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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिवाजी महाराज के ही शासनकाल में उनकी शासन व्यवस्था, जीवन कार्य आदि का प्रत्यक्ष अवलोकन करते हुए ही परमानंद ने इस महाकाव्य की रचना की थी। अतः ऐतिहासिक दृष्टि से भी प्रस्तुत "शिवभारत" ग्रंथ को शिवाजी चरित्र की दृष्टि से बडा महत्त्वपूर्ण माना जाता है। नैव व्यंकटेश - रचना - भोसल वंशावलि चम्पू। मनलूर के धर्मराज के पुत्र । चंपू का केवल प्रथम भाग उपलब्ध । अन्य रचनाएं- राघवानन्दम् (नाटक), नीलापरिणयम् (नाटक) और सभापतिविलासम् (नाटक)। तंजौरनरेश सरफोजी भोसले (18-19 वीं शती) द्वारा "साहित्यभोग" की उपाधि से सम्मानित । नोधा गौतम - ऋग्वेद के पहिले मंडल के 58-64 तथा आठवें मंडल के 88 व 93 क्रमांक के सूक्त इनके नाम पर हैं। गौतम कुलोत्पन्न नोधा अच्छे कवि भी थे। उन्हें अपने काव्य के बारे में सार्थ अभिमान था। वे कहते हैं - ___ "हे नोधा, वीर्यशाली, अत्यंत पूज्य अत्यंत कर्तृत्ववान् ऐसे मरुतों के सम्मानार्थ उनके गुणों को संबोधित करते हुए एक सुंदर स्तोत्र अर्पण करो। एक कवि होने के कारण मनन द्वारा अच्छा कौशल साध्य कर, मैं यज्ञ के अवसर पर प्रभावसंपन्न स्तोत्रों की पानी की भांति वृष्टि करूंगा।" । ___ इन सभी सूक्तों में अग्नि, इन्द्र, मरुत व सोम की स्तुति है। अग्नि विषयक स्तुति की उनकी ऋचा निम्नांकित है : मूर्धा दिवो नाभिरग्निः पृथिव्य अथाभवदरती रोदस्योः । ते तं त्वा देवासो जनयन्त देवं वैश्वानर ज्योतिरिदार्याय ।। अर्थ- अग्नि है धुलोक का मस्तक और पृथ्वी की नाभि, वह धुलोक तथा भूलोक का अधिपति बना है। संपूर्ण विश्व के प्रति मित्रत्व धारण करनेवाले हे अग्निदेव, आप इस प्रकार के श्रेष्ठ देवता होने के कारण, आप आर्य जनों के प्रकाश (मार्गदर्शक) बनें इस हेतु, आपको दिव्य जनों ने जन्म लेने के लिये प्रेरित किया। नोधा ने मरूतों के सूक्त में (1.64) मरुतों संबंधी पर्याप्त चरित्रविषयक जानकारी दी है। न्यायवागीश भट्टाचार्य - ई. 18 वीं शती। रचना - "काव्यमंजरी"| बंगाल के निवासी।। पंचपागेश शास्त्री - (कविरत्न)। कुम्भकोणम् के शांकर मठ में अध्यापक। समय ई. 19-20 वीं शती। रचनाएंहरिश्चन्द्रविजयचम्पूः, ताटंकप्रतिष्ठामहोत्सव चम्पूः, जगद्गुरु अष्टोत्तरशतकम्, रामकृष्ण परमहंस चरितम्, शंकरगुरुचरित-संग्रह तथा अनेक देवतास्तोत्र। सभी मुद्रित । पंचशिख - सांख्यदर्शन को व्यवस्थित व सुसंबद्ध करने वाले प्रथम आचार्य। सांख्यदर्शन के प्रवर्तक महर्षि कपिल के शिष्य आचार्य आसुरि के ये शिष्य थे। इनके सिद्धांत वाक्य अनेक ग्रंथों में उद्धृत हैं, जिन्हें पंचशिखसूत्र कहा जाता है। यथा - 1) एकमेव दर्शनं ख्यातिरेव दर्शनम् (योगाभाष्य, 1-4)। 