________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
का मान किया है। तदंतर्गत एक ऋचा इस प्रकार है - +ने अन्य अनेक ग्रंथों व ग्रंथकारों के मतों की समीक्षा करते अरुषो जगयन् गिरः सोमःपवत आयुषक् ।
हुए बाद में स्वयं के मत प्रस्तुत किये हैं। इन्द्रं गच्छन् कविक्रतुः ।।
इनके ग्रंथ को दक्षिण के न्याय-विभाग में बड़ा मान दिया अर्थ- तेजस्वी तथा काव्य-स्फूर्ति प्रदान करने वाला सोम, जाता है। "स्मृति-चंद्रिका", संस्कृत निबंध-साहित्य में अत्यंत मानवों का हित करने हेतु इन्द्र की और जाने वाला ये अत्यंत मूल्यवान् निधि के रूप में स्वीकृत है। स्मृति-चंद्रिका के पांच प्रतिभावन सोम, देखिये किस प्रकार प्रवाहित है। सोमरस को कांडों के अतिरिक्त इन्होंने राजनीति-कांड का भी प्रणयन किया बुद्धि-चातुर्य का एक साधन बताना ही इस ऋचा का आशय है। इन्होंने राजनीति-शास्त्र को धर्म-शास्त्र का अंग माना है प्रतीत होता है।
व उसे धर्मशास्त्र के ही अंतर्गत स्थान दिया है। धर्म-शास्त्र दे. ति. ताताचार्य - ई. 20 वीं शती। नई दिल्ली के द्वारा स्थापित मान्यताओं की पुष्टि के लिये इन्होंने अपने ग्रंथ निवासी। रचना "पुनःसृष्टि" व "सोपानशिला नामक रूपक। में यत्र-तत्र धर्मशास्त्र, रामायण व पुराण के भी उद्धरण दिये हैं। देव- ई. 12 वीं शती। रचना- पाणिनीय धातुपाठ पर 200 देवनन्दि पूज्यपाद - ई. 5-6 वीं शती। जिनसेन, शुभचन्द्र, श्लोकों की वृत्ति पर लीलाशुकमुनि ने पुरुषकार नामक वार्तिक गुणनन्दि, धनंजय आदि आचार्यों द्वारा उल्लिखित कवि और लिखा है। पं. युधिष्ठिर मीमांसक ने यह वार्तिक प्रकाशित दार्शनिक। मूल नाम देवानन्दि। बाद में बुद्धि की महत्ता के किया है। इस ग्रंथ में समान रूप वाली अनेक गणों में कारण "जिनेन्द्रबुद्धि" तथा "पूज्यपाद" भी कहलाये। पठित धातुओं का विभिन्न गणों में पाठ करने के प्रयोजन का पिता-माधवभट्ट और माता- श्रीदेवी। ब्राह्मण-कुल। कर्नाटक विचार किया गया है।.
