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गोरखनाथ को इस बात का पता चला। वे वीरभद्र के निकट गये और उन्होंने मच्छिंद्रनाथ के देहखंड उनसे मांगे। वीरभद ने अस्वीकार किया। तब गोरखनाथ ने वीरभद्र तथा उनके साथियों से युद्ध कर अपने गुरु के देहखंड उनसे छीन लिये। गोरखनाथ ने संजीवनी-विद्या से देहखंडों को शरीराकृति प्रदान की ओर गुरु के पास संदेश भेजा। तब गुरुजी राजशरीर का त्याग कर अपने मूल शरीर में प्रविष्ट हुए।
डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इन आख्यायिकाओं तथा कथाओं का परिशीलन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि मच्छिंद्रनाथ योगमार्ग के प्रवर्तक थे परंतु दैववशात् वे एक ऐसी वामाचार-साधना में प्रविष्ट हो गए जिसमें निराबाध स्त्री-संग अनिवार्य था।
मत्स्येन्द्रनाथ के जन्मकाल के संबंध में मतभेद है। अनेक इतिहासवेत्ताओं का मत है कि वे 8 वीं, 9 वीं या 10 वीं शताब्दी में हुए हैं। इनके संप्रदाय में (1) कौलमत के ग्रंथों और (2) नाथमत के ग्रंथों को मान्यता है। कौलमत के ग्रंथ, कौलज्ञाननिर्णय, अकुलवीरतंत्र, कुलानंदतंत्र, तथा ज्ञानकलिका। इनके अतिरिक्त कामाख्यगुह्यसिद्धि, अकुलागमतंत्र कुलार्णवतंत्र, कौलोपनिषद्, ज्ञानकलिका कौलावलिनिर्णय आदि ग्रंथ भी मत्स्येन्द्रनाथ द्वारा रचित बताये जाते हैं। ये सारे ग्रंथ नेपाल के शासकीय ग्रंथालय में उपलब्ध है। __नाथमत के ग्रंथों में योगविषयक ग्रंथों तथा कुछ रचनाओं का समावेश है। नेपाल के नेवार लोग मत्स्येन्द्रनाथ को बहुत मानते हैं। ये लोग "कृषिदेव" के रूप में इनकी पूजा करते हैं। इसके लिये लकडी के पिण्ड को लाल रंग देकर उत्सवमूर्ति निर्माण करते है। नेपाल में मच्छिंद्रनाथ पर बौद्धमत का प्रभाव पडा है और उन्हें अवलोकितेश्वर का अवतार माना जाता है। पाटण में तथा बाघमती के तीर पर मच्छिंद्र का एक-एक मंदिर है। नेवारों की धारणा है कि मच्छिंद्रनाथ क्रमशः 6-6 महिने इन मंदिरों में रहते है। किंवदन्ती है कि जब एक बार नेपाल में अकाल पडा, तब गोरखनाथ मच्छिंद्रनाथ को बाघमती के तौर पर ले गये। उनके वहां जाने से अकाल दूर हो गया। श्रद्धालु नेवार इस मंदिर को मच्छिंद्रनाथ का प्रमुख निवासस्थान मानते हैं। गुरखा लोग भी इनकी उपासना करते हैं। मथित यामायन - एक सूक्तद्रष्टा। ऋग्वेद के 10 वें मंडल के 19 वें सूक्त के रचयिता। भृगु, च्यवन भी इसी सूक्त के रचयिता हैं। इस सूक्त में विनष्ट हुआ गोधन पुनः प्राप्त करने की दृष्टि से प्रार्थना की गयी है। मथुरानाथ - नवद्वीप (बंगाल) के एक प्रसिद्ध नव्य नैयायिक।। समय- ई. 16 वीं शताब्दी। इन्होंने नव्यन्याय के आलोक, चिंतामणि व दीधिति इन 3 प्रसिद्ध ग्रंथों पर, 'रहस्य' नामक टीकाएं लिखी हैं। इनकी टीकाएं दार्शनिक जगत् में मौलिक ग्रंथ के रूप में मान्य हैं। टीकाओं में मूल ग्रंथों के गूढार्थ
