________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नामक प्रकरण के टीकाकार । मित्रमिश्र - पिता-परशुराम पंडित। पितामह-हंसपंडित।
ओरछा-नरेश वीरसिंह देव के आश्रित, जिनका शासनकाल सं. 1605 से 1627 तक था। इन्होंने वीरसिंह की ही प्रेरणा से "वीरमित्रोदय" नामक बृहत् प्रबन्ध का प्रणयन किया था। यह पद्य ग्रंथ 22 प्रकाशों में विभाजित है। सभी प्रकाश अपने आप में विशाल ग्रंथ हैं। उदाहणार्थ "व्रतप्रकाश" के श्लोकों की संख्या 22,650 है और "संस्कार-प्रकाश" की श्लोक संख्या 17,415 है। "वीरमित्रोदय" में धर्मशास्त्र के सभी विषयों के अतिरिक्त राजनीतिशास्त्र का भी निरूपण है। मित्रमिश्र ने याज्ञवल्क्यस्मृति पर भाष्य की भी रचना की थी। इनके काव्य “आनंदकंदचम्पू" में बाल श्रीकृष्ण की लीला वर्णित है। मिराशी - वासुदेव विष्णु - पद्मभूषण महामहोपाध्याय, डाक्टर आफ लेटर्स इत्यादि उपाधियों से विभूषित। राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद, डा. राधाकृष्णन् और इंदिरा गांधी द्वारा सम्मानित । नागपुर विश्वविद्यालय में अनेक वर्षों तक संस्कृत-पालिप्राकृत विभाग के और प्राचीन भारतेतिहास और संस्कृति विभागों के अध्यक्ष। “कार्पस्कस् इंडिकेरम्" नामक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ के संपादक। संशोधन-मुक्तावली नामक ग्रंथमाला में आपके अनेक शोधनिबंध प्रकाशित हुए हैं। नागपुर विदर्भ संशोधन मंडल के संस्थापक। संस्कृतरचना - हर्षचरितसारः (सटीक)। सन 1986 में आपका देहान्त नागपुर में हुआ। मीननाथ - ई. 10 वीं शती। एक बंगाली सिद्ध पुरुष । "स्मरदीपिका" या रतिरत्नप्रदीपिका नामक कामशास्त्रीय ग्रंथ के लेखक। मुंजाल (मंजुल) - समय, ई. 10 वीं शताब्दी। ज्योतिषशास्त्र के प्रसिद्ध आचार्य। "लघुमानस' नामक सुप्रसिद्ध ज्योतिष-विषयक ग्रंथ के प्रणेता। ज्योतिषशास्त्र के इतिहास में इनका महत्त्व दो कारणों से है। इन्होंने सर्वप्रथम ताराओं का निरीक्षण कर नवीन तथ्य प्रस्तुत करने की विधि का आविष्कार किया । म.म.पं. सुधाकर द्विवेदी ने भी अपने ग्रंथ "गणकतरंगिणी" में मुंजाल की प्रासादिक शैली की प्रशंसा की है। इनके "लघुमानस" का प्रकाशन परमेश्वर कृत संस्कृत टीका के साथ 1944 ई. में हो चुका है, संपादक हैं वी. डी. आपटे। एन. के. मजूमदार कृत इसका अंग्रेजी अनुवाद भी 1951 ई. में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ है। मुंजे, बालकृष्ण शिवराम (डा) - रचना- नेत्रचिकित्सा। संकल्पित तीन खण्डों में से केवल एक ही लिख पाए। नागपुर (महाराष्ट्र) के निवासी। मुंबई के मेडिकल कालेज में अध्ययन हुआ। आयुर्वेद तथा कौटिलीय अर्थशास्त्र का विशेष अध्ययन किया था। लोकमान्य तिलक के अनुयायी होने के कारण सारा जीवन राजनीतिक कार्यों में व्यस्त रहा। अनेक वर्षों तक हिंदुमहासभा का नेतृत्व किया। उत्तरायुष्य में नासिक में भोसला
