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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परम धर्म है। आपके चरणों की सेवा का अवसर मिला, इससे मेरा जीवन कृतार्थ हो गया है। आपके चरणों में मस्तक रखकर आपके पहले इस संसार से बिदा लूं यही मेरी इच्छा है"। इतना सुनते ही उन्हें स्मरण हो आया कि यह तो अपनी पत्नी ही है। अपनी पत्नी के नाम पर ही भामती नामक ग्रंथ लिख कर, उसे अमर बना दिया। भारतीय दर्शन में वाचस्पतिकृत भामती भाष्य का महघतवपूर्ण स्थान है। इसे “भामतीप्रस्थान" कहते है। भामती के अतिरिक्त इन्होंने सुरेश्वर की ब्रह्मसिद्धि पर ब्रह्मतत्त्व-समीक्षा, सांख्याकारिकाओं पर तत्त्वकौमुदी, पातंजल-दर्शन पर तत्त्ववैशारदी, न्यायदर्शन पर न्यायवार्तिकतात्पर्य व न्यायसूची-निबंध, भाट्टमत पर तत्त्वबिंदू तथा मंडनमिश्र के विधिविवेक नामक ग्रंथ पर न्यायकणिका नामक टीका लिखी है। उनका भामती नामक व्याख्याग्रंथ अद्वैतदर्शन का प्रमाण ग्रंथ माना जाता है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि वाचस्पति मिश्र के रूप में सुरेश्वराचार्य ने ही पुनर्जन्म लिया था। इन्हें तात्पर्याचार्य तथा षड्दर्शनीवल्लभ की भी उपाधियां प्राप्त थी। __(2) ई. 15 वीं शती के एक धर्मशास्त्रकार । मिथिला-निवाासी। "अभिनव वाचस्पति मिश्र" के नाम से विख्यात। ये राजा बहिरवेन्द्र व रामभद्र के दरबार में थे। इनका विवादचिंतामणि नामक ग्रंथ आज भी भारत के वरिष्ठ न्यायालयों में उपयोग में लाया जाता है। इसके आलवा इन्होंने आचार-चिंतामणि, आह्निक-चिंतामणि, शद्ध-चिंतामणि. कत्य-चिंतामणि, तीर्थचिंतामणि, द्वैतचिंतामणि, नीतिचिंतामणि, व्ययचिंतामणि, शूद्र-चिंतामणि व श्राद्धचिंतामणि, तिथि-निर्णय, द्वैतनिर्णय, महादाननिर्णय, महावर्ण तथा दत्तक-विधि नामक ग्रंथों की रचना की है। श्राद्धकल्प अथवा पितृभक्तितरंगिणी नामक ग्रंथ भी आपने ही लिखा है। वाटवे शास्त्री - कुरुन्दवाड (महाराष्ट्र) के निवासी। रचनाएंकलियुगाचार्य-स्तोत्र, कलियुगप्रतापवर्णनम्, कलिवृत्तादर्शनपुराणम्, अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग इनकी संस्कृत रचनाओं में हुए हैं। वाणी अण्णय्या - प्रख्यात तेलगु कवि। तंजौर के श्रीधर अय्यावल के शिष्य। रचनाएं- व्यास-तात्पर्य-निर्णय और यश-शास्त्रार्थ-निर्णय। वात्स्यायन - समय- ई. पूर्व 3 री शती। इन्होंने कामसूत्रों की रचना की। इनका नाम मल्लनाग था किन्तु ये अपने गोत्रनाम "वात्स्यायन" के रूप में ही विख्यात हुए। कामसूत्र में जिन प्रदेशों के रीति-रिवाजों का विशेष उल्लेख किया गया है, उनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि वात्स्यायन पश्चिम अथवा दक्षिण भारत के निवासी रहे होंगे। कामसूत्र के अंतिम श्लोक से यह जानकारी मिलती है कि वात्स्यायन ब्रह्मचारी थे। पंचतंत्र में इन्हें वैद्यकशास्त्रज्ञ बताया गया है। मधुसूदन शास्त्री ने कामसूत्रों को आयुर्वेदशास्त्र