का सम्यक् उद्घाटन किया गया है। मथुरानाथ - इन्होंने पुष्टिमार्गीय आचार्य वल्लभ के अणु-भाष्य पर 'प्रकाश' नामक टीका लिखी है। मथुरानाथ - ई. 19 वीं शताब्दी के एक ज्योतिषशास्त्रज्ञ । पिता-सदानंद। पटना (बिहार) के निवासी। काशी संस्कृत पाठशाला में वृत्ति । काशिराज शिवप्रसाद के पितामह दयालुचंद्र का आश्रय इन्हें प्राप्त हुआ था। इन्होंने ज्योतिषविषयक यंत्रराजघटना तथा ज्योतिःसिद्धांतसार नामक दो ग्रंथों की रचना की। मथुरानाथ तर्कवागीश - समय- ई. 17 वीं शती। पिता-रघुनाथ शिरोमणि। रचनाएं- आयुर्वेदभावना, तत्त्वचिन्तामणिरहस्यम्, आलोक-रहस्यम् (पक्षधर मिश्र जयदेव के तत्त्वचिन्तामणि आलोक की टीका), दीधिति-रहस्य (पिता के ग्रंथ की टीका), सिद्धान्तरहस्य, किरणावलि-प्रकाश-रहस्य, न्यायलीलावतीप्रकाश-रहस्य, न्यायलीलावती-रहस्य, बौद्धधिक्कार-रहस्य और आदिक्रियाविवेक। मथुराप्रसाद दीक्षित (म.म.) - जन्म सन् 1878 में, भगवन्तनगर ग्राम (जिला हरदोई उ.प्र.) में। पिता-बदरीनाथ । माता- कुन्तीदेवी। पितामह- हरिहर (प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य) पत्नी-गौरीदेवी। पुत्र-सदाशिव दीक्षित (संस्कृत नाटककार)। इनकी कृतियों की संख्या 24 हैं, जिनमें 6 नाटक हैं।
कृतियां :- निर्णय-रत्नाकर, नारायण-बलि-निर्णय, काशीशास्त्रार्थ, कुतर्क-तरु-कुठार, कलिदूतमुखमर्दन, जैनरहस्य, कुण्डगोलनिर्णय, मन्दिर-प्रवेश-निर्णय, आदर्श-लघुकौमुदी, वर्णसंकर-जाति-निर्णय, पणिनीय-सिद्धान्त-कौमुदी, मातृदर्शन, समास-चिन्तामणि, केलिकुतूहल, प्राकृतप्रकाश, रोगिमृत्यु-विज्ञान, गौरी-व्याकरण, पृथ्वीराजरासो की टीका, पालि-प्राकृत व्याकरण
और कविता-रहस्य। ___ अप्रकाशित नाटक - वीर-प्रताप, वीर-पृथ्वीराज-विजय, भारत-विजय, भक्त-सुदर्शन, शंकरविजय, गांधीविजय, भूभारोद्धरण। अप्रकाशित नाटक- जानकी-परिणय, युधिष्ठिरराज्य, कौरवोचित-भ्रष्टाचार-साम्राज्य। अप्रकाशित काव्यभगवत्-नख-शिख-वर्णनशतक, नारद-शिव-वर्णन। इनके अतिरिक्त, 'अभिधान-राजेन्द्र-कोश' का अंशतः सम्पादन । 'पृथ्वीराजरासो' की गवेषणात्मक टीका पर, 'महामहोपाध्याय' की उपाधि प्राप्त। मदनपाल - कन्नौज के नृपति। चन्द्रदेव के पुत्र। इनका शिलालेख प्राप्त (1104-1109 ई. का)। रचना-आनन्दसंजीवन (संगीत-विषयक)। शब्दकोश तथा धर्मशास्त्र पर भी इनकी रचना है। मदनपाल - ई. 14 वीं शती का उत्तरार्ध । 'नूतनभोजराज' इस उपाधि से विभूषित। मदनविनोदः और मदनपारिजातः (आयुर्वेद-विषयक), तिथिनिर्णयसागर और सूर्यसिद्धान्तविवेक (ज्योतिःशास्त्र- विषयक) और मंत्रप्रकाश आदि अन्य विषयों
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 405
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