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प्रतिभाशाली बुद्धि प्रदान की। पाणिनि के सम्मुख नृत्य करने हुए शिवजी ने अपना डमरू 14 बार बजाया। डमरू से जो ध्वनि निकले उनका अनुकरण करते हुए पाणिनि ने अइउण, ऋलुक्, एओङ् आदि 14 प्रत्याहार सूत्र बनाए (कथासरित्सागर 1.4)। पाणिनि की अष्टाध्यायी, इन 14 शिवसूत्रों पर ही आधारित है।
शलातुर गांव में युआन च्वांग को पाणिनि के बारे में जो आख्यायिकाएं विद्वानों से सुनने को मिली उनका सारांश इस प्रकार है -
अति प्राचीन काल में साहित्य का विस्तार अत्यधिक था। कालक्रम से उसका हास होता गया और एक दिन सभी कुछ शून्य हो गया। उस समय ज्ञान की रक्षा हेतु देवताओं ने पृथ्वी पर अवतार लिया। उन्होंने फिर व्याकरण व साहित्य की निर्मिति की। आगे चल कर व्याकरण का विस्तार होने लगा। उसे अत्यधिक वृद्धिंगत हुआ देख ब्रह्मदेव व इन्द्र ने लोगों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, व्याकरण के कुछ नियम बनाए और शब्दों के रूपों को स्थिर किया। आगे चल कर विभिन्न ऋषियों ने अपने अपने मतानुसार अलग अलग व्याकरणों की रचना की। उनके शिष्य व प्रशिष्य उन व्याकरणों का अध्ययन करने लगे किन्तु उनमें जो मंदबुद्धि के थे उन्हें उन सब का यथावत् आकलन न हो पाता था। उसी काल में पाणिनि का जन्म हुआ। अध्ययन यात्रा - पाणिनि की ग्रहण शक्ति जन्मतः ही तीव्र थी। उन्होंने देखा कि मानव की आयुमर्यादा तथा व्याकरण के विस्तार का आपस में मेल बैठना संभव नहीं। अतः पाणिनि ने व्याकरण में सुधार करने तथा नियमों के निर्धारण द्वारा अशुद्ध शब्द प्रयोगों को ठीक करने का निश्चय किया। व्याकरण विषयक सामग्री के संग्रह हेतु वे तुरंत यात्रा पर चल पडे। इस यात्रा में उनकी भेट हुई ईश्वरदेव नामक एक प्रकांड पंडित से। पाणिनि ने ईश्वरदेव के सम्मुख अपने नवीन व्याकरण की योजना प्रस्तुत की। ईश्वरदेव का मार्गदर्शन प्राप्त कर पाणिनि एकांत स्थान में पहुंचे। वहां बैठ कर उन्होंने आठ अध्यायों के एक नये व्याकरण की निर्मिति की। फिर उन्होंने अपना वह व्याकरण ग्रंथ पाटलिपुत्र स्थित सम्राट् नंद के पास भिजवाया। सम्राट ने उस ग्रंथ को उपयुक्त व सारभूत घोषित किया। तब सम्राट ने एक आज्ञापत्र प्रसारित करते हुए आदेश दिया कि वह ग्रंथ उनके साम्राज्य में पढाया जाये। मगध सम्राट् नंद पाणिनि के मित्र बन गए थे। महती सूक्ष्म दृष्टि- पाणिनि इस दृष्टि से नर्मदा के उत्तर के प्रायः संपूर्ण भू-भाग में घूमे थे। विविध प्रकार के पदार्थों के बारे में पाणिनि की अष्टाध्यायी में नियम और उल्लेख मिलते हैं। इस पर से अनुमान किया जा सकता है कि भाषा-विषयक सामग्री जुटाने हेतु, पाणिनि ने विभिन्न प्रदेशों