के "कोले" नामक ग्राम के निवासी। नन्दिसंघ के आचार्य । देव विश्वनाथ - ई. 17 वीं शती। शैवसंप्रदायी। गोदावरी-परिसर
सरस्वती-गच्छ के अनुयायी। के धारासुर नगर के निवासी। बाद में काशी में प्रतिष्ठित । कहा जाता है माता श्रीदेवी के भ्राता का नाम पाणिनि रचना- "मृगाड्कलेखा" (नाटिका)।
था। पूज्यपाद की बहन का नाम कमलिनी था जिसका पुत्र देवकी मेनन - ई. 20 वी शती। मद्रास के क्वीन मेरी
नागार्जुन था। सांप के मुंह से फंसे मेंढक को देख कर संसार महाविद्यालय में संस्कृत-विभाग की अध्यक्षा। सेवानिवृत्ति के
से विरक्त हुए और दिगम्बर दीक्षा ग्रहण की। पाणिनि के पश्चात् एर्नाकुलम (केरल) में वास्तव्य। “कुचेल-वृत्त" तथा . अपूर्ण व्याकरण को पूर्ण किया। नागार्जुन को सिद्धियां सिखायीं। "सैरन्धी' नामक प्रेक्षणकों (आपेरा) की रचयित्री।
आकाशगामिनी विद्याधारी होने से विदेह-क्षेत्र आदि का भ्रमण देवकुमारिका - एक कवियित्री। उदयपुर के राणा अमरसिंह
किया। प्रस्तुत कथा की सत्यता विचारणीय है। इनके अतिरिक्त इनके पति थे। समय- 18 वीं शताब्दी का पूर्वार्ध। इन्होंने
कतिपय अन्य घटनाएं भी उल्लेखनीय हैं। - घोर तपश्चरणादि "वैद्यनाथ-प्रासाद-प्रशस्ति" नामक ग्रंथ की रचना की है जिसका
के कारण आंखों की ज्योति नष्ट हो गई। कुछ मंत्र साधना प्रकाशन "संस्कृत पोयटेसेस" नामक ग्रंथ में (1940 ई. में
से उसकी पुनः प्राप्ति हुई। इन्हें औषधि-ऋद्धि की उपलब्धि कलकत्ता से हुआ है)। इस ग्रंथ में 142 पद्य हैं जो पांच
हुई। कहते है कि इनके पाद-स्पृष्ट-जल के प्रभाव से लोह प्रकरणों में विभक्त हैं। प्रथम प्रकरण में उदयपुर के राणाओं
_स्वर्ण में परिणत हो जाता था ऐसे ये महान् योगी थे। का संक्षिप्त वर्णन है व द्वितीय प्रकरण में राणा संग्रामसिंह पूज्यपाद, गंगवंशीय राजा अविनीति के पुत्र दुर्विनीति (ई. का अभिषेक वर्णित है। शेष प्रकरणों में मंदिर की प्रतिष्ठा
6 वीं शती) के शिक्षा-गुरु थे। अकलंक द्वारा पूज्यपाद का का वर्णन है।
उल्लेख हुआ है। अतः पूज्यपाद का समय पांचवी शती का देवण भट्ट - ई. 13 वीं शती का पूर्वार्ध । राजधर्म के
उत्तरार्ध और छठी शती का पूर्वार्ध माना जाता है। एक मान्य निबंधकार व याज्ञिक। पिता- केशवादित्य भट्टोपाध्याय ।
रचनाएं- दशभक्ति, जन्माभिशेष, तत्त्वार्थवृत्ति (सर्वार्थ-सिद्धि), डॉ. शामशास्त्री के मतानुसार ये आंध्र-प्रदेश के निवासी हो
समाधितन्त्र, इष्टोपदेश, जैनेन्द्र-व्याकरण, सिद्धिप्रियस्तोत्र, सकते है क्यों कि अपने ग्रंथ में मामा की पुत्री से विवाह
वैद्यक-शास्त्र, छन्दःशास्त्र, शान्त्यष्टक, सार-संग्रह । इन ग्रंथों पर करने का इन्होंने विधान किया है जिसे आंध्र में मान्यता है।
कुन्दकुन्द, उमास्वाति, समन्तभद्र आदि आचायों का प्रभाव धर्मशास्त्र पर लिखा गया इनका "स्मृतिचंद्रिका' ग्रंथ पांच
परिलक्षित होता है। कांडों में विभाजित है। उसमें संस्कार, आह्निक, व्यवहार, श्राद्ध, प्रायश्चित्त आदि विषय समाविष्ट हैं। प्रस्तुत प्रथ में उन्होंने
देवनाथ उपाध्याय - ई. 18 वीं शती। मैथिल ब्राह्मण । प्रायः सभी टीकाकारों का उल्लेख किया है। विज्ञानेश्वर का
पर्वतपुर-निवासी। पिता-रघुनाथ। माता- गुणवती। "उषाहरण" बडे आदर के साथ निर्देश करते हुए भी उन्होंने कुछ स्थानों
नाटक के रचयिता। पर अपना मतभेद भी व्यक्त किया है। इस ग्रंथ में देवणभट्ट देवनाथ ठाकुर - ई. 16 वीं शती। मिथिला के निवासी।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 339
For Private and Personal Use Only