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जानकारी प्राप्त नहीं होती। डा. एस.के.डे के अनुसार इनका समय ई. 7 वीं शताब्दी है। इन्होंने अपने इस वैष्णव काव्य की रचना 'मेघदूत' के अनुकरण पर की है। माधव कवीन्द्र - समय- 1850-1895 ई.। इनका जन्म राजस्थान के अन्तर्गत विजयपुर राज्य के छीर ग्राम में हुआ था। पिता- रामवृक्ष, माता- जयकुमारी। ये दाधीच ब्राह्मण थे। इनकी शिक्षा महाराजा संस्कृत कालेज, जयपुर में हुई थी। कवि की प्रमुख कृति है - 'मुक्तिलहरी' । माधवचन्द्र विद्य - माधवचन्द्र नाम के 10-11 विद्वान् हुए हैं। उनमें दो का नाम उल्लेखनीय है। प्रथम माधवचन्द्र विद्य वे हैं जो आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य थे। उनका समय ई. 10 वीं शताब्दी का अन्तिम भाग होना चाहिये। उनका ग्रंथ है त्रिलोकसार की संस्कृत टीका।
दूसरे माधवचन्द्र विद्य वे हैं जो चन्द्रसूरि के प्रशिष्य और सकलचन्द्र के शिष्य थे। उन्होंने क्षुल्लकपुर (कोल्हापुर) में 'क्षपणासार-गद्य' की रचना (शिलाहार कुल के राजा वीर भोजदेव के प्रधानमन्त्री बाहुबली के लिए) की। समय- ई. 13 वीं शती का प्रथम चरण। दोनों विद्वान त्रैविद्य अर्थात् जैनसिद्धांत, व्याकरण और न्यायशास्त्र के पण्डित थे। माधवभट्ट- ई. 16 वीं शती। पिता- मण्डलेश्वर । माता-इन्दुमती। श्रीपर्वत के समीप निवास। कृति- 'सुभद्राहरण' नामक एकांकी, जो श्रीगदित कोटि का एकमात्र उपलब्ध उपरूपक है। माधवभट्ट (कविराज) - 'राघव-पांडवीय' नामक श्लेष-प्रधान महाकाव्य के प्रणेता जिसमें आरंभ से अंत तक एक ही शब्दावली में रामायण और महाभारत की कथा कही गई। इनका वास्तविक नाम माधवभट्ट था और कविराज उपाधि थी। ये जयंतीपुर में कादंब-वंशीय राजा कामदेव के सभा-कवि थे जिनका शासन-काल 1182 से 1187 ई. तक रहा था। अपने ग्रंथ में इन्होंने स्वयं को सुबंधु एवं बाणभट्ट की श्रेणी में रखते हुए भंगिमामयश्लेषरचना की परिपाटी में निपुण कहा है तथा यह भी विचार व्यक्त किया है कि इस प्रकार का कोई चतुर्थ कवि है या नहीं इसमें संदेह है :
'सुबन्धुर्बाणभट्टश्च कविराज इति त्रयः।।
वक्रोक्तिमार्गनिपुणाः चतुर्थो विद्यते न वा।। (1/44) माध्यंदिनि - संस्कृत के पाणिनि पूर्वकालीन वैयाकरण। पं. युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार इनका समय 3000 वि. पू. है। 'काशिका' की उद्धृत एक कारिका से ज्ञात होता है कि इन्होंने एक व्याकरण-शास्त्र का प्रवर्तन किया था। (काशिका, 9-1-14)। पिता- मध्यंदिन। इनके नाम से दो ग्रंथ उपलब्ध होते हैं- 'शुक्लयजुः पदपाठ' तथा 'माध्यंदिनशिक्षा' । कात्यायन कृत 'शुक्लयजुःप्रातिशाख्य' में, 'माध्यंदिन-संहिता' के अध्येता माध्यंदिनि का एक मत उद्धृत है (8-35)। 'वायुपुराण' में
