SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रामदेव या वामदेव (शतावधानी) - ई. 18 वीं शती । पिता राघवेन्द्र भट्टाचार्य कवि-चिरंजीव नाम से प्रसिद्ध ढाका के नायब दीवाल यशवन्तसिंह के आश्रित । रचनाएंविद्वन्मोदतरंगिणी, वृत्तरत्नावली ( (आश्रयदाता की स्तुति), शृंगारतटिनी, कल्पलता, शिवस्तोत्र, माधवचम्पू और काव्यविलास (साहित्यशास्त्रविषयक ग्रंथ ) । रामदेव मिश्र - वृत्तिप्रदीप नामक काशिका व्याख्या के लेखक । राम दैवज्ञ समय ई. 16 वीं शती । प्रसिद्ध ज्योतिष शास्त्री अनंत दैवज्ञ के पुत्र तथा ज्योतिष के आचार्य नीलकंठ के बंधु । सन् 1600 में काशी में इन्होंने "मुहूर्तचिंतामणि” नामक फलित ज्योतिष का अत्यंत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखा है जो विद्वानों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। कहा जाता है कि बादशाह अकबर के अनुरोध पर इन्होंने “राम - विनोद" नामक ज्योतिषशास्त्रीय ग्रंथ की रचना की थी और टोडरमल के लिये "टोडरानंद" का प्रणयन किया था जो संप्रति उपलब्ध नहीं है। रामनाथ चक्रवर्ती ई. 16 वीं शती । बंगालनिवासी। वेदगर्भ तर्काचार्य के पुत्र । वायीकुलोत्पन्न । कृतियां- अमरटीका, मनोरमा के धातुगण की व्याख्या और परिभाषा- सिद्धान्तररत्नाकर । रामनाथ विद्यावाचस्पति ई. 17 वीं शती । नारायण नृपति से सम्मानित कृतियां काव्यरत्नावली, काव्यप्रकाश की "रहस्यप्रकाश" नामक टीका, कारक रहस्य, त्रिकाण्ड - विवेक ( अमरकोश पर टीका) और त्रिकाण्डरहस्य | रामनाथ शास्त्री (एस.के.) - ई. 20 वीं शती । "मणिमंजूषा " नामक नाटक के रचयिता । - www.kobatirth.org रास पंचाध्यायी के सरस टीकाकार । रामनारायण मिश्र टीका- ग्रंथ का नाम "भाव-भाव-विभाविका" । टीका के उपोद्घात में आपने अपना परिचय दिया है। तदनुसार गुरु का नाम रामसिंह है । प्राचीन आचार्यों एवं टीकाकारों में आपने अपनी टीका में शंकराचार्य, श्रीधर, कृष्णचैतन्य, जीव, रूप, सनातन प्रभृति का सादर उल्लेख किया है । विलक्षण बात यह है कि इन्होंने सिक्ख गुरु नानक की वंदना की है। आचार्य बलदेव उपाध्याय के मतानुसार नानक की यह वंदना द्योतित करती है कि ये नानक पंथी विद्वान थे अथवा नानक के प्रति भक्ति भाव रखते थे। ये चैतन्यमतानुयायी वैष्णव थे। इनके गुरु रामसिंह के पूर्वज एवं संबंधी उत्तर प्रदेश (सहारनुपर जिला) के प्रसिद्ध ग्राम देवनंद के निवासी थे। ये स्वयं भी इसी क्षेत्र के निवासी प्रतीत होते है। रामपाणिवाद जन्म सन् 1707 में, मंगलग्राम में अम्पल्लपुल के राजा देवनारायण द्वारा पुत्रवत् संवर्धित । सन् 1750 में अम्पल्लपुल के त्रावणकोर में मिलने से त्रावणकोर के राजा मार्तण्डवर्मा के आश्रय में । रचनाएं - मदनकेतु-चरित (प्रहसन ), चन्द्रिका और लीलावती - 428 