________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
के प्रन्थों के लेखक। मदनविनोद ग्रन्थ में आयुर्वेद की अनेक वनस्पतियों के गुणधर्मों का वर्णन है। मदन बालसरस्वती - ई. 13 वीं शती। गौडदेशीय। धार के परमार राजा अर्जुनदेव के गुरु । 'पारिजात-मंजरी' नामक नाटक के प्रणेता। मदभूषी वेंकटाचार्य - ई. 19-20 वीं शती। अनन्ताचार्य के पुत्र, नैध्रुवकाश्यप गोत्र, पूर्व गोदावरी जिले के सामलकोट के निवासी। रचना- अर्जुनादिमतसार (संगीत-विषयक)। अन्य रचना-शुद्धसत्त्वम् (नाटक)। मधुर कवि - वाजिवंश। भारद्वाज गोत्र । पिता-विष्ण। माता-नागाम्बिका। विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक बुक्कराय के पुत्र हरिहर (द्वितीय- 1377-1404 ई.) के मंत्री के आश्रित कवि। दक्षिण कर्नाटक के वासी। रचना- धर्मनाथ-पुराण और गोम्मटाष्टक। मधुच्छंदा - ऋग्वेद के प्रथम मंडल के प्रथम दस तथा नवम मंडल के प्रथम सूक्त के द्रष्टा। विश्वामित्र मुनि के सौ पुत्रों में से ये 51 वें पुत्र थे। ये शांति के पुरोहित थे। इन्हें धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा राजसूय यज्ञ के लिये आमंत्रित किया गया था। (भागवत- 10-74-9 तथा वायुपुराण 91-96)। इन्हें जेता तथा अधमर्षण नामक दो पुत्र थे। इन्होंने ऋग्वेद के लिये तथा इनके पिता ने अर्थववेद के लिये ऋचायें रचीं थी। इसलिये इन्हें अथर्ववेद तथा ऋग्वेद के बीच की कडी । मानते हैं। मधुरवाणी - समय- 17 वीं शती। कुछ लोगों के अनुसार ये तंजौर के राजा रघुनाथ नायक की पत्नी, तो कुछ लोगों के अनुसार राजसभा की कवयित्री थीं। तेलगु, प्राकृत तथा संस्कृत पर इनका समान रूप से अधिकार था तथा वे तीनों भाषाओं में कवितायें करती थीं। ये समस्यापूर्ति में अत्यंत निपुण थीं। ये वीणा उत्तम बजाती थीं तथा कहा जाता है कि उसके कारण ही इनका नाम मधुरवाणी प्रचलित हुआ। इन्होंने एक तेलगु रामायण का संस्कृत रूपांतर किया है। प्रस्तत रूपांतर की संदर कांड तक की रचना उपलब्ध है। इस रूपांतर के विषय में एक किंवदन्ती प्रचलित है। एक बार रघुनाथ की राजसभा में उनके द्वारा रचित तेलगु रामायण का पाठ हो रहा था। उस समय वहां उपस्थित कवयित्रियों से राजा ने पूछा कि क्या उनमें से कोई उस काव्य का संस्कृत में रूपांतर कर सकती है। कोई प्रस्तुत्तर नहीं मिला परंतु रात्रि को राजा को स्वप्न में दृष्टांत हुआ कि वह मधुरवाणी से उस काव्य का संस्कृत में रूपान्तर करवा ले। राजाज्ञा से मधुरवाणी ने वह काम पूर्ण किया। मधुसूदन - कृष्णसरस्वती के शिष्य । नारायण के पुत्र । रचनाकृष्णकुतूहलम्। मधुसूदनजी ओझा (समीक्षा चक्रवर्ती) - जन्म ई. 1845
