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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हो गए। एडिनबरा-विश्वविद्यालय ने इन्हें डाक्टरेट की उपाधि गाथाएं दी गयी हैं। मनुस्मृति को चार विभागों में विभाजित से विभूषित किया। दि. 8 अप्रैल 1898 ई. को झील मे करने का श्रेय जिन चार ऋषियों को दिया जाता है, उनमें नौका-विहार करते हुए ये अचानक जल-समाधिस्थ हो गए। बृहस्पति एक हैं। अन्य तीन ऋषि हैं- आंगिरस, नारद और भृगु । उस समय आपकी आयु 61 वर्ष की थी। बृहस्पति मिश्र-ई. 15 वीं शती। पिता-गोविन्द । माता-नीलमुखायी बृहदुक्थ वामदेव - वामदेव के पुत्र हैं या वंशज, इस विषय देवी। "रायमुकुट" के नाम से विख्यात । राढ प्रदेश (बंगाल) में निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। ऋग्वेद के 10 वें मंडल के निवासी। गौड-नरेश से समाश्रय प्राप्त । कृतियां- पदचन्द्रिका के 54-56 सूक्तों के द्रष्टा। इनके पुत्र का नाम वाजिन था। अथवा अमरकोश-पंचिका, व्याख्याबृहस्पति (रघुवंश तथा कुमार पुत्र की मृत्यु के पश्चात् उसके शरीर के भाग ले जाने की पर टीका) और निर्णयबृहस्पति (माघ काव्य पर टीका)। इन्होंने देवताओं से प्रार्थना की है (10-56)। ऐतरेय ब्राह्मण बेडुल सुब्रह्मण्य शास्त्री- ई. 20 वीं शती। संस्कृत तथा से ज्ञात होता है कि इन्होंने पांचाल देश के दुर्मुख नामक तेलुगु में एम. ए.। ए. वी. एस. आर्ट्स कालेज, विशाखापट्टम राजा का राज्याभिषेक किया था। में तेलुगु के व्याख्याता। "वरुथिनी-प्रवर" नामक एकांकी के ___ इनके तीनों सूक्त इंद्र-स्तुतिपरक हैं। इन सूक्तों में इनकी प्रणेता। प्रतिभा का परिचय मिलता है। ये सूक्त श्रेष्ठ काव्यगुणों से युक्त हैं। बेल्लमकोण्ड रामराय- अल्पजीवन काल में लोकोत्तर ग्रंथसम्भार बृहद्दिव आथर्वण- ऋग्वेद के 10 वें मंडल के 120 वें। की निर्मिति करने वाले प्रकाण्ड विद्वान्। जन्म 1875 ई. में। सूक्त के द्रष्टा । यह सूक्त इंद्रस्तुतिपरक है। शाखांयन आरण्यक पिता-मोहनराय, माता-हनुमाम्बा। नरसाराबुपेट (आन्ध्र) के में इन्हें सुम्नयु का शिष्य कहा गया है। (15-1) । निवासी। पिता का शीघ्र ही देहान्त। काका के पास अध्ययन । बृहन्मति आंगिरस- ऋग्वेद के नवम मंडल के 39 वें तथा गुरु-सीताराम। हयग्रीवोपासना एवं रत्नगुरू के पास साधना । 40 वें सूक्त के द्रष्टा । इन सूक्तों में सोम की स्तुति की गयी है। अद्भुत काव्य-शक्ति। प्रायः 16 वर्ष की आयु में बृहस्पति- ऋग्वेद के 10 वें मंडल के 71 तथा 72 वें सूक्त रुक्मिणी-परिणय-चम्पू: (सटीक) और कृष्णलीलातरंगिणी इन काव्यों की निर्मिति। आदिलक्ष्मी से विवाह। दैनिक के द्रष्टा। इनके नाम की व्युत्पत्ति इस प्रकार है- "वाग् बृहती कार्यक्रम-उपासना, अध्यापन, अध्ययन, चिन्तन तथा ग्रंथशोधन तस्या एष पतिस्तस्मादु बृहस्पतिः", वाणी का पति बृहस्पति । व लेखन। सिद्धान्त-कौमुदी