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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर टीकायें लिखी हैं। मुम्मिडि चिक्कदेवराय - मैसूर के नरेश (ई. स. 1672 से 1704)। रचना-भरतसारसंग्रह।। मुरलीधर - पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक आचार्य वल्लभ के अणु-भाष्य पर इन्होंने सिद्धान्त-प्रदीप नाम की टीका लिखी है। मुरारि - "अनर्धराघव" नाटक के रचयिता। बंगाल निवासी। इस नाटक की प्रस्तावना से ज्ञात होता है कि उनके पिता का नाम वर्धमान भट्ट व माता का नाम तंतुमती था। वे मौद्गल्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। सूक्ति-ग्रंथों में इनकी प्रशंसा के अनेक श्लोक प्राप्त होते हैं। सूक्ति-ग्रंथों से स्पष्ट होता है कि मुरारि, माघ और भवभूति के परवर्ती थे। ये भवभूति की काव्य-शैली से प्रभावित हैं। अतः उनका समय 700 ई. के पश्चात् है। रत्नाकर ने अपने "हरविजय" महाकाव्य के एक श्लोक में मुरारि की चर्चा की है। अतः वे रत्नाकर (850 ई.) के पूर्ववर्ती हैं। मंख-रचित "श्रीकंठचरित" (1135 ई.) में मुरारि, राजशेखर के पूर्ववर्ती सिद्ध किये गये हैं। इन प्रमाणों के आधार पर मुरारि का समय 800 ई. के आस-पास निश्चित होता है। मुरारिमिश्र - समय ई. 12 वां शतक। मीमांसा-दर्शन के अंतर्गत मुरारि-परंपरा या मिश्र-परंपरा के प्रतिष्ठापक आचार्य । इन्होंने "नयविवेक" नामक ग्रंथ के प्रणेता तथा गुरुमत के अनुयायी भवनाथ नामक प्रसिद्ध मीमांसक के मत का खंडन किया है जिनका समय ई. 11 वीं शती है। इस आधार पर ये भवनाथ के परवर्ती सिद्ध होते हैं। मुरारि मिश्र के सभी ग्रंथ प्राप्त नहीं होते, और जो प्राप्त हुए हैं, वे अधूरे हैं। कुछ वर्षों पूर्व डा. उमेश मिश्र को इनके दो ग्रंथ प्राप्त हुए हैं। त्रिपादनीतिनयम् और एकादशाध्यायाधिकरणम्। दोनों ही ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। प्रथम ग्रंथ में जैमिनि के प्रारंभिक चार सूत्रों की व्याख्या है तथा द्वितीय में जैमिनि के 11 वें अध्याय में विवेचित कुछ अंशों की व्याख्या प्रस्तुत की गई है। इन्होंने प्रामाण्यवाद के संबंध में अपने मौलिक विचार व्यक्त किये हैं। इनके मत का उल्लेख अनेक दार्शनिकों ने किया है जिनमें प्रसिद्ध नव्यनैयायिक गंगेश उपाध्याय और उनके पुत्र वर्धमान उपाध्याय हैं। मुरारिदान चारण - जन्म 1837 में। कवि मुरारिदान चारण जोधपुर के निवासी थे। ये साहित्यशास्त्र के विद्वान थे। इन्होंने काव्यशास्त्रीय प्रसिद्ध ग्रन्थ "भाषा-भूषण" का संस्कृत रूपान्तर, "यशवन्तयशोभूषणम्" नाम से किया है। मॅक्डॉनल - पूरा नाम डा. आर्थर एंटनी मॅक्डॉनेल। जन्म 11 मई 1854 ई. में मजुफरपुर (बिहार) में। इनके पिता अलेक्जेंडर मॅक्डॉनेल भारतीय सेना के एक उच्च-पदस्थ अधिकारी थे। शिक्षा, गोटिंगन (जर्मनी) में। इन्होंने तुलनात्मक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से जर्मन, संस्कृत व चीनी भाषाओं का अध्ययन किया था। ये, प्रसिद्ध वैयाकरण विलियम्स, बेनफी (भाषा-शास्त्री), रॉय एवं मैक्समुलर के शिष्य थे। इनका जन्म भारत में, किंतु शिक्षा-दीक्षा विदेशों में हुई। 