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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रह्लाद-विनोदनम् (नाटक), 16. सीतारामविर्भावम् (नाटक), और 17. तपोवैभवम् (नाटक)। नित्यानन्द शास्त्री ने कुछ ग्रन्थों का सम्पादन भी किया था। यथा- 1. सूक्तिमुक्तावली, 2. चेतोदूतम्, 3. विश्वेश्वर-स्मृतिगवर्धि-आर्यविधानम्-उत्तरार्ध (दो भाग)। "दधिमथी" ओर "सनातन" नामक पत्रिकाओं के संपादन का कार्य भी इन्होंने किया था। निध्रुव काण्व- कश्यप-वंश। अवत्सार के सुपुत्र। पत्नीसुकेशा। ऋग्वेद के 9 वें मंडल का 63 वां सूक्त इनके नाम पर है किन्तु संपूर्ण सूक्त में निध्रुव काण्व का नाम कहीं पर भी दिखाई नहीं देता। इनके इस सूक्त का विषय है सोम-स्तुति । सोम की स्तुति करते हुए निध्रुव ने उससे अनेक बातों की अपेक्षा की है। तत्संबंधी दो ऋचाओं का भावार्थ इस प्रकार है- हे पावन सोम, हे आल्हादप्रद, तुम सभी धोखेबाज दुष्टों को पूरी तरह मार भगाओ। हे पराक्रमी सोम, राक्षसों को जान से मार डालो। राक्षसों का निःपात कर हे सोम, तुम गर्जना करते हुए अपने प्रवाह से तेजस्वी तथा उत्कृष्ट साहस हमारी ओर लाओ। इनका कथन है कि सोमरस में संपूर्ण विश्व को आर्यधर्मी बनाने की क्षमता है। निश्चलपुरी- ई. 17 वीं शताब्दी। गुसाई-पंथ के एक ग्रंथकार । इन्होंने संस्कृत भाषा में “राज्याभिषेक-कल्पतरु" नामक ग्रंथ की रचना की। गागाभट्ट ने छत्रपति शिवाजी महाराज का वैदिक पद्धति से राज्याभिषेक किया था। उनके उस प्रयोग के अनेक दोष-स्थल निश्चलपुरी ने अपने इस ग्रंथ में दर्शाए हैं। प्रतीत होता है कि निश्चलपुरी एक उत्तम ज्योतिषी भी थे। उन्होंने शिवाजी महाराज को चेतावनी दी थी कि उनके राज्याभिषेक के पश्चात् तेरहवें, बाईसवें और पचपनवें दिन उन पर कुछ संकट आवेंगे और उनकी भविष्यवाणी सही निकली। तब शिवाजी ने निश्चलपुरी को बुलवाकर उनसे तांत्रिक पद्धति के अनुसार पुनः वैदिक राज्याभिषेक के छह महीने बाद अपना तांत्रिक राज्याभिषेक करवा लिया था। नीतिवर्मा- ई. 10 वीं शती। बंगाल या कलिंग (उत्कल) के निवासी। "कीचकवध' नामक चित्र-काव्य के प्रणेता। नीपातिथि- ऋग्वेद के आठवें मंडल के 34 सूक्त के द्रष्टा । फिर भी संपूर्ण सूक्त में नीपातिथि के नाम का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। ये कण्व-कुल के होंगे। इसी सूक्त की पहली व चौथी ऋचा में कण्व का उल्लेख है। इस सूक्त का विषय है इन्द्र की स्तुति । उसकी दो ऋचाएं इस प्रकार है आ नो गव्यान्यशव्या सहस्रा शूर दर्दृहि । दिवो अमुष्य शासतो दिव्यं यय दिवावसो।। आ नः सहस्रशो भरायुतानि शतानि च। दिवो अमुष्य शासतो दिव्यं यय दिवावसो।। (ऋ. 8.34.14-15) अर्थ- (हे इन्द्रदेव) इधर