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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरसेन - ये मूलसंघ के पंचस्तूपान्वय शाखा के आचार्य थे। एलाचार्य के पास चित्रकूट (चित्तोड) में सिद्धान्त ग्रंथों का अध्ययन किया और बाद में दीक्षागुरु की आज्ञा से बाटग्राम (बडोदा) पहुंचे। वहां जिनालय में बप्पदेव द्वारा निर्मित टीका प्राप्त हुई। अनंतर उन्होंने समस्त षट्खण्डागम की 'धवला' टीका लिखी। तत्पश्चात् कषायप्राभृत की चार विभक्तियों की 'जयधवला' टीका लिखे जाने के बाद उनका स्वर्गवास हो गया। उनके शिष्य जिनसेन द्वितीय ने अवशेष जयधवलाटीका लिख कर पूरी की। यह जयधवलाटीका अमोघवर्श के काल में श.सं. 738 में समाप्त हुई। अतः वीरसेन का समय ई. 8 वीं शताब्दी है। वीरसेन की धवला और जयधवला टीका, प्राकृत-संस्कृत मिश्रित भाषा में मणि-प्रवाल रीति से लिखी गई है। इसे विचार-प्रगल्भता और विषय की प्रौढता के कारण 'उपनिबन्धन' कहा गया है। इसमें दो मान्यताओं का उल्लेख मिलता हैदक्षिणप्रतिपत्ति (परम्परागत) और उत्तरप्रतिपत्ति (अपरपरम्परागत)। वीरसेन ने सूत्रों में प्राप्त होने वाले पारम्परिक विरोधों का समन्वय भी किया है। शैली की दृष्टि से इसमें पांच गुण समाहित हैं- प्रसादगुण, समाहारशक्ति, तर्क या न्यायशैली, पाठकशैली तथा सृजक शैली। वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य - जन्म सिलहट (बंगाल) में, सन् 1917 में। उच्च शिक्षा कलकत्ता वि.वि. में। सन् 1940 में दर्शन में एम.ए.। सन 1948 में डी.लिट् । सन् 1943 से 1948 तक सेण्ट पाल कालेज (कलकत्ता) में अध्यापन । दर्शन-विभागाध्यक्ष । तदुपरान्त शासकीय सेवा में। सन् 1967 में संस्कृत में लिखना प्रारम्भ। 'साहित्य-सूरि' उपाधि से अलंकृत । कृतियां- कविकालिदास, शार्दूल-शकट, सिद्धार्थचरित, वेष्टनव्यायोग, गीतगौरांग, शरणार्थि-संवाद, शूर्पणखाभिसार, लक्षण-व्यायोग, चार्वाकताण्डव, मर्जिना- चातुर्य, सुप्रभा- स्वयंवर, मेघदौत्य और झंझावृत्त । इन नाट्य ग्रंथों के अतिरिक्त कलापिका और उमरख्ययाम की रुबाइयों का संस्कृत अनुवाद भी आपने लिखा है। बंगाली कृतियां-ए देहमन्दिर, स्वप्नसंहार, सुरा ओ साकी, पवनदूत, रामपरिगेर, छडा और दूतीप्रणय शतक। अंग्रेजी में भी, कॅजुअॅलिटी इन सायन्स अॅण्ड फिलासॉफी और लॉजिक व्हेल्यू ऍण्ड रिएलिटी नामक दो ग्रंथ श्रीभट्टाचार्य ने लिखे। वीरेश्वर पण्डित - ई. 18 वीं शती। बंगाल के निवासी। वेणीदत्त तर्कवागीश के पिता। दो रचनाएं - "रस-रत्नावली' और कृष्णविजयचम्पूः । वेंकट (वेंकटार्य कवि) - पिता- श्रीनिवासाचार्य । निवासस्थानसुरसिद्धिगिरि नगर। समय- ई. 17 वीं शती का अंतिम चरण या 18 वीं शती का प्रारंभ। "बाणासुर-विजय चंपू' के रचयिता। इनका चंपू-काव्य अभी तक अप्रकाशित है। वेंकट - समय- ई. 19 वीं शती। कौण्डिन्यगोत्री। पिता वेदान्ताचार्य । 