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वैष्णव परंपरा के भक्ति व रसशास्त्र के चैतन्य-मतानुयायी आचार्य। षट् गोस्वामियों में से एक। भक्ति एवं विद्वत्ता के जाज्वल्य प्रतीक। भारद्वाज गोत्री। धनाढ्य ब्राह्मणकुल में जन्म। पूर्वज कर्नाटक से बंगाल में आकर बस गए थे। पिता का नाम श्रीकुमार। सनातन गोस्वामी के अनुज, चैतन्य महाप्रभु के प्रथम कृपापात्र होने के कारण वैष्णव समाज में उनके बडे भाई समझे जाते हैं। ये दोनों भाई चैतन्य-मत के शास्त्रकर्ता माने जाते हैं। बंगाल में इनकी जन्मभूमि थी वफल। मातारेवती। आप बंगाल के नवाब हसेनशाह के प्रधान मंत्री थे। त्रिवेणी के पवित्र तट पर चैतन्य से इनकी भेंट होने पर इन्होंने अपने ऊंचे पद को त्याग कर संन्यास ले लिया और अपने गुरुदेव की सूचनानुसार वृंदावन को अपना निवास-स्थल बनाया। शाह ने इनकी बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर इन्हें 'साकर मल्लिक' की उपाधि से गौरवान्वित किया था। इनकी महत्ता, इनके 3 काव्याशास्त्रीय ग्रंथों के ही कारण अधिक है। __ आनुवंशिक परिचय - कर्नाटक के भारद्वाज गोत्रीय अनिरुद्ध की दो पत्नियों से राजकुमार रूपेश्वर और हरिहर का जन्म हुआ। हरिहर दुष्ट थे। उन्होंने रूपेश्वर को राज्य से वंचित किया। रूपेश्वर का पुत्र पद्मनाभ गंगातट के नवहट्ट ग्राम में सुप्रतिष्ठित हुआ। उसके पांच पुत्रों में सबसे छोटा मुकुन्द फत्तेहाबाद में बसा। उनके पुत्र श्रीकुमार के अमर, सन्तोष तथा वल्लभ नामक तीन पुत्रों को चैतन्य ने सनातन, रूप
और अनुपम नाम से दीक्षित किया। दीक्षा के पश्चात् रूप प्रायः गोकुल में ही रहे। __ कहा जाता है कि श्रीगोविंददेवजी ने इन्हें स्वप्न में बताया कि मैं अमुक स्थान पर भूमि में गडा पडा हूं। एक गाय प्रतिदिन मुझे दूध पिला जाती है। तुम उसी गाय को लक्ष्य कर मेरे स्थान पर आओ, मुझे बाहर निकालो और मेरी पूजा करो। तदनुसार रूपजी ने भगवान् की मूर्ति बाहर निकाली। कालांतर में जयपुर के महाराज मानसिंह ने गोविंददेवजी का लाल पत्थरों का बडा ही विशाल मंदिर बनवाया जो आज भी वृंदावन की श्री-वृद्धि कर रहा है। ___ रूप गोस्वामी ने 17 से अधिक ग्रंथों की रचना की है जिनमें अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं- हंसदूत (काव्य), उद्धव-संदेश (काव्य), विदग्ध-माधव (नाटक), प्रेमेन्दुसागरः, ललित-माधवं (नाटक), दानकेलि-कौमुदी, भक्तिरसामृत-सिंधु, उज्ज्वल-नीलमणि एवं नाटक-चंद्रिका। इनमें अंतिम 3 ग्रंथ काव्य-शास्त्रीय हैं।
इनके अन्य ग्रंथों के नाम हैं- लघुभागवतामृत, पद्यावली, स्तवमाला, उत्कलिका-मंजरी, आनंद-महोदधि, मथुरा-महिमा, गोविंद-बिरुदावलि, मुकुन्द-मुक्तावली, अष्टादश छंद, गीतावली आदि। सोलहवीं शताब्दी के वृंदावन में, रूप गोस्वामी भक्त-मंडली के अग्रणी थे। कहते है कि संत मीराबाई ने
