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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण -3 वेदांग वाङ्मय वेदों का यथोचित अर्थ जानने में वेदांगों का महत्त्व निरपवाद है। इस संदर्भ में “अंग" शब्द का अर्थ "अंग्यन्ते अभीभिः इति अंगानि" अर्थात् जिनके द्वारा किसी वस्तु के जानने में सहायता होती है उसे अंग कहते हैं। वेद जैसे दुर्बोध विषय के आकलन में वेदांगों का उपयोग होता है, अतः इस वाङ्मय शाखा का महत्त्व असाधारण है। यह वेदांग साहित्य उपनिषदों के पूर्व निर्माण हुआ था। मुण्डकोपनिषद (1/15) में अपरा विद्या के अन्तर्गत चार वेदों के साथ छः वेदांगों का उल्लेख यथाक्रम मिलता है : (1) शिक्षा, (2) कल्प, (3) व्याकरण, (4) निरुक्त, (5) छंद और (6) ज्योतिष । इन छः वेदांगों का प्रत्येकशः स्वतंत्र महत्त्व है। वेदों का अर्थ निर्दोष रीति से आकलन होने के लिए वेदांग नामक वाङ्मय प्राचीन पंडितों ने निर्माण किया। पाणिनीय शिक्षा में दो श्लोकों द्वारा छ: वेदांगों का आलंकारिक पद्धति से वर्णन इस प्रकार किया है : "छन्दः पादौ तु वेदस्य, हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यते । ज्योतिषामयनं चक्षुः निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते ।। शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य, मुखं व्याकरणं स्मृतम्।। तस्मात् सांगमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते ।। (पाणिनीयशिक्षा 41-42) इन छः अंगों सहित किया हुआ वेदाध्ययन ही निर्दोष होता है। 1 शिक्षा शिक्षा को वेदपुरुष का "घाण" कहा है- (शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य)। सायणाचार्य ने अपनी ऋग्वेदभाष्यभूमिका में शिक्षा का अर्थ, “स्वरवर्णाधुच्चारणप्रकारो यत्र शिक्ष्यते उपदिश्यते सा शिक्षा"- अर्थात् स्वर, वर्ण आदि का उच्चारण के प्रकार जिसमें पढाएं जाते हैं, उसे शिक्षा कहते हैं। वेद के इस अंग की ओर वैदिक काल में ही ऋषियों का ध्यान आकृष्ट हुआ था। ब्राह्मण ग्रंथों में शिक्षा से संबंधित नियमों का उल्लेख यत्र तत्र पाया जाता है। तैत्तिरीय उपनिषद की प्रथम वल्ली में शिक्षा के, वर्ण, स्वर, मात्रा, बल, साम और सन्तान इन छ: अंगों का उल्लेख मिलता है। पाणिनीय शिक्षा में वेदपाठ करने वाले के छः दोष, "गीती शीघ्री शिरःकम्पी तथा लिखितपाठकः। अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठ षडते पाठकाधमाः।। (32) इस श्लोक में बताए हैं; और उसके छ: गुणों का निर्देश "माधुर्यमक्षरव्यक्तिः पदच्छेदस्तु सुस्वरः। धैर्य लयः समर्थश्च पेडते पाठका गुणाः ।।33 ।। इस श्लोक में किया है। प्रत्येक वेद में कुछ वर्षों के उच्चारण, अलग प्रकार से होते हैं। जैसे मूर्धन्य "ष" का उच्चारण, शुक्ल यजुर्वेद में, विशिष्ट स्थान पर "ख" किया जाता है। इस उच्चारण-भेद का परिचय उन वेदों की अपनी निजी शिक्षा में दिया जाता है। शिक्षासंग्रह नामक ग्रंथ में एकत्र प्रकाशित छोटी बड़ी 32 शिक्षाओं का समुच्चय है। यह शिक्षासंग्रह बनारस सीरीज से युगलकिशोर पाठक के संपादकत्व में सन 1893 में प्रकाशित हुआ है। ये शिक्षाएं चारों वेदों की भिन्न भिन्न शाखाओं से संबंध रखती हैं। शिक्षाविषयक कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथों का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया है। शिक्षा (वेदांग) विषयक ग्रन्थों में पाणिनीय शिक्षा (श्लोक संख्या 60) याज्ञवल्क्यशिक्षा (श्लोक संख्या 232), वासिष्ठी शिक्षा, कात्यायनी, पाराशरी, माण्डव्य, अमोघनन्दिनी, माध्यन्दिनी, वर्णरत्नप्रदीपिका, केशवी, मल्लशर्म, नारदीय, माण्डूकी, आपिशली, चंद्रगोमी इत्यादि प्राचीन ग्रंथों की गणना होती है। इन सभी शिक्षा-ग्रंथों में पाणिनीय शिक्षा विशेष महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इस शिक्षा के रचयिता स्वयं सूत्रकार पाणिनि नहीं माने जाते क्यों कि ग्रंथ के अंत में पाणिनिस्तुतिपर कुछ श्लोक आते हैं। पाणिनीय शिक्षा पर अनेक टीकाएं लिखी गई हैं। याज्ञवल्क्य शिक्षा में वैदिक स्वरों का सोदाहरण प्रतिपादन किया है। वासिष्ठी शिक्षा में ऋग्वेद और यजुर्वेद के मंत्रों की विभिन्नता सविस्तर बताई है। (1) याज्ञवल्क्य शिक्षा - श्लोक संख्या 232-1 इसका संबंध शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयी संहिता से है। वैदिक स्वरों के उदाहरण, लोप, आगम, विकार तथा प्रकृतिभाव इन चार प्रकारों की संधियां, वों के विभेद, स्वरूप, परस्पर साम्य आदि विषयों का विवेचन इस शिक्षा में किया है। (2) वासिष्ठी शिक्षा - इसका संबंध शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयी संहिता से है। इस शिक्षा के अनुसार शुक्ल यजुर्वेद की समग्र संहिता में ऋग्वेदीय मन्त्र 1467 और याजुष मंत्र 2823 है। इस संहिता में आने वाले ऋगमंत्र तथा याजुष मंत्रों की पृथक्ता सविस्तर बताई है। (3) कात्यायनी शिक्षा - श्लोक संख्या 121-1 इस पर जयन्तस्वामी कृत संक्षिप्त टीका है। (4) पाराशरी शिक्षा - श्लोक संख्या 160-1 28 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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