2) तमणुमात्रमात्मानमनुविद्यारमीत्येवं तावत्संप्रजानीते (योग, 1-36)। 3) तत्संयोगहेतु विवर्जनात् स्यादयमात्यंतिको दुःखप्रतिकारः । (योगभाष्य 2-17, ब्रह्मसूत्र-भामती, 2-2-10)। चीनी परंपरा, पंचशिख को “षष्टितंत्र' का रचयिता मानती है जिसमें 60 हजार श्लोक थे। इनके सिद्धांतों का विवरण "महाभारत" में भी प्राप्त होता है। (शांतिपर्व, अध्याय 302-308)। "षष्टितंत्र" के प्रणेता के बारे में विद्वानों में मतभेद है। उदयवीर शास्त्री व कालीपद भट्टाचार्य, "षष्टितंत्र" का रचयिता कपिल को मानते है। भास्कराचार्य ने भी अपने ब्रह्मसूत्र के भाष्य में कपिल को ही "षष्टितंत्र" का प्रणेता कहा है। “कपिलमहर्षिप्रणीत षष्टितंत्राख्यस्मृतेः (ब्रह्मसूत्र 2-1-1) पर म.म.डा. गोपीनाथ कविराज के अनुसार, पंचशिख ही "षष्टितंत्र" के प्रणेता हैं। पंचाचार्य - वीरशैव मत के प्रवर्तक पांच आर्य। इनके शुभनाम हैं एकोरामाराध्य, पंडिताराध्य, रेवणाराध्य, मरुलाराध्य और विश्वाराध्य। कहा गया है कि ये आचार्य शिवलिंग से उद्धृत हुए और उन्होंने विश्वसंचार करते हुए शिवभक्ति का सर्वत्र प्रचार किया। इस संबंध में शिवजी पार्वती से कहते हैं : मदादिसर्वलोकानां जगद्गुरुवरोत्तमाः ।। अर्थ - मेरे पांच मुखों से उत्पन्न हुए ये पांच आचार्य, मेरे तथा सभी लोगों के श्रेष्ठ गुरु हैं। ___ इन आचार्यों ने कर्नाटक के बाले होन्नूर, मालवा की उज्जयिनी, हिमालय के केदारक्षेत्र, श्रीशैलक्षेत्र तथा काशी इन पांच स्थानों पर धर्मपीठ स्थापन किये। माना जाता है कि इन पांच आचार्यों ने उपनिषदादि ग्रंथों पर भाष्यों की रचना की थी, किन्तु अभी तक उनमें से एक भी भाष्य उपलब्ध नहीं हो सका है। पंचानन तर्करत्न (म.म.) - जन्म- सन् 1866 में बंगाल के चौबीस परगना जिले के भट्टपल्ली (भाटापाडा) में। 19 वर्ष की अवस्था में पिता- नन्दलाल विद्यारत्न, जयराम न्यायभूषण, राखालदास न्यायरत्न, मधुसूदन स्मृतिरत्न, ताराचरण तर्करत्न, भास्कर शर्मा आदि से शिक्षा प्राप्त की। सन् 1885 से 1937 तक वंगवासी प्रेस में संपादन तथा संशोधन में रत रहे। नॅशनल कालेज व संस्कृत साहित्य परिषद् की स्थापना की। शारदा बिल का विरोध करते हुए, “महामहोपाध्याय' की उपाधि का त्याग किया। "अनुशीलनी" नामक क्रान्तिकारी दल का गठन किया। अलीपुर बम विस्फोट के संदर्भ में सन 1907 में बन्दिवास में रहे। कृतियां - पार्थाश्वमेध व सर्वमंगलोदय (काव्य), अमरमंगल तथा कलंकमोचन (नाटक), ब्रह्मसूत्र पर शक्तिभाष्य, रामायण, महाभारत,पंचदशी, वैशेषिक दर्शन, सांख्यतत्व कौमुदी आदि संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 359 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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