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था। अर्थपति के 11 पुत्र थे जिनमें से चित्रभानु के पुत्र 'उन्हीं से शिक्षा प्राप्त । बाणभट्ट थे। बाण की माता का नाम राजदेवी था।
नदिया के महाराज कृष्णचन्द्र के सभाकवि। बाद में इनकी मां का देहांत इनकी बाल्यावस्था में ही हो चुका मुर्शिदाबाद में अलिवर्दीखान के पास रहे। फिर बर्दवान के था। पिता द्वारा ही इनका पालन पोषण हुआ। 14 वर्ष का राजा चित्रसेन के पास ई. 1744 तक रहे। उसकी मृत्यु के आयु में बाण के पिता भी इन्हें अकेला छोड स्वर्गवासी हुए। पश्चात् फिर कृष्णचन्द्र के आश्रय में। अनन्तर कलकत्ता के अतः योग्य अभिभावक के संरक्षण के अभाव में ये अनेक शोभा बाजार के महाराज नवकृष्णदेव के आश्रय में। अन्त प्रकार की शैशवोचित चपलताओं में फंस गए और देशाटन में सन् 1755 में काशीयात्रा की। करने के लिये निकले। इन्होंने अनेक गुरुकुलों में अध्ययन ___ वारेन हेस्टिंग्ज के आदेशानुसार "विवादार्णव-सेतु" की किया और कई राजकुलों को देखा।
रचना, जो फारसी तथा अंग्रेजी में अनूदित है। यह ग्रंथ 21 विद्वत्ता के प्रभाव से इन्हें महाराज हर्षवर्धन की सभा में खण्डों में है। ये समस्यापूर्ति में अद्वितीय आशुकवि थे।। स्थान प्राप्त हुआ। कुछ दिनों तक वहां रहकर बाण अपनी कृतियां- चन्द्राभिषेक (नौ अंक), चित्रचम्पू, रहस्यामृत जन्मभूमि को लौटे और हर्षवर्धन की जीवन गाथा प्रस्तुत की।
(महाकाव्य), वाराणसीशतक, शिवशतक (काव्य), हनुमत्स्तोत्र, फिर इन्होंने अपने महान् ग्रंथ "कादंबरी" का प्रणयन प्रारंभ तारास्तोत्र और विवादार्णवसेतु (धर्मशास्त्र-विषयक ज्ञान-कोश के किया, किन्तु इनके जीवन काल में यह ग्रंथ पूरा न हो सका। समान)। उनकी मृत्यु के पश्चात् उन्हीं की शैली में उनके पुत्र भूषणभट्ट
बादरायण- ई. पू. 6 वीं शती (अनुमानतः)। इनके द्वारा ने उनकी "कादंबरी' के उत्तर भाग को पूर्ण किया। कुछ
रचित ब्रह्मसूत्रों को वेदांतसूत्र अथवा व्याससूत्र कहते हैं। ये विद्वानों का यह भी कहना है कि कई स्थलों पर बाणतनय
"व्यास"- उपाधि से विभूषित थे। इन्होंने अपने ब्रह्मसूत्रों में ने अपने पिता से भी अधिक प्रौढता प्रदर्शित की है।
उपनिषदों के भिन्न-भिन्न सिद्धांतों का निवेदन किया है। ___ बाण की संतति के बारे में किसी भी प्रकार का उल्लेख
बापूदेव शास्त्री- जन्म-1686 ई. मृत्यु-1755 ई. । पिता-सीताराम । नहीं है। धनपाल को "तिलकमंजरी' में बाणतनय पुलिंध्र का
मूल निवास-अहमदनगर (महाराष्ट्र)। अध्ययनार्थ अधिक काल वर्णन है, जिसके आधार पर विद्वानों ने उनका नाम पुलिन
काशी में वास्तव्य। भारतीय तथा पाश्चात्य ज्योतिःशास्त्र का भट्ट निश्चित कर दिया है। "केवलोऽ पि स्फुरन् बाणः करोति