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड (वीथी), सीताराघव (नाटक) ललितराघवीय, पादुकापट्टाभिषेकम् और विष्णुविलास (महाकाव्य) भागवतचम्पू, मुकुन्दशतक, (इस नाम की दो रचनाएं) अम्बरनदीशस्तोत्र, सूर्याष्टक और शिवशतक (स्तोत्र), वृत्तवार्तिक (शास्त्रीय ग्रंथ), और प्राकृतप्रकाश की व्याख्या बालपाठ्या । प्राकृत कृतियां - कंसवध और उषा-अनिरूद्ध-काव्य । इनके अतिरिक्त भी अनेक ग्रंथों पर टीकाएं तथा शास्त्रीय ग्रन्थ रामपाणिवाद के नाम पर हैं। रामभट ई. 16 वीं शती के काशी-निवासी, एक ज्योतिर्विद् व ग्रंथकार । गार्ग्यगोत्री ब्राह्मणकुल में जन्मे रामभट का परिवार, मूलतया विदर्भ के धर्मपुरी ग्राम का था । आपने "रामविनोद" नामक करणग्रंथ की रचना की जिसमें सूर्यसिद्धान्तानुसार वर्धमान, क्षेपक व ग्रहों की गति का विवेचन है। ग्रहगति को बीज - संस्कार देने का प्रयास किया गया है। इसके अतिरिक्त "मुहूर्तचिंतामणि" नामक एक अन्य ग्रंथ की रचना भी की है। इस ग्रंथ पर स्वयं ग्रंथकार ने ही "प्रमिताक्षरा" नामक टीका लिखी है। रामभद्र ई. 17 वीं शती । रचना - न्यायरहस्यम् (न्यायसूत्र की टीका) । - रामभद्र दीक्षित ई. 17 वीं शती जन्म-कुम्भकोणं समीपस्थ कण्डरमाणिक्य ग्राम में, चतुर्वेद-चन्वेन्द्र वंश में पिता यज्ञराम दीक्षित (वैयाकरण)। गुरु-नीलकण्ठ (साहित्य), चोकनाथ (व्याकरण) और बालकृष्ण भगवत्पाद (दर्शन) । रामचन्द्र ( हास्य रस के कवि ) तथा अद्भुत-दर्पण के कर्ता महादेव के सहपाठी थे तंजौर के राजा शाहजी ने जो शाहजिपुर अग्रहार बनाया, उसमें प्रतिष्ठित । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृतियां कुल 12- षड्दर्शन - सिद्धान्त-संग्रह, परिभाषावृत्ति व्याख्यान, उणादि-मणिदीपिका, शब्द-भेद-निरूपण, अष्टप्रास, चापस्तव, पतंजलिचरित, पर्यायोक्ति - निस्यन्द, प्रसादस्तव, बाणस्तव, विश्वगर्भस्तव, शृंगारतिलक (भाण) और जानकीपरिणय (नाटक) । रामभद्र सार्वभौम ई. 17 वीं शती । रचनाएं दीधितिटीका, न्यायरहस्यम्, गुणरहस्यम्, न्यायमांजलिकारिका व्याख्या, पदार्थविवेक-प्रकाशः और षट्चक्रकर्मदीपिका । रामभद्र सिद्धान्तवागीशई. 17 वीं शती रचना सुबोधिनी शब्दशक्तिप्रकाश टीका) । For Private and Personal Use Only रामभद्राम्बा तंजावर के रघुनाथ नायक की धर्मपत्नी । श्रेष्ठ संस्कृत कवयित्री। अपना पति राम का अवतार है इस श्रद्धा से कवयित्री ने " रघुनाथाभ्युदयम्" काव्य की रचना की है। राममाणिक्य "कृतार्थमाधव" (नाटक) के प्रणेता। रामराम शर्मा - ई. 17 वीं शती "मनोदूत" कार विष्णुदास के वंशज । " मनोदूत" नामक अन्य दूतकाव्य के कर्ता । रामरुद्र तर्कवागीश- ई. 17-18 वीं शती रचनाएं तत्त्व चिन्तामणि- दीधितिटीका, व्याप्तिवादव्याख्या, दिनकरीयप्रकाश - -
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy