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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भवितव्यम् एवं राष्ट्रशक्ति (मराठी) साप्ताहिक तथा योगप्रकाश अप्रकाशित लेख। (मराठी मासिक) के संपादक। 1952 से संस्कृत विश्व परिषद् वरकर कृष्ण मेनन - त्रिचूर (कोचीन) निवासी, रचनाएं(कुलपति कन्हैयालाल मुन्शी द्वारा संस्थापित) के अ.भा. गाथाकादम्बरी (बाणभट् की कादम्बरी का पद्य रूप ) और संगठन मन्त्री। 1956 में पुराने मध्यप्रदेश शासन के संस्कृत टॉमसनकृत दो अंग्रेजी काव्यों का संस्कृत अनुवाद। पाठशाला पुनर्गठन समिति के सदस्य। 1953 में युनेस्को द्वारा वरद कृष्णम्माचार्य - वालतूर (तंजौर) निवासी। समय- ई. प्रवर्तित अ.भा.संस्कृत कथा-स्पर्धा के संयोजक। 1973 से 83 19 वीं शती। रचना- कचशतक और विधवाशतक । तक महाराष्ट्र राज्य की संस्कृत समिति के सदस्य। भारत वरदराज - तैत्तिरीय आरण्यक के भाष्यकार वरदराज दाक्षिणात्य सरकार की तांत्रिक एवं वैज्ञानिक परिभाषा समिति के सदस्य । थे। पिता- वामनाचार्य। पितामह- अनन्तनारायण। इन्होंने साहित्य अकादमी की जनरल कौन्सिल तथा संस्कृत समिति सामवेदीय कई सूत्रों पर वृत्ति वा भाष्य लिखे हैं किन्तु उनका के 1973 से दस साल तक सदस्य। 1973 में शिवराज्योदय कोई भी हस्तलेख अभी तक नहीं मिला। महाकाव्य (68 सर्ग) पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त । वरदराज - (1) ई. 16 वीं शती। मीमांसादर्शन के 1983 में श्रीराम संगीतिका (गीतिनाट्य) पर मध्यप्रदेश शासन प्राभाकर-मतानुयायी आचार्य। आपने भवनाथ मिश्र के न्यायविवेक का अ.भा. कालिदास पुरस्कार प्राप्त। 1983 में न्यूयार्क की ग्रंथ पर दीपिका और अर्थदीपिका नामक टीकाएं लिखी हैं। संस्कृत परिषद् में भारत के प्रतिनिधि। 1961 और 82 में पिता- रंगनाथ । गुरु- सुदर्शन। आप ज्योतिष, व्याकरण और आकाशवाणी के अखिल भारतीय कवि-सम्मेलन में संस्कृत आयुर्वेद शास्त्र के भी पंडित थे। काव्यगायन। इसके अतिरिक्त डा. वर्णेकर नागपुर की अनेक सांस्कृतिक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। भारत के अन्यान्य प्रांतों (2) 'व्यवहारनिर्णय' ग्रंथ के रचयिता वरदराज के काल में आयोजित संस्कृत परिषदों का अध्यक्षपद आपने विभूषित के सम्बन्ध में मतभेद है। कोई उन्हें ई. 12 वीं शती का किया और अपने प्रचार कार्य में सैकडों स्थानों पर संस्कृत और कोई ई. स. 1450-1500 के कालखण्ड का मानते हैं। भाषा में व्याख्यान दिए। डा. श्री.