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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HHHHHHHH आपने प्रभाचन्द्र का उल्लेख किया है। अतः समय ई. 11 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध होना चाहिये। रचना- "प्रमेयरत्नमाला" जिसमें प्रमाण और प्रमाणाभास का प्रतिपादन है। हेमचंद्र की प्रमाणमीमांसा प्रस्तुत प्रमेयरत्नमाला से पूर्णतः प्रभावित है। लघुसमन्तभद्र - अपरनाम-कुलचन्द्र उपाध्याय। वंश ब्राह्मण। समय- ई. 13 वीं शती। ग्रंथ- विद्यानंद की अष्टसहस्री पर विषमतात्पर्यवृत्ति नामक टिप्पण। लबऐंद्र - ऋग्वेद के 10 वें मंडल के 119 वें सूक्त के द्रष्टा। आत्मा की स्तुति इस सूक्त का विषय है और छंद गायत्री है। "बृहद्देवता" के अनुसार इन्द्र को लबऋषि के रूप में सोमरस का पान करते हुए ऋषियों ने देखा। सोमपान से मदोन्मत्त शरीरावस्था और पराक्रम का वर्णन इस सूक्त में किया गया है। ललितकीर्ति - जैनधर्मी काष्ठासंघ माथुरगच्छ और पुष्करगण के भट्टारक आचार्य। दिल्ली की भट्टारकीय गद्दी के पट्टधर । मन्त्र-तन्त्रवादी। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा सम्मानित । रचनाएंमहापुराण टीका (तीन खण्ड) तथा 24 कथाएं। ललितमोहन - मृत्यु- सन् 1972 के लगभग। पुराणपुर ग्राम (जिला-बर्दवान, बंगाल) के निवासी। काव्यतीर्थ, व्याकरणतीर्थ व स्मृतितीर्थ। “कविभूषण' की उपाधि से विभूषित। "देवीप्रशस्ति" नामक नाटक के प्रणेता। लल्ल - "शिष्यधीवृद्धिद-तंत्र" नामक प्रसिद्ध ज्योतिषशास्त्रीय ग्रंथ के प्रणेता जिसमें एक सहस्र श्लोक हैं, जिसका संपादन सुधाकर द्विवेदी द्वारा किया गया है और जो 1886 ई. में बनारस से प्रकाशित हुआ है। इनके समय के बारे में विद्वानों में मतभेद पाया जाता है। म.म. पंडित सुधाकर द्विवेदी के अनुसार इनका समय 5 वीं शती है पर शंकर बालकृष्ण दीक्षित इनका समय छठी शती मानते हैं। "खंडखाद्यक" की टीका (ब्रह्मगुप्त ज्योतिषी द्वारा रचित ग्रंथ) की भूमिका में प्रबोधचंद्र सेनगुप्त इनका समय 670 शक मानते हैं, जिसका समर्थन डा. गोरखप्रसाद ने भी किया है। लल्ल ने ग्रंथ-रचना का कारण देते हुए बताया है कि आर्यभट्ट अथवा उनके शिष्यों द्वारा लिखे गए ग्रंथों की दुरूहता के कारण, इन्होंने विस्तारपूर्वक (उदाहरण के साथ) कर्मक्रम से इस ग्रंथ की रचना की है। __ मध्यमाधिकार "पाटी-गणित' एवं "रत्नकोश" नामक अन्य दो ग्रंथ भी इनके हैं पर वे प्राप्त नहीं होते। ललितमोहन भट्टाचार्य - ई. 19 वीं शती। पूर्वस्थली (बंगाल) के निवासी। कृति- "खाण्डव-दहन" महाकाव्य । लीला राव दयाल - इ. २० वा शती। पंडिता क्षमादेवी राव की पुत्री। पति-हरीश्वर दयाल माथुर (शासकीय वैदेशिक सेवा में)। संस्कृत-लेखन की प्रेरणा माता से प्राप्त। क्षमा राव की अनेक कथाओं को नाट्यरूप