के अन्तर्गत माना है। वात्स्यायन ने प्राचीन भारतीय विचारों के अनुरूप, काम को पुरुषार्थ माना है। अतः धर्म व अर्थ के साथ ही मनुष्य को काम (पुरुषार्थ) की साधना कर जितेन्द्रिय बनना चाहिये। वात्स्यायन के कामसूत्र सात अधिकरणों में विभाजित हैं : 1) सामान्य, 2) सांप्रयोगिक, 3) कन्यासंप्रयुक्त, 4) भार्याधिकारिक, 5) पारदारिक, 6) वैशिक और 7) औपनिषदिक। इन्होंने अपने ग्रंथ में कुछ पूर्वाचार्यों का उल्लेख किया है जिनसे यह जानकारी मिलती है कि सर्वप्रथम नंदी ने एक हजार अध्यायों के बृहद् कामशास्त्र की रचना की, जिसे आगे चलकर औद्दालिकी श्वेतकेतु और बाभ्रव्य पांचाल ने क्रमशः संक्षिप्त रूपों में प्रस्तुत किया। वात्स्यायन का कामसूत्र इनका अधिक संक्षिप्त रूप ही है। कामसूत्रों से तत्कालीन (17 सौ वर्ष पूर्व के) समाज के रीति रिवाजों की जानकारी भी मिलती है। ___ "कामसूत्र" पर वीरभद्रकृत “कंदर्पचूडामणि", भास्करनृसिंहकृत कामसूत्र-टीका तथा यशोधर-कृत कंदर्पचूडामणि नामक टीकाएं उपलब्ध हैं। वात्स्यायन (न्यायसूत्र के भाष्यकार) - इनके ग्रंथ में अनेक वार्तिकों के उद्धरण प्राप्त होते हैं। इससे ज्ञात होता है कि इनके पूर्व भी न्यायसूत्र पर अनेक व्याख्या ग्रंथों की रचना हुई थी, किंतु संप्रति इनका भाष्य ही एतद्विषयक प्रथम उपलब्ध रचना है। इनके भाष्य पर उद्योतकराचार्य ने विस्तृत वार्तिक की रचना की है। इनका ग्रंथ "वात्स्यायनभाष्य" के नाम से प्रसिद्ध है जिसका समय विक्रम पूर्व प्रथम शतक माना जाता है। संस्कृत साहित्य में वात्स्यायन नामक अनेक व्यक्ति हैं, जिनमें "कामसूत्र" के रचयिता वात्स्यायन भी हैं पर न्यायसूत्र के भाष्यकार प्रस्तुत वात्स्यायन उनसे सर्वथा भिन्न हैं। "वात्स्यायन-भाष्य" के प्रथम सूत्र के अंत में चाणक्य-रचित "अर्थशास्त्र" का एक श्लोक उद्धत है। अतः विद्वानों का अनुमान है कि चाणक्य (कौटिल्य) ही न्यायसूत्र के भाष्यकार हैं पर यह मत अभी तक पूर्णतः मान्य नहीं हो सका। __वात्स्यायन ने "न्यायदर्शन" अध्याय 2, अधिकरण-सूत्र 40 वी व्याख्या में उदाहरण प्रस्तुत करते हुए चांवल पकाने की विधि का वर्णन किया है। इसके आधार पर विद्वान उन्हें द्रविड प्रदेश का निवासी मानते है। वादिचन्द्र (प्रतिष्ठाचार्य) - समय- ई. 17 वीं शती। जैन आचार्य व साहित्यकार। बलात्कारगण की सूरत शाखा के भट्टारक। गुरु- प्रभाचन्द्र। दादा गुरु- ज्ञानभूषण। जाति-हुंवड, रचनाएं- पार्श्वपुराण (1580 श्लोक), श्रीपाल आख्यान, सुभगसुलोचनाचरित (9 परिच्छेद), ज्ञानसूर्योदय (लाक्षणिक नाटक), पवनदूत (101 पद्य), पाण्डवपुराण, यशोधर-चरित और होलिका-चरित। इनका कार्यक्षेत्र गुजरात था। इन्होंने अपने पवनदूत की रचना मेघदूत के अनुकरण पर की है। कथा काल्पनिक है। उसका प्रकाशन (हिन्दी अनुवादसहित) हिन्दी 444 । संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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