भा. वर्णेकर के प्रकाशित उक्त ग्रंथ दक्षिण भारत में प्रमाणभूत माना जाता है। ग्रंथ- (संस्कृत में) - (1) मन्दोर्मिमाला (छात्रावस्था में (3) भट्टोजी दीक्षित के एक शिष्य का नाम वरदराज था लिखित मुक्तक काव्यों का संग्रह) (2) महाभारत कथा (तीन जिनका उपनाम दीक्षित था। आपने सिद्धान्त कौमुदी पर भाग), (3) संस्कृतनाट्यप्रवेशाः, (4) प्रश्नावलीविमर्श- (भारत। आधारित मध्यसिद्धान्तकौमुदी व लघुसिद्धान्तकौमुदी नामक ग्रंथ सरकार के संस्कृत आयोग की प्रश्रावली के उत्तरार्थ-निबंध), लिखे हैं। 'गीर्वाणपदमंजरी' नामक एक अन्य ग्रंथ भी आपने (5) जवाहर-तरंगिणी (खंडकाव्य)। (6) विनायक-वैजयन्ती लिखा है जिसमें काशी के अनेक घाटों के नाम दिये गये हैं। (खंडकाव्य- स्वातंत्र्यवीर सावरकरविषयक)। (7) कालिदास वरदाचार्य - ई. 17 वीं शती। जन्म-रामानुजाचार्य के वंश रहस्य (खंडकाव्य), (8) रामकृष्ण परमहंसीयम् (खंडकाव्य)।। में, कांचीपुरी में। रामानुज सम्प्रदाय के अनुयायी। उपनाम(9) वात्सल्यरत्रम् (कृष्णलीलाशतक), (10) शिवराज्योदय अम्मल आचार्य। पिता- घटिकाशत सुदर्शन, एक घटिका में (68 सर्ग 4 हजार श्लोक) महाकाव्य- साहित्य अकादमी सौ पद्य लिख सकने के कारण वे 'घटिकाशत' नाम से पुरस्कार प्राप्त), (11) विवेकानंद- विजय (10 अंकी नाटक)। विख्यात थे। रचनाएं- यतिराजविजय, वेदान्तविलास और (12) शिवराज्याभिषेक (7 अंकी नाटक)। (13) वसन्ततिलक (भाण)। भाण की रचना, रामभद्र के श्रृंगारतिलकश्रीरामसंगीतिका (गीतिनाट्य) 11 अंकी (म.प्र. शासन का भाण को नीचा दिखाने के लिये इन्होंने की थी। कालिदास पुरस्कार प्राप्त) (14) श्रीकृष्ण-संगीतिका (गीतिनाट्य- वरदाचार्य - वेंकटदेशिक के पुत्र। रचना- कोकिलसन्देश अंकी)। (15) श्रमगीता। नामक दूतकाव्य। (16) संघगीता। (17) ग्रामगीतामृतम् (41 अध्याय) । (18) वरदादेशिक - ई. 17 वीं शती। पिता- श्रीनिवास। रचनाएंतीर्थभारतम् (गीति महाकाव्य- न्यूर्याक की संस्कृत परिषद में लक्ष्मीनारायणचरित, वराहशतक, वल्लीशतक, गद्यरामायण, प्रकाशित)। इनमें से कुछ काव्यों के अन्यान्य भाषाओं में रघुवीरविजय और रामायणसंग्रह। अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। वररुचि - एक वैयाकरण। इनके कालखण्ड के बारे में मराठी में प्रकाशित ग्रंथ - (1) अर्वाचीन संस्कृत साहित्य । काफी मतभेद है। कोई इन्हें ई. 4 थी तो कोई 5 वीं शती (बृहत्प्रबंध) (2) अभंगधर्मपद (धम्मपद का अभंग छन्द में का मानते हैं। पं. भगवद्दत्त के अनुसार ये ई. प्रथम शती गेय रूपांतर) । (3) सुबोधज्ञानेश्वरी। (4) भारतीय धर्म-तत्त्वज्ञान मे हुए जब कि श्री. विल्सन इन्हें ई. पूर्व प्रथम शती का (प्रबंध)। मानते हैं। सामान्यतया इनका कालखण्ड पाणिनि के बाद और हिन्दी में भारतीयविद्या (प्रबंध)। इसके अतिरिक्त अनेक पतंजलि के पूर्व का मानने की प्रवृत्ति है। महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 437 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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