दिया। आधुनिक शैली में सामाजिक समस्याओं पर लेखन। नाट्यरूप कृतियां- गिरिजायाः प्रतिज्ञा, बालविधवा, कटुविपाकः, होलिकोत्सव, क्षणिक-विभ्रम, गणेशचतुर्थी, असूयिनी, मिथ्याग्रहण, कपोतालय, वृत्तशंसिच्छत्र, वीरभा, तुकारामचरित, ज्ञानेश्वरचरित और जयन्तु कुमाउनीयाः। लोंढे, गणेशशास्त्री - ई. 20 वीं शती। पुणे के प्रसिद्ध संस्कृताध्यापक। पिता-पांडुरंग। कृतियां- भूपो भिषक्त्वं गतः (एकांकी), संस्कृत-प्रवेश, सुबोध-संस्कृत-संवाद, सुभाषित रत्नमंजूषा व सुपठव्याकरण (मराठी पद्यों में संस्कृत के नियम)। लोकनाथ भट्ट - ई. 17 वीं शती का पूर्वार्ध। पिता-वरदार्य या कविशेखर विश्वगुणादर्श के रचयिता वेंकटाध्वरी के मामा थे। रचना- "कृष्णाभ्युदय" नामक प्रेक्षणक। लोलिंबराज कवि - आयुर्वेद-शास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ "वैद्यजीवन" के प्रणेता। जुन्नर (महाराष्ट्र) के निवासी। समय- 17 वीं शती। पिता-दिवाकर भट्ट। इन्होंने “वैद्यावतंस" नामक एक अन्य ग्रंथ की भी रचना की है। इनके "वैद्यजीवन" की विशेषता यह है कि उसकी रचना सरस एवं ललितमनोहर शैली में हुई है, रोग व औषधि का वर्णन इन्होंने अपनी प्रिया को संबोधित कर किया है और इसमें शृंगार रस की प्रधानता है। इसका हिन्दी अनुवाद कालीचरण शास्त्री ने किया है। इनकी अन्य रचनाएं मराठी भाषा में है। लौगाक्षी - ई. 10 वीं शती के शतशाखाध्यायी सामवेदी आचार्य। पौष्यंजी इनके गुरु थे। अशौच व प्रायश्चित्त-विषय पर इनके श्लोक मिताक्षरा में दिये गये हैं। आपने योग और क्षेम की व्याख्या कर दोनों में अभिन्नत्व प्रतिपादित किया है। आपने आर्षाध्याय, उपनयनतंत्र, काठक गृह्यसूत्र, प्रवराध्याय व श्लोक-दर्पण नामक ग्रंथों की रचना की है। लौगाक्षी भास्कर - ई. 17 वीं शती। "लौगाक्षी" इनका उपनाम है। पिता-मुद्गल व गुरु जयराम न्यायपंचानन। आपने "न्यायसिद्धान्तदीप" और मीमांसाशास्त्र पर "अर्थसंग्रह" नामक दो ग्रंथों की रचना की है। वंगसेन - ई. 11 वीं शती। पश्चिम बंगाल स्थित 'कांजिक' ग्राम के निवासी। वैद्य गंगाधर के पुत्र। कृतियांचिकित्सा-सार-संग्रह (वैद्यकविषयक) और आख्यानवृत्ति (व्याकरण)। वंगेश्वर - तंजौर नरेश तुकोजी भोसले के आश्रित। 17 वीं शती। तुकोजी द्वारा अपमानित होने पर अन्यत्र प्रस्थान किया और वहां से राजा और भैंसे का साम्य सूचित करने वाला व्याजस्तुतिपर शतक काव्य माहिशशतकम् राजा को भेंट किया। वंदारुभट्ट - ई. 19 वीं शती का पूर्वार्ध। माता- श्रीदेवी, पिता- नीलकण्ठ। कोचीन नरेश के आश्रित। श्रीहर्ष के नैषध-चरितम्" का क्लिष्टत्वरहित अनुकरण इस काव्य की संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 435 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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