की कितनी व्यापक यात्रा की थी। पाणिनि ने उदीच्याम, प्राच्याम् के निदेशों के साथ अपनी अष्टाध्यायी में यह भी बताया है कि किस प्रदेश के लोग किसी शब्द विशेष का हस्व-दीर्घ आदि की दृष्टि से किस प्रकार उच्चारण किया करते है। इन्हीं बातों से प्रभावित होकर काशिकाकार के गौरवोद्गार व्यक्त हुए- "अहो महती सूक्ष्मेक्षिका वर्तते सूत्रकारस्य" (पाणिनि की यह कितनी महान् सूक्ष्मदृष्टि है) पाणिनि ने अपनी अष्टाध्यायी में जनपद, ग्राम, नगर, संघ गोत्र, चरण आदि की सुदीर्घ सूचि भी दी है। गोत्रों के लगभग एक हजार नाम पाणिनीय गणों ने संग्रहित किये हुए हैं। अष्टाध्यायी में 500 ग्रामों व नगरों की पूरी सूची मिलती है। साथ ही तत्कालीन रीति-रिवाज कला-कौशल, देव-धर्म, उपासना की पद्धतियां, लोगों की रहन-सहन, शिक्षा-दीक्षा, जीवन-व्यवयसाय आदि अनेक बातों की भी जानकारी पाणिनि के इस व्याकरण-ग्रंथ से उपलब्ध होती है।
वेदत्रयी, वेदों की विभिन्न शाखाएं, वेदांग, ब्राह्मण, महाभारत, कथागाथात्मक साहित्य, श्रौतसूत्र व धर्मसूत्र, उपनिषद् तथा दृष्ट व प्रोक्त के अन्तर्गत आने वाला अधिकांश वाङ्मय पाणिनि को ज्ञात था, ऐसा दिखाई देता है।
अपने इस सर्वग्राही स्वरूप के कारण पाणिनि की अष्टाध्यायी, प्रातिशाख्यों के समान संबंधित वेद-विशेष तक ही सीमित नहीं रही। उसने अपना संबंध सभी वेदों से स्थापित किया। सामवेद के ऋक्तंत्र नामक प्रातिशाख्य के अनेक सूत्र पाणिनि के सूत्रों से मिलते-जुलते प्रतीत होते हैं। उन दोनों की तुलना करते हुए डा. वासुदेवशरण अग्रवाल कहते हैं- पाणिनि ने अपने पहले के सूत्रों को भाषा, अर्थ एवं विस्त ही दृष्टियों से पल्लवित किया। पाणिनि ने किसका और कितना ऋण लिया यह निर्धारित करने की दृष्टि से निश्चित साधन उपलब्ध नहीं फिर भी यह कहा जा सकता है कि विषय-प्रतिपादन की दृष्टि से अष्टाध्यायी अपने-आप में परिपूर्ण है। वेदों से लेकर समस्त संस्कृत वाङ्मय का अध्ययन उसके कारण सुलभ होता है।
भट्टोजी दीक्षित ने अष्टाध्यायी पर आधारित “सिद्धांत कौमुदी' नामक ग्रंथ की रचना की। उसमें वैदिकी प्रक्रिया व स्वर-प्रक्रिया नामक दो प्रकरण हैं। वैदिकी प्रक्रिया में बताया गया है कि पाणिनि के व्याकरण-विषयक नियम किस प्रकार समस्त वैदिक वाङ्मय को लागू पडते हैं और स्वर-प्रक्रिया मे वैदिक भाषा के उच्चार किस प्रकार किये जायें इसका विवेचन है। अपने व्याकरण-विषयक सूत्रों की रचना करते समय पाणिनि ने संपूर्ण वैदिक ग्रंथ-भांडार व उपनिषदों का आलोडन किया था ऐसा प्रतीत होता है। ___ पाणिनि व्याकरण की सर्वकष विशेषता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा-ग्रंथों में निम्न श्लोक अंकित किया गया है
येन धौता गिरः पुंसां विमलैः शब्दवारिभिः । तमश्चाज्ञानजं भिन्नं तस्मै पाणिनये नमः ।।
370/ संस्कृत वाकाय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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