में, बिहार प्रान्त के गाढा ग्राम (जिला मुजफरपुर) में। पितापं. बैद्यनाथ ओझा, उच्च क्षेणी के विद्वान । सन्तानहीन काका के दत्तक पुत्र । जयपुर राज्य-पण्डित काका के पास अध्ययन । जयपुर नरेश तथा काका के देहान्त से अपने पिता के घर वापिस लोटे। वाराणसी में आगे का अध्ययन किया। 17 वर्ष की आयु में विवाह । अध्ययनोपरान्त अनेक संस्थानों में परिभ्रमण के बाद जयपुर के महाराजा संस्कृत कालेज में वेदान्त के प्राध्यापक, राजग्रन्थालय के प्रमुख तथा धर्मसभाध्यक्ष हुए। जयपुर-नरेश के साथ सन् 1902 में इंग्लैड का प्रवास हुआ। वहां केम्ब्रिज वि.वि. में संस्कृत में वेद-विज्ञान तथा वेद-इतिहास पर व्याख्यान। मैकडोनेल, बेंडाल आदि विद्वानों द्वारा महान् सत्कार। सन् 1915 में 70 वर्ष की आयु में देहान्त । लगभग 50 वर्षों तक वैदिक विज्ञान तथा इतिहास का अन्वेषण कर क्रमबद्ध सूत्र तैयार किया। अतः इन्हें आधुनिक ऋषि मानते हैं। मधुसूदनजी ने प्रभूत मात्रा में लेखन कार्य किया। उनके पुत्र प्रद्युम्नजी ओझा ने लगभग 50 ग्रन्थ प्रकाशित किये। अभी भी अप्रकाशित हस्तलिखितों की सूची बडी है। इनकी रचनाएं योजनाबद्ध थीं। रचनाएं- ब्रह्म-विज्ञान-खण्ड- (उपविभाग दिव्य-विभूति)।
1. जगद्गुरु-वैभव, 2. स्वर्गसन्देश, 3. इन्द्रविजय (उप विभाग-उक्थवैराजिक)- 4. सदसद्वाद, 5. व्योमवाद, 6. अपरवाद, 7. आवरणवाद, 8. अम्भोवाद, 9. अहोरात्रवाद, 10. संशयतदुच्छेदवाद, 11. दशकवाद-रहस्यम्। (उप विभाग-आर्यहृदयसर्वस्व)- 12. गीताविज्ञानभाष्यस्य प्रथम रहस्य-काण्डम्, 13. गीताविज्ञान. द्वितीय-रहस्य-काण्डम, 14. गीता.- तृतीयं आचार्यकाण्डम्, 15. गीता- चतुर्थ हृदयकाण्डम्, 16. शारीरक-विज्ञान भाष्यस्य प्रथमः भागः, 17. शारीरकद्वितीयः भागः, 18. शारीरकविमर्शः (उपविभाग-विज्ञानप्रवेशिका)19. विज्ञान-विद्युत्, 20. ब्रह्मविज्ञान-प्रवेशिका, 21. ब्रह्मविज्ञानम् । (उपविभाग-सायन्य प्रदीप) 22. पंचभूतसमीक्षा, 23३. वस्तुसमीक्षा, यज्ञ-विज्ञानखंड (उ.वि.-निचित्कलाप) 24. देवतानिवित्। (उ.वि.-यज्ञमधुसूदन) 25. स्मार्तकुण्डसमीक्षाध्याय । 26. यज्ञोपकरणाध्याय, 27. यज्ञविटपाध्यायः, 28. कमनिक्रमणिकाध्याय, 29. आधिदैविकाध्याय । (उ.वि.-यज्ञविज्ञान- पद्धति) 30. यज्ञसरस्वती, 31. छन्दोभ्यस्ता, (उ.वि.-प्रयोग-पारिजात) 32. निरूढ पशुबद्ध, पुराणसमीक्षाखंड- (उ.वि.-विश्वविकास)- 33. पुराणोत्पत्ति प्रसंग, 34. ३५.वैदिक उपाख्यान, (उ.वि.-देवयुगाभास) 36. देवासुरख्याति, 37. माध्वख्याति, 38. अत्रिख्याति, (उ.वि.-प्रसंगचर्चितक) 39. पुराणाधिकरण वेदांगसमीक्षा खण्ड- (उ.वि.-वाक्यदिका)- 40. वैदिककोश, 41. पदनिरुक्त, (उ.वि.-ज्योतिश्चक्रधर)- 42. कादम्बिनी। (उ.वि.-आत्मसंस्कारकल्प)- 43. पितृसमीक्षा, 44. अशौचपंजिका, 45. धर्मपरीक्षा पंचिका, (उ.वि.-परिशिष्टानुग्रह)
406 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
For Private and Personal Use Only