'रसिकजन- मनोल्लास' नामक भाण के रचयिता। वेंकटकवि - समय- ई. 18 वीं शती के आस-पास । पितावीरराघव। वैष्णव। 'विबुधानंद-प्रबंध-चंपू' के रचयिता। ग्रंथ के आरंभ में इन्होंने वेदांतदेशिक (महाकवि) की वंदना की है। इनका यह चंपू काव्य अभी तक अप्रकाशित है। वेंकटकृष्ण तम्पी - जन्म 1890- मृत्यु 1938 ई. । केरलनिवासी। त्रिवेन्द्रम संस्कृत कालेज में अध्यापक और प्राचार्य। कृतियांश्रीरामकृष्ण-चरित, धर्मस्य सूक्ष्मा गतिः, ललिता, प्रतिक्रिया व वनज्योत्स्ना। इनके अतिरिक्त मलयालम भाषा में कतिपय पुस्तकें लिखी हैं। वेंकटकृष्ण दीक्षित - तंजोर के शाहजी महाराज के आश्रित । सन् 1693 में शाहजीपुरम् के अग्रहार में भाग प्राप्त। पितावेंकटाद्रि। कृतियां- (नाटक) "कुशलव- विजय। (काव्य) नरेश-विजय, श्रीरामचन्द्रोदय और उत्तरचम्पू। वेंकटकृष्ण राव - ई. 20 वीं शती। "भक्तिचन्द्रोदय' नामक तीन अंकी नाटक के प्रणेता। वेंकटनाथ (वेदांतदेशिक) - समय- 1269-1369 ई.। आप 'कवि-तार्किकसिंह' व 'सर्वतंत्रस्वतंत्र' नामक उपाधियों से समलंकृत हुए थे। इनका जन्म कांजीवरम् के निकट तुप्पिल नामक ग्राम में हुआ था। पिता- अनंत सूरि । माता- तोतरम्मा । ये विशिष्टाद्वैत वेदांत के महान् व्याख्याता माने जाते हैं। इन्होंने सांप्रदायिक ग्रंथों के अतिरिक्त, काव्य-कृतियों की भी रचना की थी, जिनमें काव्यतत्त्वों का सुंदर समावेश है। इनके काव्यों में 'संकल्पसूयोदय (महानाटक), 'हंसदूत', 'रामाभ्युदय', 'यादवाभ्युदय', 'पादुकासहस्र' आदि प्रमुख हैं। इनके प्रमुख दार्शनिक ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है- तत्त्वटीका (यह श्रीभाष्य की विशद व्याख्या है), न्याय-परिशुद्धि व न्याय-सिद्धांजन (इन दोनों ग्रंथों में विशुद्धाद्वैतवाद की प्रमाण-मीमांसा का वर्णन है), अधिकरण-सारावली (इसमें ब्रह्मसूत्रों के अधिकरणों का श्लोकबद्ध विवेचन किया गया है), तत्त्वमुक्ताकलाप, गीतार्थ-तात्पर्यचंद्रिका (यह रामानुजाचार्य के गीता-भाष्य की टीका है), ईशावास्य-भाष्य, द्रविडोपनिषद्, तात्पर्य-रत्नावली, शतदूषणी, सेश्वर-मीमांसा, पांचरात्र-रक्षा, सच्चरित्र-रक्षा, निक्षेप-रक्षा व न्यायविशंति। वेंकटनारायण - तंजौर- अधिपति शाहजी राजा की सभा के पंडित। जैन मुनि सुमतीन्द्राभिक्षु का चरित्र, उनके इस कवि शिष्य ने अपने 'सुमतीन्द्रविजय-घोषण' नामककाव्य में प्रस्तुत किया है। वेंकट मखी- गोविन्द मखी दीक्षित के पुत्र। यज्ञनारायण के भाई। रचनाएं- साहित्यसाम्राज्यम् (महाकाव्य)। चतुर्दानादिप्रकाशिका और वार्तिकाभरण नामक दो शास्त्रीय रचनाएं। पिता के संगीत-सुधानिधि तथा रामायण (सुन्दरकांड) पर टीकाएं। इनके लक्षण-गीत, संगीत-संप्रदाय-प्रदर्शिनी में 458 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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