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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वंशगोपाल शास्त्री - रचनाएं- चेतना क्वास्ते तथा वत्सभट्टि - इनके द्वारा प्रणीत कोई भी ग्रंथ उपलब्ध नहीं शुक्रलोक-यात्रा। ये दोनों रचनाएं डा. राघवन द्वारा उल्लिखित होता, एकमात्र 'मंदसौर- प्रशस्ति' प्राप्त होती है जो कुमारगुप्त तथा संस्कृत साहित्य पत्रिका एवं संस्कृतम् में प्रकाशित। के राज्यकाल में उत्कीर्णित हुई थी। इस प्रशस्ति का रचना-काल वंशमणि - ई. 17 वीं शती। नेपाल में राजा प्रतापमल्ल मालव-संवत् 529 है। इसमें रेशम-बुनकरों द्वारा निर्मित एक का आश्रय प्राप्त। पिता- रामचंद्र। मैथिल ब्राह्मण। रचना- सूर्य-मंदिर का वर्णन किया गया है जिसका निर्माण 437 ई. गीतदिगम्बर। इस की अष्टक रचनाएं नेपाल में मंदिरों की और जीर्णोद्धार 473 ई. में संपन्न हुआ था। इस प्रशस्ति में दीवारों पर अंकित की हैं। 44 श्लोक हैं ।इसके प्रारंभिक श्लोकों में भगवान भास्कर की वंशीधर शर्मा - भावार्थप्रदीपिका- प्रकाश (वंशीधरी) नामक स्तुति एवं बाद में दशपुर (मंदसौर) का मनोरम वर्णन है। भागवत की विशालकाय टीका के लेखक। कौशिक गोत्री पश्चात् वत्सभट्टि ने तत्कालीन नरेश नरपति बंधुवर्मा का गौड-वंशी ब्राह्मण। नाभा-नरेश हीरासिंग के आश्रित। इनकी प्रशस्ति-गान किया है जिनका समय ई. 5 वीं शती है। यह 'वंशीधरी', इनके जीवन-काल ही में वेंकटेश्वर प्रेस मुंबई से प्रशस्ति काव्यशास्त्रीय दृष्टि से उच्च कोटि की है। इस पर 1945 विक्रमी (1888 ई) में प्रकाशित हुई थी। अतः इनका महाकवि कालिदास की छाया परिलक्षित होती है। समय ई. 19 वीं शती का उत्तरार्थ (लगभग 1828 ई. - वत्सराज - नाटककार। कालिंजर-नरेश परमर्दिदेव के मंत्री। 1890 ई.) है। 'वंशीधरी' के उपसंहार के परिचय-पद्यों से समय 1163 ई.से 1203 ई.का मध्य। इनके द्वारा रचित 6 पता चलता है कि आप हिमालय प्रदेश के 'खरड' नामक नाटक प्रसिद्ध हैं। कर्पूरचरित (भाण), किरातार्जुनीय (व्यायोग), ग्राम में निवास करते थे जो हिमालय के पश्चिम में स्थित रुक्मिणी- हरण (ईहामृग), त्रिपुर-दाह (डिम), हास्यचूडामणि है। इनकी वंश-परंपरा इस प्रकार है - बलराम शर्मा भूधर- (प्रहसन) और समुद्रमंथन (तीन अंकों वाला समवकार)। गौरीप्रसाद- सुखदेव शर्मा- गजराज शर्मा- निक्काराम- वंशीधर इनके रूपकों (नाटकों) में क्रियाशीलता, रोचकता तथा घटनाओं शर्मा- लक्ष्मीनारायण। की प्रधानता स्पष्टतः दीख पडती है। __ आपकी वंशीधरी अलौकिक पांडित्य से पूर्ण तथा प्राचीन वनमाली मिश्र - (1) ई. 17 वीं शती। माध्व सम्प्रदाय आर्ष ग्रंथों के उद्धरणों से परिपुष्ट है। इसमें अनेक शंकाओं के एक वेदान्ती आचार्य। वेदान्त- सिद्धान्त- संग्रह नामक ग्रंथ का भी समाधान किया गया है। वेद-स्तुति की