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"मल्लिका-मकरंद" ये दोनों "नाट्य-दर्पण" में ही उद्धृत हैं। इन्होंने "वनमाला" नामक एक नाटिका की भी रचना की थी जो अप्रकाशित है। "नाट्य-दर्पण" में इसके उद्धरण हैं। इन्होंने "निर्भय-भीम" नामक व्यायोग की रचना की है जो प्रकाशित हो चुका है। नाट्यदर्पण में 35 ऐसे नाटकों के उद्धरण हैं जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। इन सब ग्रंथों से ज्ञात होता है कि रामचंद्र प्रतिभाशाली व्यक्ति थे जिन्होंने व्यापक रचना-कौशल्य एवं नाट्यचातुरी का परिचय दिया है। "रघुविलास" की प्रस्तावना में इनकी प्रशस्ति की गई है। कहा जाता है कि अजय पाल के आदेश से इन्हें मृत्युदण्ड मिला। रामचंद्र - पिता जनार्दन। रचना- “राधा-विनोद"। इस पर त्रिलोकीनाथ तथा भट्ट नारायण की टीकाएं उपलब्ध हैं। रामचंद्र- ई. 17 वीं शती। जैन साम्प्रदायिक कवि। रचना-प्रद्युम्नचरित (महाकाव्य, 18 सर्ग)। इसमें श्रीकृष्णपुत्र प्रद्युम्न की कथा, जैन परम्परा के अनुसार वर्णित है। रामचंद्र आचार्य - समय- ई. 14 वीं शती। काशी-निवासी। शेषवंशीय । पिता-कृष्ण। ये ऋग्वेदी कौडिण्यगोत्री तेलंगी ब्राह्मण थे। आपने पाणिनि की अष्टाध्यायी पर "प्रक्रियाकौमुदी" नामक ग्रंथ लिखा। इसके अतिरिक्त “कालनिर्णय-दीपिका" (ज्योतिष विषयक) "वैष्णवसिद्धान्तसद्दीपिका" (वैष्णववेदान्त) तथा "कृष्णकिंकर-प्रक्रिया" आदि इनके प्रमुख ग्रंथ हैं। रामचंद्र कविभारती - समय- ई. 13 वीं शती। बंगाल के बारेन्द्र-प्रांत के निवासी ब्राह्मण। श्रीलंका में आमंत्रित। वहां के अधिपति पराक्रमबाहु के आश्रय में बौद्ध मत का स्वीकार किया। प्रधान रचना-भक्तिशतक। अन्य कृतियां- वृत्तमाला और वृत्तरत्नाकर-पंजिका। रामचंद्र कोराड - जन्म- 1816, मृत्यु- 1900। निवासआन्ध्र प्रदेश में। पिता-लक्ष्मणशास्त्री, माता-सुब्बाम्बा । गुरु-कृष्णमूर्ति-शास्त्री। मछलीपट्टन के नोबल कालेज में सेवारत । कृतियां- शृंगार-विजय (डिम) देवीविजय तथा कुमारोदयचम्पू, उपमावली, मृत्युंजय-विजय (काव्य), शृंगारमंजरी, मंजरी-सौरभ, कृष्णोदय (काव्य), श्रीसुधा, अमृतनन्दीय, रामचन्द्रीय, बालचन्द्रोदय, कन्दर्प-दर्प, वैराग्य-वर्धिनी, पुमर्थ-शेवधि (काव्य) और स्वोदयकाव्य (आत्मचरित्र विषयक)। रामचंद्र दीक्षित - कान्ध्रमाणिक्य ग्राम के निवासी। पितायज्ञराम दीक्षित (महान् वैयाकरण)। रचना- केरलाभरण-चम्पू (हास्यरसप्रधान)। रामचन्द्र न्यायवागीश - ई. 18 वीं शती। पिता-विद्यानिधि। बंगाली । रचना-"काव्यचन्द्रिका" (अपरनाम अलंकारचन्द्रिका)। रामचन्द्र मुमुक्ष - केशवनन्दि के शिष्य। जैनपंथी वादीभसिंह महामुनि पद्मनन्दी से व्याकरण-शास्त्र का अध्ययन किया। पुण्याश्रवकथा कोश। इस ग्रंथ में 4500 श्लोक हैं और उनमें 53 कथाएं वैदर्भी शैली में लिखी हैं।