माध्यंदिनि को याज्ञवल्क्य का साक्षात् शिष्य कहा गया है (61-24, 25)। 'माध्यंदिन-शिक्षा' में स्वर तथा उच्चारण संबंधी नियमों का निरूपण है। इस शिक्षाग्रंथ के दो रूप हैं- लघु एवं बृहत्। मान्धाता - ई. 15 वीं शताब्दी का पूर्वार्ध । 'नूतनभोजराज'मदनपाल के द्वितीय पुत्र । 'संस्कृतविधाता' और 'रिपुकुलजेता' की उपाधियों से विभूषित। विश्वेश्वरभट्ट की सहायता से 'मदनमहार्णव' नामक कर्मविपाक-विषयक ग्रंथ की रचना की। कर्मविपाक के कारण कौन से रोग उत्पन्न होते हैं और उनका निवारण किन उपायों से करना चाहिये, इसका प्रतिपादन मदनमहार्णव में किया गया है। मानतुंग - समय- लगभग 7 वीं शती। इनके जीवन के विषय में अनेक किंवदन्तियां हैं। पायमल्लकृत 'भक्तामरवृत्ति' में, विश्वभूषणकृत' भक्तामरचरित में, प्रभाचन्द्रसूरिकृत 'प्रभावकचरित' में और मेरुतुंगकृत प्रबन्धचिन्तामणि में अनेक चमतमरपूर्ण इतिवृत्त उल्लिखित हैं। ये दिगम्बर-श्वेताम्बर-सम्प्रदाय द्वारा समान रूप से मान्य हैं। भक्त-कवि। ब्राह्मण कुलोत्पन्न । चमत्कार दिखाने के उद्देश्य से हथकड़ियों और बेड़ियों से हाथ-पैर कसवाकर, मानतुंग युगादिदेव मंदिर के पिछले भाग में बैठ गये। फिर मानतुंग ने 'भक्तामरस्तोत्र' की रचना कर अपने आपको उनसे मुक्त कर लिया। मानतुंग नाम के अनेक विद्वान् उत्तरकाल में हुए हैं। मानतुंग सूरि - जैनधर्मी कोटिगण की वैरशाखा के अन्तर्गत चन्द्रगच्छ से संबद्ध । रचना- श्रेयांसनाथ-चरित- (वि.सं. 1332) । इस काव्य का आधार है- देवभद्राचार्य- विरचित प्राकृत काव्य श्रेयांसनाथ-चरित। मानतुंग सूरि की शिष्यपरम्परा में क्रमशः रविप्रभसूरि, नरसिंहसूरि, नरेन्द्रप्रभसूरि और विनयचन्द्रसूरि पूर्णिमागच्छ के अधिपति । अन्य ग्रंथ- जयन्तीचरित (प्राकृत) तथा स्वप्रविचारभाष्य। मानदेव - कालीकत के नरेश। अपरनाम एरलपट्टी। रचना'मानदेव-चम्पू-भारतम्' मानवल्ली गंगाधरशास्त्र (म.म.) - सी.आई.ई.आन्ध्र पण्डित । वाराणसी में वास्तव्य। रचना- काव्यात्मक संशोधन, रसगंगाधर-टीका, राजाराम शास्त्री तथा बालशास्त्री (लेखक के गुरु) का पद्यमय चरित्र, भर्तृहरिकृत-वाक्यपदीयम् और कुमारिलभट्टकृत तन्त्रवार्तिक (व्याकरण और मीमांसा विषयक) ग्रन्थों का संस्करण आपने किया है। मानवेद - परम वैष्णव। गुरुवपूर (केरल) के विष्णु मन्दिर में निवास । आध्यात्मिक गुरु-बिल्वमंगल । व्याकरणों के गुरु-कृष्ण पिशारोटी। कृतियां-कृष्णनाटक (गीतिनाट्य) और पूर्वभारतचम्पू (अनन्तभट्ट के अपूर्ण भारतचम्पू पर आगे बढाई हुई रचना) । मानांक- ई. 10 वीं शती। वृन्दावन-यमकम् (चित्रकाव्य) तथा मेघाभ्युदय (काव्य) के प्रणेता। भवभूतिकृत मालती-माधव
414/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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