व्याख्या 5 के रचयिता। इस ग्रंथ में मध्वसम्प्रदाय के महत्त्वपूर्ण तत्त्वों प्रकार से करना, आपके प्रकांड पांडित्य का प्रमाण है। निःसंदेह की जानकारी दी गयी है। आपके अन्य ग्रंथ हैं- माध्व यह एक सिद्ध टीका है। इसके द्वारा श्रीधर स्वामी की मुखालंकार, न्यायामृत-सौगन्ध, वेदान्तसिद्धान्त- मुक्तावली, भावार्थ-दीपिका (श्रीधरी), वास्तव ही में प्रकाशित हुई है। श्रुतिसिद्धान्तप्रकाश, विष्णुतत्त्वप्रकाश, तरंगिणीसौरभ, भक्तिरत्नाकर स्तुतियों की टीका में इनका दार्शनिक पांडित्य भी पग-पग पर और प्रमाणसंग्रह। दृष्टिगोचर होता है। वास्तविकता से दूर होते हुए भी, वंशीधर, (2) ई. 17 वीं शती में भट्टोजी दीक्षित के शिष्य श्रीमद्भागवत तथा देवीभागवत को ही समानरूपेण महापुराण के रूप में ख्यातिप्राप्त ग्रंथकार जिन्हें कृष्णदत्त मिश्र नाम से अंगीकार करते हैं। आप भागवत में 335 अध्याय और 18 भी जाना जाता था। आपने जिन पांच ग्रंथों की रचना की, हजार पूरे श्लोक मानते हैं। गिनती करके सिद्ध भी किया वे हैं :- 1. कुरुक्षेत्रप्रदीप, 2. सर्वतीर्थ प्रकाश, 3. संध्यामंत्रव्याख्या, है। प्रकांड पांडित्य के साथ विनम्रता आपका एक वैशिष्ट्य है। 4. वैयाकरण- मतोन्मजना तथा 5. सिद्धान्ततत्त्वविवेक। वज्रदत्त - महाराज देवपाल (नवम शती) के आश्रित कवि। वर्णेकर, श्रीधर भास्कर - जन्म 31 जुलाई 19181 रचना- लोकेश्वर शतक (अवलोकितेश्वर बुद्ध का स्तवन)। नागपुर में माध्यमिक और उच्च शिक्षा का अध्ययन। सन वझे, भाऊशास्त्री - समय 20 वीं शती। वाराणसी एवं 1938 में काव्यतीर्थ। 1941 में एम.ए. (संस्कृत)। 1945 में नागपुर में निवास । रचना- काशीतिहासः। वाराणसी निवासी एम.ए. (मराठी), 1966 में "अर्वाचीन संस्कृत साहित्य" इस प्रख्यात पण्डित तथा श्रेष्ठ प्रवचनकार। वेदकाल से स्वातंत्र्य प्रबन्ध पर नागपुर विश्वविद्यालय से डी.लिट्. की उच्चतम उपाधि पर्यंन्त काशीसम्बधी समग्र इतिहास इन्होंने अपने ग्रंथ में संक्षेप प्राप्त । अध्यापन- धनवटे नेशनल कॉलेज में 1941 से 59 में दिया है। तक, बाद में नागपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग में वत्सकाण्व - ऋग्वेद के आठवें मंडल के छठे सूक्त के । नियुक्ति। 1970 से 1979 तक संस्कृत विभागाध्यक्ष । सेवानिवृत्ति द्रष्टा। पिता का नाम कण्व। सूक्त में इन्द्र व तिरिदर की। के बाद प्रस्तुत संस्कृत वाङ्मय कोश के संपादन का निवेतन स्तुति की गयी है। तिरिदर, पशुदेश अर्थात् ईरान का राजा ___कार्य। संस्कृत के क्षेत्र में विविध प्रकार के दायित्व डा. था। इस कारण भौगोलिक दृष्टि से इनके सूक्त को विशेष वर्णेकर ने सम्हाले। 1950 से 56 से नागपर में संस्कस 436 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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