रामचन्द्र राव (एस. के.)- ई. 20 वीं शती। बंगलोर-निवासी। ऑल इंडिया इन्स्टिट्यूट ऑन मेंटल हेल्थ, बंगलोर में रीडर। "पौरव-दिग्विजय" नामक नाटक के प्रणेता।। रामचंद्र विबुध - ई. 15 वीं शती। बंगाल के वीरवाटिका ग्राम के निवासी। तत्पश्चात् संभवतः लंकाद्वीप में निवास था। कृति- केदारभट्ट के वृत्तरत्नाकर पर पंजिका। रामचन्द्र वेल्लाल - मैसूर-नरेश कृष्णराज द्वितीय (1734-1766 ई.) के सेनापति-मंत्री देवराज द्वारा सम्मानित । रचना-कृष्णविजय (व्यायोग) तथा सरसकविकुलानन्द (भाण)।। रामचन्द्र शास्त्री - जन्म- सन् 1901 में हनुमानगढ़ में। विद्यालंकार की उपाधि प्राप्त। कृतियां- (1) कविविलसितम्
और (2) कवितापंचामृतम्। रामचन्द्र शेखर - तंजौर के शासक महाराज प्रतापसिंह (1741-1764 ई.) के समाश्रित। प्रताप के पश्चात् तुलज द्वितीय (1764-1787 ई.) के कार्यकाल में "कलानन्दक" नामक सात अंकी नाटक की निर्मिति। "पौण्डरीकयाजी" की उपाधि से विभूषित। रामचंद्र सरस्वती- प्रदीप पर विवरण नामक लघु व्याख्या के लेखक। मद्रास और मैसूर में हस्तलेख उपलब्ध। भट्टोजी दीक्षित के शब्दकौस्तुभ में इनका उल्लेख है। समय- वि. 1525-15751 रामचन्द्राचार्य (पी. व्ही.) - मद्रास राज्य में शिक्षाधिकारी। रचना- समर-शान्ति-महोत्सवः । रामचंद्राश्रम - वल्लभ-संप्रदाय की मान्यता के अनुसार भागवत की महापुराणता के पक्ष में "दुर्जन-मुख-चपेटिका" नामक लघु-कलेवर ग्रंथ के लेखक। इनके पूर्ववर्ती गंगाधर भट्ट द्वारा इसी नाम की “चपेटिका" की अपेक्षा रामचंद्राश्रम की प्रस्तुत कृति परिमाण में कम है। रामचरण तर्कवागीश - ई. 17 वीं शती का अन्तिम चरण। बरद्वान-निवासी। चट्टोपाध्याय। रचनाएं- साहित्य-दर्पण की टीका, "रामविलास" (काव्य), "कलाप-दीपिका" (अमरकोश पर टीका)। रामजी उपाध्याय (डा.) - सागर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभागाध्यक्ष । आधुनिक संस्कृत साहित्य विषयक शोधकार्य को प्रोत्साहन आपका विशेष कार्य है। भारतीय नाट्यशास्त्र के विशेषज्ञ। रचनाएं- भारतस्य सांस्कृतिको निधिः। द्वा सुपर्णा इत्यादि। सेवानिवृत्ति के बाद वाराणसी में निवास ।
रामदासशिष्य-प्रयागदत्त-पुत्र - प्रस्तुत कवि का नामनिर्देश उनके "राजविनोद काव्यम्" में नहीं है। उन्होंने अपना परिचय, पिता तथा गुरु के नाम से दिया है। अपने राजविनोद (सप्तसर्गात्मक) काव्य में इन्होंने किसी सुलतान महंमद नामक यवन राजा का चरित्र वर्णन किया है।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 427
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