मिलिटरी स्कूल की स्थापना की। नेत्रचिकित्सा की प्रथम आवृत्ति का प्रकाशन चित्रशाला प्रेस, पुणे से 1930 ई. में। द्वितीय संस्करण 1976 में डाक्टरसाहब की शताब्दी निमित्त बैद्यनाथ प्रकाशन, नागपुर द्वारा प्रकाशित। मुकुलभट्ट - "अभिधावृत्तिमातृका" नामक काव्यशास्त्र विषयक लघु किंतु प्रौढ ग्रंथ के प्रणेता। समय ई. 9 वीं शती। अपने ग्रंथ के अंत में इन्होंने स्वयं को कल्लट भट्ट का पुत्र कहा है। उद्भट कृत "काव्यालंकारसारसंग्रह" के टीकाकार प्रतिहारेंदुराज ने स्वयं को मुकुल का शिष्य कहा है और इन्हें मीमांसा, साहित्य, व्याकरण व तर्क का प्रकांड पंडित माना है। "अभिधावृत्तिमातृका" में केवल 15 कारिकायें हैं जिन पर इन्होंने स्वयं वृत्ति लिखी है। ये व्यंजना-विरोधी आचार्य हैं। इन्होंने अभिधा को ही एकमात्र शक्ति मान कर उसमें लक्षणा व व्यंजना का अंतर्भाव किया है। मम्मट ने इनके ग्रंथ "अभिधावृत्तिमातृका" के आधार पर "शब्दव्यापारविचार" नामक ग्रंथ का प्रणयन किया था। मुडुम्बी नरसिंहाचार्य - विजयानगरम् के नरेश विजयराम गणपति तथा आनन्द गणपति के आश्रित । रचनाएं- काव्योपोद्घात, काव्यप्रयोगविधि, काव्यसूत्रवृत्ति, अलंकारमाला, दैवोपालम्भः, नरसिंहाट्टहास, जयसिंहश्वमेधीय, युद्धप्रोत्साहनम् और व्हिक्टोरिया-प्रशस्तिः। मुडुम्बी वेंकटराम नरसिंहाचार्य - समय 1842 से 1928 ई. । माता-रङ्गाम्बा, पिता-वीरराघव। विजयनगर के गणपति विजयराम के आश्रित। प्रमुख रचनाएं- चित्सूर्यालोक, गजेन्द्रव्यायोग, राजहंसीय (नाटक), वासवी-पाराशरीय (प्रकरण), रामचंद्र-कथामृत, भागवतम्, खलावहेलन, नीतिरहस्य, उज्वलानन्दचम्पू, काव्यालङ्कार-संग्रह इत्यादि कुल 114 ग्रंथ इन्होंने लिखे हैं। मुद्गल - ई. 14 वीं शती। ऋग्वेद के भाष्यकार । भाष्य-ग्रंथ त्रुटित रूप में उपलब्ध है। यह भाष्य, सायण कृत भाष्य का ही संक्षेप है। इस तरह का संकेत स्वयं ग्रंथकार ने ही दिया है। मुहुराम - तंजौर के महाराज शाहजी (1684-1711 ई.) द्वारा सम्मानित । तंजौर निवासी। पिता-रघुनाथाध्वरी। माता-जानकी। "रसिकतिलक' भाण के रचयिता। मुनिभद्रसूरि - जैनधर्मी बृहद्गच्छ के विद्वान्। मुहम्मद तुगलक द्वारा सम्मानित। गुणभद्रसूरि के शिष्य। समय ई. 14 वीं शती। ग्रंथ-शान्तिनाथ-चरित (सन् 1353) 14 सर्ग। कालिदास, भारवि आदि महाकावियों के काव्य में दोषावलोकन कर ग्रंथ की रचना की गई है। राजशेखरसूरि द्वारा संशोधित ।। मुनीश्वर - ज्योतिषशास्त्र के आचार्य। प्रसिद्ध ज्योतिषि रंगनाथ के सुपुत्र। स्थिति-काल ई. 17 वीं शती। इन्होंने "सिद्धान्तसार्वभौम" नामक सुप्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की है तथा भास्कराचार्य-प्रणीत "सिद्धांतशिरोमणि" एवं "लीलावती"
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 415
For Private and Personal Use Only