पधारिये, हजारों गउएं, हजारों अश्व आदि प्रकार का ऐश्वर्य हमें सौपिए (और) फिर दिव्यलोक को गमन कीजिये। प्रस्कण्व द्वारा उल्लिखित एक प्रमाण के अनुसार एक बार इन्द्र ने नीपातिथि की रक्षा की थी (8.49.9)। एक अन्य स्थल पर श्रुष्टिगू द्वारा किये गये उल्लेख के अनुसार इन्द्र ने इसके घर सोमरस का पान किया था (8.51.1)। नीपातिथि ने एक साम की भी रचना की थी, ऐसा पंचविश ब्राह्मण में कहा गया है (14.10.4.)। नीजे भीमभट्ट- जन्म-सन् 1903 में। कन्यान (दक्षिण कर्नाटक) के निवासी। प्रारंभिक शिक्षा कम्मेज संस्कृत पाठशाला में। तत्पश्चात् परेडाल महाजन संस्कृत महापाठशाला से "साहित्य-शिरोमणि" की पदवी प्राप्त की। "काश्मीर-सन्धान-समुद्यम" तथा "हैदराबादविजय" नामक समकालीन घटनाओं पर आधारित नाटकों के प्रणेता। आधुनिक राजनैतिक घटनाओं का चित्रण इन नाटकों की विशेषता है। नीलकंठ- ई. 15 वीं शताब्दी में हुए एक शैवाचार्य । नीलकंठ ने वीरशैव पंथविषयक “क्रियासार" नामक ग्रंथ की रचना की है। इसके अतिरिक्त कन्नड भाषा में भी आपका एक ग्रंथ है। इनके मतानुसार केवल वीरशैवागम ही वैदिक है जब की अन्य आगम है अवैदिक। आपने अपने ग्रंथ में शक्तिविशिष्ट अद्वैतब्रह्मरूपी शिव के माहात्म्य का वर्णन किया है। नीलकंठ- ई. 16 वीं शताब्दी। एक प्रसिद्ध ज्योतिषी। माता-पद्मा। "टोडरानंद” नामक आपका एक प्रसिद्ध ग्रंथ जो अब पूर्णावस्था में उपलब्ध नहीं, फिर भी उस ग्रंथ का विवरण अन्यत्र मिलता है। तदनुसार प्रतीत होता है कि इस ग्रंथ के तीन स्कंध होंगे- गणित, मुहूर्त और होरा। इस ग्रंथ के उपलब्ध भाग की श्लोकसंख्या एक हजार है। अकबर के मंत्री टोडरमल के नाम पर इस ग्रंथ का नामकरण हुआ होना चाहिये। नीलकंठ को अकबर बादशाह के दरबार में "पंडितेंद्र" की पदवी प्राप्त हुई थी। जैसा कि इनके पुत्र गोविंद ने लिख रखा है, ये एक बड़े मीमांसक और सांख्यशास्त्रज्ञ भी थे। ज्योतिष की ताजिक-पद्धति पर, इनका समातंत्र (वर्षतंत्र) नामक एक और ग्रंथ है। उसे “ताजिक-नीलकंठी" भी कहते हैं। यह ग्रंथ विभिन्न टीकाओं सहित छपा है। इस ग्रंथ पर विश्वनाथ की सोदाहरण टीका उपलब्ध है। नीलकंठ ने एक जातक-पद्धति की भी रचना की। उसके साठ श्लोक हैं। वह मिथिला में प्रसिद्ध है। आफ्रेच-सूची के अनुसार इनके अन्य ग्रंथ हैं- तिथिरत्नमाला, प्रश्नकौमुदी अथवा ज्योतिषकौमुदी व दैवज्ञवल्लभा (ज्योतिषविषयक), जैमिनी-सूत्र पर सुबोधिनी नामक टीका तथा ग्रहकौतुक, ग्रहलाघव व मकरंद नामक ग्रंथों पर लिखे टीकाग्रंथ । संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 355 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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