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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org यज्ञों से विष्णु की आराधना की और "वेदभूषण" नामक वेदभाष्य की रचना ही किस संहिता पर यह भाष्य-रचना है यह ज्ञात नहीं। लक्ष्मण भट्ट ई. 17 वीं शती के एक धर्मशास्त्रकार। ये निर्णयसिंधु के रचयिता कमलाकर भट्ट के छोटे भाई तथा रामकृष्ण भट्ट के पुत्र थे। आपने धर्मशास्त्र से सम्बन्धित “आचाररत्न", "आचारसार" और "गोत्रप्रवररत्न" नामक तीन ग्रंथों की रचना की है। इसके अतिरिक्त आपने नैषधचरित पर "गूढार्थप्रकाशिका" नामक टीका भी लिखी है। लक्ष्मणभट्ट वैष्णवों के निवार्क संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य निंबार्क के 4 प्रमुख शिष्यों में से एक। इन्होंने ब्रह्मसूत्र पर एक स्वतंत्र सूक्ष्म वृत्ति लिखी है। लक्ष्मण भास्कर - समय- ई. 14 वीं शती । रचना-मतंगभरतम् । लक्ष्मण माणिक्य - ई. 16 वीं शती। नोआखली के नरेश । कृतियां विख्यातविजय तथा कुवलयाश्वचरित (नाटक) और "सत्काव्य- रत्नाकर" नामक सुभाषितसंग्रह | लक्ष्मण शास्त्री नागौर निवासी। रचनाश्रीविष्णुचतुर्विंशत्यवतारस्तोत्र (चित्रकाव्य) विष्णु के 24 अवतारों का वर्णन भागवत (2-7) के अनुसार अतिरिक्त रचनाएंविष्णुचरित्रामृत विष्णुस्तवषोडशी, श्रीहरिद्वादशाक्षरीस्तोत्र, श्रीरामविवाह, श्रीरामपाद-युगुलीस्तव और श्रीहरिस्तोत्र | लक्ष्मणसूरि "भारतचंपूतिलक" नामक काव्यग्रन्थ के प्रणेता। ये ई. 17 वीं शती के अंतिम चरण में विद्यमान थे । ग्रंथ के अंत में इन्होंने अपना अल्प परिचय दिया है। तदनुसार पिता- गंगाधर, माता-गंगाबिका । - लक्ष्मणसूरि ( म.म.) जन्म तिन्नेवेल्ली जनपद (तमिलनाडु) के पुरुनाल ग्राम में, सन् 1858 में सन् 1886 तक मद्रास के पचयप्पा संस्कृत महाविद्यालय में अध्यापन । सन् 1903 में मैसूर के दीवान द्वारा "सूरि" की उपाधि प्राप्त । भारत सरकार द्वारा सन् 1916 में "महामहोपाध्याय" की उपाधि । जीवन के अन्तिम चरण में परिव्राजक बने और भारतीय संस्कृति तथा अध्यात्म दर्शन पर प्रवचन करने लगे। थे पिता- मुथु भारती, संस्कृत तथा तमिल के विद्वान् लेखक । गुरु- सुब्बा दीक्षित । कृतियां घोषयात्रा डिम ( अपरनाम युधिष्ठिरानृशस्यं), दिल्लीसाम्राज्य तथा पौलस्त्यवध (नाटक), भीष्मविजय भारतसंग्रह तथा नलोपाख्यानसंग्रह (गद्य), कृष्णलीलामृत (महाकाव्य), जार्ज शतक (काव्य), अनर्घराघव, उत्तररामचरित, वेणीसंहार तथा बालरामायण पर टीकाएं। "दिल्ली-साम्राज्य" नामक नाटक सन् 1912 में मद्रास से मुद्रित । लक्ष्मी - ई. 19 वीं शती निवासस्थान- मलबार के एकावलं कोविलग्राम में । रचना - सन्तानगोपाल नामक 3 सर्गों का काव्य । श्रीकृष्ण द्वारा एक मृत ब्राह्मण-पुत्र को जीवित करने 434 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड की कथा। तीसरे