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नीलकण्ठ- काल-1610 से 1670 ई. । रचना- अधरशतकम्। अश्लीलता से अस्पृष्ट शृंगारिकता इस काव्य का वैशिष्ट्य है। अति तरल कल्पनाशक्ति का यह उदाहरण है। अतिरिक्त रचनाएंशृंगारशतकम्, जारजातशतकम्, चिमनीशतकम् (विवाहिता मुस्लिम स्त्री तथा ब्राह्मण युवक का प्रेमसंबंध वर्णित) तथा शब्दशोभा नामक व्याकरण विषयक लघुग्रंथ। नीलकण्ठ- ई. 17 वीं शती। केरल के संग्राम ग्राम (वर्तमान कुडल्लूर) में जन्म। कुल-नम्बूदिरी। गोत्र-गाधि। रचनाकमलिनी-कलहंस (नाटक)। नीलकंठ- अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में महाराष्ट्र में हुए। एक शैव-परिवार में इनका जन्म हुआ था। इनके आचार्यों के शुभनाम हैं काशीनाथ और श्रीधर। आपके कथनानुसार आपने किसी रत्नाजी नामक व्यक्ति के कहने से "देवीभागवत" पर टीका लिखी। लगभग बारह ग्रंथों के रचयिता नीलकंठ तंत्रशास्त्र के ऊंचे पंडित थे। इनके तंत्रविषयक ग्रंथ हैंदेवीभागवत की टीका, कात्यायनी तंत्र की टीका, शक्तितत्त्वविमर्शिनी
और कामकलारहस्य। देवीभागवत की टीका में नीलकंठ ने देवी को मायाविशिष्ट ब्रह्मरूप बताया है और कहा है कि देवी को पशुबलि भाती है। नीलकण्ठ- केओंझर (उड़ीसा) के राजा बलभद्र भंज (1764-1782 ई.) तथा जनार्दन भंज (1782-1831) द्वारा सम्मानित। "भंजमहोदय" नामक नाटक के रचियता। नीलकण्ठ- रामभट्ट के पुत्र । रचना- काशिकातिलकचम्पू (गंधर्वो के संवाद-माध्यम से शैव-क्षेत्रों का वर्णन)। नीलकंठ चतुर्धर- ई. 17 वीं शती। इनके द्वारा लिखित महाभारत की सुप्रसिद्ध टीका का नाम "नीलकंठी" व "भारत-भाव-दीप" है। पिता-गोविंद चौधरी। माताफुल्लांबिका । गौतमगोत्रीय । गोदावरीतटस्थ कर्पूरनगर (कोपरगावमहाराष्ट्र) में रहते थे। अल्पकाल काशीक्षेत्र में भी निवास था। इनके कथनानुसार महाभारत की "भारतभावदीप" टीका इन्होंने काशी में ही लिखी। इसके अतिरिक्त मंत्रकाशीखंडटीका, मंत्रभागवत, मंत्ररामायण, वेदांतशतक, शिवतांडवव्याख्या, षट्तंत्रीसार, गणेशगीता-टीका, हरिवंश-टीका, सौरपौराणिकमतसमर्थन, विधुराधानविचार, आचारप्रदीप आदि ग्रंथ भी नीलकण्ठ चतुर्धर ने लिखे हैं।
ये महाराष्ट्रीय थे किंतु "सप्तशती" पर लिखी अपनी "सुबोधिनी" नामक टीका में इन्होंने स्वयं को चतुर्धर मिश्र कहलाया है। उसी प्रकार अपनी इस टीका को उन्होंने भाष्य कहा है। आपने वेद-मंत्रों को एकत्र कर "मंत्र-रामायण" नामक जिस सुप्रसिद्ध ग्रंथ का निर्माण किया, उससे रामोपासना की प्राचीनता सिद्ध होती है। संप्रति इनके वंशज काशी में रहते हैं।
महाभारत वनपर्व (162-11) की टीका करते हुए इन्होंने लिखा है "निपुणतरमुपपादितमेतदस्माभिः काण्वशतपथभाष्य