पर शरद्-रात्रिः नामक टीका । गुरुअपने सूक्त में दिव्य वाणी का महत्त्व बतलाते हुए ये रामशास्त्री प्रसन्न। चम्पू-भागवत की टीका गुरु के आदेश से कहते हैं- "सक्तुमिव तितउना पुनन्तो यत्र धीरा मनसा वाचमक्रत । की। इनकी कुल रचनाएं 143 हैं। आयु मर्यादा 38 वर्ष । अत्रा सखायः सख्यानि जानते। भद्रेषां लक्ष्मीर्निहिताधि वाचि"। मधुमेह से मृत्यु। पुल्य उमामहेश्वर शास्त्री ने इनका चरित्र (ऋ. 10-71-2)। लिखा (108 श्लोक) और इनकी कुछ रचनाओं का प्रकाशन अर्थ- जिस प्रकार चलनी से सत्तू छानकर साफ करते हैं, किया। उसी प्रकार शुद्ध बुद्धि के सत्पुरुष अपने अंतःकरण से ही प्रमुख रचनाएं- भगवद्गीताभाष्यार्थ-प्रकाश, समुद्रमन्थन-चम्पूः, भाषण करते हैं। ऐसे समय वे उस भाषण का मर्म समझते कन्दर्पदर्पविलास (भाण), शारीरक-चतुःसूत्रीविचारः, हैं जो भगवान् के प्रिय होते हैं तथा इन (सत्पुरुषों की) शंकराशंकर-भाष्यविमर्शः, वेदान्तकौस्तुभ, अद्वैतविजय, मुरारिनाटक वाणी में मंगलरूप लक्ष्मी निवास करती है। व्याख्या, दशावताराष्टोत्तराणि, धर्मप्रंशसा, काममीमांसा, इन्हें चतुर्विंशति रात्र, अन्य कुछ यागों (ते.सं.7-4-1) तथा त्रितरसम्मतम्, विद्यार्थिविद्योतनम्, रामायणान्तरार्थ, भारतान्तरार्थ, कुछ सामों के रचयिता कहा जाता है। बताया जाता है कि मोक्षप्रासादः, ब्राह्मणशब्दविचारः आदि। इन्होंने याज्ञवल्क्य को तत्त्वज्ञान की शिक्षा दी थी। बोकील, विनायकराव- जन्म-दि 8-1-1890 को, सातारा बृहस्पति (अर्थशास्त्रकार)- अर्थशास्त्र के एक प्राचीन आचार्य। जिले में। स्नातकीय शिक्षा पुणे के फर्ग्युसन कालेज में। सन् इनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र का ग्रंथ उपलब्ध नहीं है, परंतु 1939 से 1945 तक शिक्षा विभाग में इन्स्पेक्टर। पुणे में कौटिल्य ने अपने "अर्थशास्त्र" ग्रंथ में बार्हस्पत्य शाखा के प्राध्यापक के पद पर भी रहे। प्रवृत्ति आध्यात्मिक। मतों का छह बार उल्लेख किया है। कृतियां- (नाटक)- श्रीकृष्ण-रुक्मिणीय, सौभद्र, श्रीशिववैभव, राजा के 16 प्रधानमंत्री हों ऐसा इनका मत था। महाभारत भीमकीचकीय व रमा-माधव जिसमें माधवराव पेशवा और के अनुसार (शांति 59.80.85) ब्रह्मा द्वारा धर्म, अर्थ तथा उनकी धर्मपत्नी सती रमाबाई का व्यक्तित्व चित्रित किया है। काम-विषय पर लिखे हुए प्रचंड ग्रंथ का, इन्होंने 3 हजार (बालोपयोगी-बालरामायण), बालभागवत और बालभारत । इनके अध्यायों में संक्षेप किया है। वनपर्व में (महाभारत) बृहस्पति-नीति अतिरिक्त मराठी और अंग्रेजी में भी ग्रंथ-लेखन किया है। का उल्लेख है। शांतिपर्व में बृहस्पति के कुछ श्लोक तथा बोधायन- संभवतः ईसा पूर्व छठी से तीसरी शती के बीच संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 383 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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