इन्हींसे दीक्षा ली थी।
इनके मृत्यु-संवत् के विषय में विद्वानों का एकमत नहीं किन्तु आचार्य बलदेव उपाध्याय तथा डा. डी.सी. सेन द्वारा प्रस्तुत प्रमाणों के अनुसार ये पूरे 100 वर्षों तक जीवित रहे ऐसा माना जा सकता है। रेणु - ऋग्वेद के 9 वें 10 वें मंडल के दो सूक्तों के द्रष्टा । ये विश्वामित्र के पुत्र थे। इन्द्र व सोम-स्तुति ही सूक्तों का विषय है। __अपनी प्रथम ऋचा में ही सोम हेतु 21 गायों के दोहन का उल्लेख इन्होंने किया है। विश्वामित्र द्वारा निर्मित प्रतिसृष्टि का निर्देश भी इसमें चार भुवनों के उल्लेख से स्पष्ट होता है। रेभ - एक सूक्त दृष्टा। आपने इन्द्रस्तुति पर सूक्त की रचना की है। उनकी एक ऋचा का आशय है :
ऐ अद्भुत शूर, वज्रधारी और भक्तरक्षक इन्द्र, अपने सत्यस्वरूप को प्रकट कर आप हमें संकट-मुक्त करें। आपकी स्पृहणीय सम्पत्ति आप हमें कब देंगे?
रेभ के बारे में एक कथा ऋग्वेद में यह बतायी जाती है कि एक बार असुरों ने इनके हाथ-पैर बांध कर इन्हें कुएं में धकेल दिया। 9 दिनों और दस रातों तक इस स्थिति में रहने के बाद अश्विनीदेवों ने उन्हें मुक्त किया। रेवाप्रसाद द्विवेदी (डा.) - जन्म-सन् 1935 में रेवा (नर्मदा) के तट पर नादनेर ग्राम (म.प्र.) में। आरम्भिक शिक्षा अपने संस्कृतज्ञ पिता से प्राप्त। काशी हिन्दू वि.वि. से एम्.ए. तथा साहित्याचार्य की उपाधियां प्राप्त । जबलपुर वि.वि. से डी.लिट्. । सन् 1970 तक म.प्र. की राजकीय सेवा में। तत्पश्चात् काशी हिन्दू वि.वि. में साहित्य-विभागाध्यक्ष। आप संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक हैं। कृतियां- सीताचरित (महाकाव्य), कांग्रेस-पराभव (समवकार) और यूथिका (नाटिका) । कालिदास ग्रन्थावली का एकत्र संपादन। अनेक लघु-काव्य एवं निबन्ध भी प्रकाशित। रोडे, यज्ञेश्वर सदाशिव (बाबा रोडे) - लगभग 1707 ई. में लेखन-कार्य प्रारंभ। रचनाएं- यन्त्रराज-वासनाटीका, गोलानन्द-अनुक्रमणिका और मणिकान्ति टीका। लंबोदर वैद्य - ई. 20 वीं शती। बंगाली। "गोपीदूत" नामक काव्य के रचयिता। लक्ष्मण - माता-भवानी। पिता-विश्वेश्वर। काशी निवासी। कालान्तर से तंजौर के शाहजी के सभासद। इनकी साहित्य शास्त्रीय रचना "शाहराजीयम्" में शाहजी का चरित्र-वर्णन है। अन्य रचना- शाहराज-सभासरोवर्णिनी। लक्ष्मण - ई. 11 वीं शती। ग्रंथकार के प्रपौत्र (भावप्रकाश नामक साहित्यशास्त्रीय ग्रंथ के लेखक)। शारदातनय ने आचार्य लक्ष्मण के संबंध में लिखा है कि इनका निवासस्थान मेरूत्तर जनपद का माठर नामक ग्राम था। गोत्र-कश्यप। इन्होंने तीस
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संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 433
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