सर्ग में यमकबन्ध है 1 लक्ष्मीकान्तैया एम्. ए., संस्कृत प्राध्यापक, निजाम महाविद्यालय हैदराबाद । रचना - कीर-सन्देश । सर्वजनपुस्तकमाला से प्रकाशित । लक्ष्मीदत्त ई. 13-14 वीं शती। "पाण्डवचरित" नामक महाकाव्य के प्रणेता। इस ग्रंथ की पाण्डुलिपि गंगानाथ झा केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ के ग्रंथालय में उपलब्ध है । सर्गान्त की पुष्पिका में "श्री लक्ष्मीनारायणराय वाजपण्डित कविडिण्डिम श्रीलक्ष्मीदत्त " इन शब्दों में लेखक ने अपना परिचय दिया है। प्रस्तुत पाण्डुलिपि मैथिली लिपि में है। लक्ष्मीधर ई. 11 वीं शती। जन्मस्थान- भट्टांकित कोसल-ग्राम (जिला- बोगरा, उत्तर बंगाल) "चक्रपाणि विजय" महाकाव्य के प्रणेता। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir I लक्ष्मीधर विजयनगर के तिरुमलराय ( ई. स. 1570-73) के आश्रित अपनी गीत-गोविन्द की टीका में इन्होंने राग-दीपिका, रंगलक्ष्मी-विलास, वामदेवीय तथा प्रताप नृपति के संगीत चूडामणि का उल्लेख किया है। अन्य रचना- भरत शास्त्रग्रंथ । लक्ष्मीधर भट्ट राजधर्म के निबंधकार कान्यकुब्जेश्वर जयचंद्र के पितामह गोविंदचंद्र के महासंधिविग्रहिक (विदेश मंत्री) । समय- ई. 12 वीं शती का प्रारंभ। इनका ग्रंथ "कृत्यकल्पतरु", अपने विषय का अत्यंत प्रामाणिक व विशालकाय निबंध-ग्रंथ है। यह 14 कांडों में विभाजित है किन्तु अब तक सभी कांड प्रकाशित नहीं हो सके है। लक्ष्मीनारायण (भण्डारू) पिता भहरू बिल्लेश्वर । माता - रूक्मिणी । भारद्वाज गोत्र। विजयनगर के सम्राट् कृष्णदेवराय (सन् 1509 से 1529) के “वाग्गेयकार" अर्थात् कवि तथा संगीतरचनाकार इन्हें सम्राट् की ओर से सोने की पालकी, मोतियों का पंखा तथा हाथी मिले थे। गुरु-विष्णुभट्टारक। रचना :- संगीत- सूर्योदय। - लक्ष्मीनारायण राव - ई. 20 वीं शती । वेंकटेश्वर वि. वि. तिरुपति में तेलगु भाषा के प्राध्यापक । "धर्मरक्षण" नामक संस्कृत नाटक के प्रणेता । लगध - इन्होंने "वेदांग ज्योतिष" नामक ग्रंथ की रचना की है। 36 श्लोकों वाले इस ग्रंथ में तिथि, नक्षत्र निकालने की सरल पद्धति का विवेचन है वेदांग ज्योतिष के कालखंड के बारे में पाश्चात्य पंडितों में काफी मतभेद है। मैक्समूलर इसका कालखंड ईसा पूर्व तीसरा शतक मानते हैं व वेबर इसा पूर्व 5 वें शतक का उल्लेख करते हैं। शं. बा. दीक्षित के मतानुसार यह काल ईसा पूर्व 1400 होना चाहिये। लगध के चरित्रविषयक जानकारी अनुपलब्ध है। मौखिक गणित करनेवाले प्राचीन ज्योतिषियों में इनकी गणना की जाती है। For Private and Personal Use Only लघुअनन्तवीर्य सिद्धिविनिश्चय के टीकाकार अनन्तवीर्य के उत्तरवर्ती होने के कारण इन्हें लघु अनन्तवीर्य कहा जाता है।
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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