अय्यर। माता- मीनाक्षी। प्रेसिडेन्सी कालेज, मद्रास नाटक के रचयिता) स्वयं "अमृतमन्थन" नामक पांच अंकी में म.म. कुप्पुशास्त्री के अधीन 'शृंगारप्रकाश' पर पीएच.डी. नाटक के लेखक।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ट । 459
For Private and Personal Use Only