एकपादी-काण्डे" अर्थात् ये काण्वशतपथ के भाष्यकार थे। एकपादी काण्ड का ही दूसरा नाम “एकवायी काण्ड" दाक्षिणात्य हस्तलेखों में मिलता है। अतः विद्वानों का तर्क है कि भाष्यकार नीलकण्ठ, उत्तरभारत में रहने वाले (संभवतः वाराणसी-वासी) महाराष्ट्रीय होंगे। नीलकण्ठ दीक्षित - ई. 17 वीं शती। गुरु-वेंकटेश्वर अपरनाम अय्या दीक्षित। पिता- नारायण दीक्षित तथा चाचा अप्पय्य दीक्षित से धर्मशास्त्र तथा व्याकरण का अध्ययन किया। इन्हें अपने ब्राह्मण्य पर अभिमान था। माता - भूमिदेवी। गोत्र-भारद्वाज।
मदुराई के तिरुमल नायक आदि राजाओं के पैतीस वर्षों तक मंत्री। सन् 1659 ई. में सेवानिवृत्त । अन्तिम आश्रम ताम्रपर्णी के तट पर राजा की ओर से अग्रहार रूप में प्राप्त पालामडई ग्राम में। वहीं पर आज भी उनकी समाधि विद्यमान है। रचनाएं- अघविवेक (धर्मशास्त्र)। कैयट-व्याख्या (व्याकरण)। शिव-तत्त्वरहस्य (दर्शन)।। महाकाव्यशिवलीलार्णव (मदुरा के हालास्यनाथ आख्यान पर 22 सों का महाकाव्य) और गंगावतरण- 8 सगों का काव्य ।। खण्डकाव्य- कलिविडम्बन, सभारंजन, शान्तिविलास, अन्यापदेशशतक और वैराग्यशतक।। भक्तिकाव्यआनन्द-सागर-स्तव; शिवोत्कर्षमंजरी, चण्डीरहस्यम्, रामायण-सार-संग्रह और रघुवीर-स्तव; नलचरित (नाटक), नीलकण्ठविजय (चम्पू), मुकुन्द-विलास (अप्रकाशित)। नीलकण्ठ भट्ट - समय- लगभग 1610 ई.। पिता-शंकर भट्ट, पितामह- नारायण भट्ट, ज्येष्ठ भ्राता- कमलाकर भट्ट
और पुत्र- शंकर भट्ट। ये सभी विद्वान् व ग्रंथलेखक थे। नीलकंठ भरेह के राजा भगवंतदेव के सभा-पंडित थे। इन्होंने भगवंतदेव के सम्मान में "भगवंतभास्कर" नामक धर्मशास्त्र विषयक बृहद्काय ग्रंथ का प्रणयन किया था। इस ग्रंथ के 12 विभाग हैं जो मयूख के नाम से प्रसिद्ध हैं। नीलकंठ ने अन्य ग्रंथों का भी प्रणयन किया था। वे हैं- व्यवहारतत्त्व, कुंडोद्योत, दत्तकनिरूपण व भारत-भावदीप (महाभारत की संक्षिप्त व्याख्या)। नीलकंठ की अपने चचेरे भाई कमलाकर से स्पर्धा रहती थी। अनेक स्थानों पर इन दोनों के मत परस्पर-विरोधी हैं। नीलकंठ ने मीमांसा का अध्ययन किया था।
नीलकंठ वाजपेयी - वि.सं. 1575-1625, भाष्यतत्त्वविवेक नामक व्याकरण महाभाष्य की व्याख्या के रचयिता । (मद्रास के हस्तलेख पुस्तकालय में विद्यमान) लेखक रामचंद्र का पौत्र,वरदेश्वर का पुत्र और ज्ञानेन्द्र सरस्वती का शिष्य था। रचनाएं- पाणिनीय-दीपिका, परिभाषावृत्ति, सिद्धान्त-कौमुदी की सुखबोधिनी टीका, गूढार्थ-दीपिका का तत्त्वबोधिनी नामक व्याख्यान।
356 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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