1907 ई. में इन्होंने 6-7 मास के लिये भारत की यात्रा की थी और इसी यात्रा-काल में इन्होंने भारतीय हस्तलिखित पोथियों पर अनुसंधान किया था। एम. ए. करने के पश्चात् इन्होंने ऋग्वेद की कात्यायन कृत सर्वानुक्रमणी का पाठ-शोध कर उस पर प्रबंध लिखा। इसी पर इन्हें लिजिग विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त हुई। पश्चात् इनकी नियुक्ति संस्कृत-प्राध्यापक के रूप में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुई। इनके ग्रंथों की नामावली - 1) ऋग्वेद सर्वानुक्रमणिका का "वेदार्थ-दीपिका" सहित संपादन (1896 ई.), 2) वैदिक-रीडर (1897 ई.), 3) हिस्ट्री आफ संस्कृत लिटरेचर (1900 ई.), 4) टिप्पणी सहित बृहदेवता का संपादन (1904) और 5) वैदिक ग्रामर (1910 ई.), साथ ही वैदिक इंडेक्स (कीथ के सहयोग से)। मेघविजय (गणि) - समय- ई. 18 वीं शती। तपागच्छ के जैनाचार्य। कृपाविजय के शिष्य । गुरुपरम्परा - हीरविजय, कनकविजय, शीलविजय, कमलविजय, सिद्धिविजय और कृपाविजय। ग्रंथ 1) देवानन्द महाकाव्य (सात पर्व), इसमें माघ काव्य की पादपूर्ति है। 2) शान्तिनाथचरित (छह सर्ग) नैषध महाकाव्य के प्रथम सर्ग के सम्पूर्ण श्लोकों की समस्यापूर्ति, 3) मेघदूत समस्यालेख - मेघदूत की समस्यापूर्ति, 4) दिग्विजय महाकाव्य (13 सर्ग) विजयप्रभसूरि का चरित निबद्ध, 5) हस्तसंजीवन (सामुद्रिक शास्त्रपरक), 6) वर्षप्रबोध (ज्योतिष), 7) युक्तिप्रबोध नाटक (दार्शनिक), 8) चन्द्रप्रभा (सिद्धहेमशब्दानुशासन की कौमुदी रूप टीका), 9) सप्तसंधान काव्य नामक श्लेषकाव्य, जिसमें ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, रामचंद्र और श्रीकृष्ण इन सात महापुरुषों का चरित श्लेष अलंकार में वर्णन किया गया है। एक श्लोक के सात अर्थ निकलना यह महान् चमत्कार है। मेडपल्ली वेंकटरमणाचार्य - जन्म ई. 1862। महाराज महाविद्यालय में संस्कृत पण्डित। रचना- अनुवाद गीर्वाणशठगोपसहस्रम्, (मूल- तमिल भक्तिकाव्य) अनु. शेक्सपियर-नाटक-कथावली, मूल शेक्सपियर नाटक कथाएं (चार्ल्स लॅम्ब कृत)। मेदिनीकर - ई. 12 वीं शती। बंगाली। पिता प्राणकर । कृतियां- मेदिनी नामक शब्दार्थ कोश। मेधावि-रुद्र (मेधावी) - काव्य-शास्त्र के आचार्य। इनका कोई भी ग्रंथ उपलब्ध नहीं है, किंतु इनके विचार भामह, रुद्रट, नमिसाधु एवं राजशेखर प्रभृति के ग्रंथों में प्राप्त होते हैं। मेधाविरुद्र, भरत व भामह के बीच पड़ने वाले समय के सुदीर्घ व्यवधान में हुए होंगे। उपमा के 7 दोषों का विवेचन करते हुए भामह ने इनके मत का उल्लेख किया है। 416/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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