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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवस्था में उसने अमात्यों से मंत्रणा कर राज्यभार मुंज को सौंपा और भोज को उसकी गोद में दे दिया। एक बार उसकी सभा में एक सर्वविद्यापारंगत ज्योतिषी आया। मुंज ने उसे भोज का फलित बताने की इच्छा प्रकट की। तब उस महापण्डित ने कहा कि भोज गौडसहित दक्षिणापथ का राज्य करेगा। यह जानकर राजा मुंज ने चौंक कर किसी प्रकार भोज को अपने मार्ग से अलग करना निश्चित किया। वंगदेश के वत्सराज को बुलवा कर आदेश दिया कि वह भुवनेश्वरी वन में भोज की हत्या कर दे तथा उसका कटा हुआ सिर राजा को लाकर दिखावे। वत्सराज के बहुत समझाने पर भी मुंज ने अपना आदेश नहीं फेरा तथा वत्सराज को आदेश पालन के लिये बाध्य किया। बेचारा वत्सराज भोज को साथ लेकर भुवनेश्वरी वन की और प्रस्थित हुआ। इधर भोज को उसका वध करने ले जाया गया यह जानकर धारावासी जनता अतिप्रक्षुब्ध हुई। इधर वत्सराज भोज को भुवनेश्वरी वन में महामाया मंदिर के पास ले गया। उसे उसके पितृतुल्य चाचा का आदेश सुनाया गया। भोज ने एक वटवृक्ष के पत्र पर अपने रक्त से एक संदेश लिख कर राजा मुंज को देने के लिये वत्सराज को सौपा। फिर उसने वत्सराज को शीघ्र ही मुंज की आज्ञा का पालन करने को कहा। भोज के देदीप्यमान मुख को देखकर वत्सराज करुणा से ओतप्रोत हो गया। उसने भोज को अपने घर में सुरक्षित रखा और एक कृत्रिम सिर बनवा कर राजा मुंज को दिखाया और साथ-साथ भोज का संदेश भी उसने मुंज को दिया। मुंज ने वह संदेश पढा - 'मान्धाता स महीपतिः कृतयुगालंकारभूतो गतः । सेतुर्येन महोदधौ विरचितः क्वाऽसौ दशास्यान्तकः । अन्ये चापि युधिष्ठिरप्रभृतयो याता दिवं भूपते । नैकेनापि समं गता वसुमती मुंज त्वया यास्यति । संदेश पढ़कर मुंज बेहोश हुआ। जब वह होश में आया तो अपने को महापापी कहते हुए पुत्रघात के प्रायश्चित्त के । लिये वह उद्युक्त हुआ। तब वत्सराज ने बुद्धिसागर अमात्य से विचारणा कर तथा उसे सत्य घटना बताकर भोज को मुंज के सम्मुख उपस्थित किया। मुंज अपने किये पर पछताते हुए भोज के सम्मुख बहुत रोया। भोज ने उसे आश्वस्त किया। इसके उपरान्त मुंज ने स्वयं भोज का राज्याभिषेक कर अपना पुत्र जयन्त, भोज को सौप दिया और स्वयं तपोवन में चला गया। भोज कथा- 4 एकबार मृगया के परिश्रम से थक कर भोज जंगल में एक वृक्ष के नीचे विश्रांति के लिये बैठ गये। उन्हें बडी प्यास लगी थी तथा पानी का कहीं पता नहीं था। धूप भी बड़ी तेज थी। इस से राजा बडे विकल थे। इतने में एक सुंदर गोपकन्या वहां से धारा नगरी की ओर जाती उन्हें दिखाई दी। उसके सिर पर रखे पात्र में छाछ था ओर वह उसे बेचने जा रही थी। उस पात्र में कोई पेय हो तो पीने की आशा से राजा ने उस कन्या से पूछा- 'तुम्हारे पात्र में क्या है। उसने उत्तर दिया___ हे नृपराज, हिम, कुन्द या चन्द्रमा के समान शुभ्र, पके हुए कपित्थ (केथ) के समान स्वाद वाला, युवति के हाथों मंथा हुआ, तथा रोगहर यह छाछ पीजिये। तक्रपान कर राजा बडे प्रसन्न हुए तथा उस कन्या से पूछा- 'क्या चाहती हो'। उसने तुरन्त जबाब दिया- 'राजन् जिस प्रकार चंद्रविकासि कमल चंद्रमा को, चातक वृन्द मेघ को, भौरों की श्रेणी सुगंधि फूलों को या स्त्री अपने परदेशगमन किये प्राणेश्वर को देखने उत्कण्ठित रहते हैं, उसी प्रकार मेरी चित्तवृत्ति आपको देखने के लिये लालायित रहती है।' उसका आशय जानकर राजा उसे अपने साथ धारा नगरी को ले गए तथा रानी लीलावती की अनुज्ञा से उस गोपकन्या को राजा ने अपनाया। भोलानाथ गंगटिकरी - ई. 20 वीं शती। बंगाली। 'पान्थदूत' नामक दूतकाव्य के रचयिता। मंख (मंखक) - समय-सन 1120 से 1170। पिता-विश्ववर्त (या विश्वव्रत)। काश्मीर के निवासी। राजतरंगिणी के अनुसार ये काश्मीर के राजा जयसिंह (सन् 1127 से 1149) के संधिविग्रहिक मंत्री थे। सुप्रसिध्द अलंकारशास्त्री रुय्यक इनके गुरु थे। गुरु के आदेश पर इन्होंने 'श्रीकंठ-चरित' की रचना की। 25 सगों के इस महाकाव्य में शंकर द्वारा त्रिपुरासुर के वध की कथा है। महाकाव्य के 25 वें सर्ग में, कवि द्वारा उनके बंधु मंत्री अलंकार के यहां होने वाली विद्वत्सभा तथा उसमें भाग लेने वाले तीस विद्वद्रत्नों का विस्तृत वर्णन है। उसमें आनंद, कल्याण, गर्ग, गोविंद, जल्हण, पट, पद्मराज, भुडु, लोष्ठदेव, कल्याण, गग, गाविद, जल्हण, पट, पद्मराज, मुड बागीश्वर, श्रीगर्भ तथा श्रीवत्स नामक कवियों का उल्लेख है। इन्होंने 'मंखकोश' नाम से एक शब्दकोश भी लिखा है। हेमचंद्र ने इसका उल्लेख अपने कोश में किया है। कोश में इन्होंने किसी भी विशिष्ट शब्द का उपयोग विशद करते समय अभिजात संस्कृत वाङ्मय के अवतरण उद्धृत किये हैं। यह इस कोश की विशेषता है। कोश अप्रकाशित है। 'श्रीकंठचरित' का प्रकाशन काव्यमाला से 1887 ई. में हो चुका है। इस महाकाव्य के कतिपय स्थलों पर आलोचनात्मक उक्तियां भी प्रस्तुत की गई हैं जिनमें मंखक की कवि एवं काव्य-संबंधी मान्यताएं निहित हैं। मंगराज - जन्मस्थान मुगुलिपुर (मैसूर)। संस्कृत और कन्नड के विद्वान्। ग्रंथ-खगेन्द्रमणि-दर्पण (विष-चिकित्सा का ग्रंथ)। 16 अधिकारों में विभक्त । ग्रंथ का अपर नाम जीवित-चिन्तामणि । 402 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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