तौलनिक अभ्यास कर अनेक भाषाओं में ग्रंथ-लेखन । आधुनिक विमदान् कवीन्। किं पुतः क्लुप्तसंधानः पुलिंध्रकृतसन्निधिः।।"
काल के एकमेव श्रेष्ठ ज्योतिःशास्त्रज्ञ । शासकीय संस्कृत कालेज अनुमान है कि इनके गुरु भचु नामक महापंडित थे और
में अध्यापक। रचनाएं- रेखा-गणितम् (प्रथमाध्याय), इनका विवाह मयूरभट्ट नामक एक विद्वान पंडित की भगिनी
त्रिकोणमितिः, सायनवाद, प्राचीन अष्टादशविचित्र-प्रश्न-संग्रह, के साथ हुआ था।
तत्त्वविवेक-परीक्षा, मानमन्दिरस्य यंत्रवर्णनम्, अंकगणितम् आदि बाणकत 3 ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। हर्षचरित, कादंबरी और
प्रकाशित। अन्य हस्तलिखित ग्रंथ प्रकाशित। हिन्दी में प्रभूत चण्डीशतक। इनकी अन्य दो कृतियां भी प्रसिद्ध हैं, वे हैं :
लेखन । लीलावती का एक संस्करण प्रकाशित । सिद्धान्तशिरोमणि पार्वतीपरिणय व मुकटताडितक पर विद्वान् इन्हें अन्य बाणभट्ट
के गोलाध्याय का तथा सूर्यसिध्दान्त का अंग्रजी अनुवाद नामधारी लेखक की रचनाएं मानते हैं। बाणभट्ट के बारे में
विल्किन्सन की सहायता से किया। मैथिल पण्डित नीलाम्बर अनेक कवियों की प्रशस्तियां उपलब्ध होती हैं। बाणभट्ट का
शर्मा की पाश्चात्य पद्धति के अनुसार लिखित संस्कृत रचना समय 607 ई. से 648 ई. (महाराज हर्षवर्धन का शासनकाल)
गोलप्रकाशः का प्रकाशन किया। पाण्डित्य के कारण शासन तक है।
द्वारा सी.आई.ई. तथा महामहोपाध्याय की उपाधियां प्रदत्त । बाणभट्ट अत्यंत प्रतिभाशाली साहित्यकार हैं। इन्होंने कादंबरी की रचना कर, संस्कृत कथा साहित्य में युग प्रवर्तन किया।
बालकवि- ई. 16 वीं शती। उत्तर अर्काट में मुलुंड्रम के हर्षचरित की प्रस्तावना में इनकी अलंकार प्रचुर शैली संबंधी
निवासी। बाद में आश्रयदाता की खोज में केरल में आगमन । मान्यता का पता चलता है। इनके वर्णन संस्कृत काव्य की
कोचीन के राजा रामवर्मा द्वारा आश्रय प्राप्त । पिता-कालहस्ती । निधि हैं। धनपाल ने उन्हें अमृत उत्पन्न करने वाला गंभीर
पितामह-मल्लिकार्जुन। प्रपितामह-यौवनभारती (कवि)। गुरुसमुद्र कहा है। अपनी वर्णनचातुरी के लिये बाण प्राचीन काल
कृष्ण। रचनाएं- (1) रामवर्माविलासः, (2) रत्नकेतूदय नाटकम्, से ही प्रसिद्ध रहे हैं और आचार्यों ने इनके इस गुण पर
(3) शिवभक्तानंदम् (4) गैर्वाणीविजयम्। मुग्ध हो कर "बाणोच्छिष्टं जगत सर्वम" तक कह दिया है।
बालकृष्ण- तैत्तिरीय संहिता के भाष्यकार । बाणेश्वर- ई. 18 वीं शती। जन्म-हुगली जनपद (बंगाल) बालकृष्ण दीक्षित- जन्म-1740 ई. में । दीक्षितजी जयपुर-निवासी के गुप्तपल्ली ग्राम में। पिता-रामदेव (तर्कवागीश नैयायिक)। औदीच्य ब्राह्मण थे। मारवाड-शासक अजितसिंह के समय में
380/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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