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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मनिवेदन-शतक, कालिकाष्टक, सीतास्वयंवर आदि महाकाव्य संगृहीत। तथा पाण्डित्य-ताण्डवित (प्रहसन)। आपने भरत के नाट्यशास्त्र बलदेवसिंह वर्मा (डा.) - ई. 20 वीं शती । एम.ए.,पीएच.डी. । का (संशोधित संस्करण का) भी प्रकाशन कराया। व्याकरणाचार्य। शिमला वि.वि. (हिमाचल प्रदेश) में प्राध्यापक बदरीनाथ शास्त्री - ई. 20 वीं शती। बडौदा निवासी। तथा संस्कृत विभागाध्यक्ष। संस्कृत और भाषाविज्ञान पर प्रभुत्व । "विद्यासुधानिधि" की उपाधि से विभूषित। "रत्नावलि' नामक "हर्षदर्शन" नामक एकांकी के प्रणेता। पुष्पगण्डिका के प्रणेता। बलरामवर्मा (बालरामवर्मा) - कोचीन नरेश बालमार्तण्ड बदरीनाथ शर्मा - मुजफरपुर (बिहार) के निवासी। रचना- वर्मा के भतीजे। जन्म सन् 1724 में। राजाधिकार 1753 ई. दीधितिः (ध्वन्यालोक की सुबोध टीका)। से 1798। शूर, दयालु, लोकप्रिय, धर्मराज इन नामों से भी बभ्र आत्रेय - ऋग्वेद के पांचवे मंडल के तीसवें सूक्त के प्रसिद्ध। कवियों के लिये उदार। स्वयं भाषाशास्त्री। इनकी रचयिता। इस सूक्त का विषय इंद्रस्तुति है। राजसभा के सदस्य सदाशिव मखी की रचना "रामवर्मयशोभूषणम्" ___ इस सूक्त में बभ्रु आत्रेय ने स्वयं की जानकारी भी दी तथा अप्पय दीक्षित के वंशज वेंकट सुब्रह्मण्याध्वरिन् की रचना है। उससे ज्ञात होता है कि बभ्र आत्रेय ऋणंचय नामक राजा "वसुमतीकल्याणम्"। स्वयं इनकी रचना बालरामभरतम् के आश्रय में रहते थे। (संगीतविषयक) है। बरु - आंगिरस कुल के एक सूक्तद्रष्टा। ऋग्वेद के दसवें बल्लालसेन - बंगाल के राजा विजयसेन इनके पिता थे। मंडल के 96 वें सूक्त के रचयिता। ऐतरेय ब्राह्मण (6.25) ई. स. 1158 में ये गद्दी पर बैठे। इनके गुरु का नाम तथा शांखायन ब्राह्मण (25.8) में इनका उल्लेख है। अनिरुद्ध भट्ट था। बर्बरस्वामी - स्कन्दस्वामी के निर्देशानुसार दुर्गासिंह के अतिरिक्त ___ इन्होंने अद्भुतसागर (ज्योतिषविषयक) दानसागर, निरुक्त के एक व्याख्याकार । प्रतिष्ठासागर, आचारसागर तथा व्रतसागर नामक (धर्मशास्त्र विषयक) ग्रंथों की रचना की। बलदेव विद्याभूषण - ई. 18 वीं शती का पूर्वार्ध । मेदिनीपुर निवासी। इनका जन्म बंगाल में वैश्य जाति में हुआ ___ बल्लालसेन अत्यंत पराक्रमी पुरुष थे और ज्योतिषशास्त्र के था। इन्होंने गौडीय वैष्णव धर्म स्वीकार किया था। रूप प्रसिद्ध आचार्य भी। इन्होंने 1168 ई. में "अद्भुतसागर" गोस्वामी की स्तवमाला तथा उत्कलिका वल्लरी के टीकाकार। नामक ग्रंथ का प्रणयन किया था। इन्होंने ग्रहों के संबंध में जितनी बातें लिखी हैं, उनका स्वयं परीक्षा कर विवरण दिया इन्होंने पीतांबरदास के निकट शास्त्राध्ययन करने के पश्चात् है। यह ग्रंथ इन्होंने उनके राज्याभिषेक के 8 वर्षों के बाद वंदावन में जाकर विश्वनाथ चक्रवर्ति का (जिनका स्वतंत्र पंथ लिखा था। यह अपने विषय का विशाल ग्रंथ है, जिसमें था) शिष्यत्व ग्रहण किया। विश्वनाथ चक्रवर्ती के पश्चात् बलदेव लगभग 8 हजार श्लोक हैं। इस ग्रंथ का प्रकाशन प्रभाकरी ही उनके उत्तराधिकारी हुए। इन्होंने वैष्णव संप्रदाय की दृष्टि यंत्रालय काशी से हो चुका है। से ग्रंथ लेखन किया। बसव नायक - हुक्केरी (कर्नाटक) के निवासी। रचना-शिवतत्त्व उस समय वृंदावन जयपुरनरेश के शासनाधीन था। कुछ रत्नाकरः। ई. 18 वीं शती। ईर्ष्यालु लोगों ने वृंदावन के चैतन्य संप्रदाय के विरुद्ध राजा बाणभट्ट - समय ई. 7 वीं शती। संस्कृत के सर्वश्रेष्ठ के कान फूंके। राजा ने सत्यासत्य का पता लगाने के लिये कथाकार व संस्कृत गद्य के सार्वभौम सम्राट्। संस्कृत के जयपुर में पंडितों की सभा बुलायी। उस सभा में उपस्थित साहित्यकारों में एकमात्र बाण ही ऐसे कवि हैं, जिनके जीवन होकर बलदेव ने अकाट्य प्रमाणों से सिद्ध कर दिया कि के संबंध में पर्याप्त मात्रा में प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध चैतन्य मत वेदविरोधी न होकर वेदानूकुल है। होती है। इन्होंने अपने ग्रंथ "हर्षचरित" की प्रस्तावना व उस सभा में पंडितों ने उनसे पूछा - "तुम्हारे मत का ___ "कादंबरी" के प्रारंभ में अपना परिचय दिया है। ब्रह्मसूत्रभाष्य है क्या।" बलदेव ने कहा "अभी तक नहीं है, इनके पूर्वज सोननद के निकटस्थ प्रीतिकूट नामक नगर के परंतु वह निर्माण करूंगा"। इसके पश्चात् बलदेव ने ब्रह्मसूत्र निवासी थे। कतिपय विद्वानों के अनुसार यह स्थान बिहार पर वैष्णवमतानुसार गोविंदभाष्य लिखा। प्रांत के आरा जिले में "पियरो" नामक ग्राम है, तो अन्य इसके अतिरिक्त इन्होंने सिद्धांतरत्न, पद्यावली, कृष्णानंदिनी, कुछ विद्वान उसे गया जिले के "देव" नामक स्थान के निकट व्याकरणकौमुदी, प्रमेयरत्नावलि, साहित्यकौमुदी, वेदांतस्यमंतक, "पिट्रो" नामक ग्राम मानते हैं। बाण का कुल पांडित्य के काव्यकौस्तुभ, छंदःकौस्तुभभाष्य आदि ग्रंथ लिखे है। लिये विख्यात था। ये वात्स्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके बलदेवसिंह . वाराणसी के निवासी। रचना- यहां अनेक छात्र यजुर्वेद का पाठ किया करते थे। कुबेर के चक्रवर्ति-व्हिक्टोरिया-भारत वर्षे 32 विजयपत्रम्। ई. 1889 में चार पुत्र हुए। इनमें से पाशुपत के पुत्र का नाम अर्थपति संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 379 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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