SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । पद्मावती की मृत्यु के लिये उत्तरदायी है, तब वे बहुत कुपित हुए और अपनी रानी को मारने के लिये दौड़े, जयदेव ने उन्हें मना किया और कहा - जब मैं जीवित हूं, तो पद्मावती का पुनजीवित होना संभव है। उन्होंने संजीवनी अष्टपदी कहकर जैसे ही पत्नी की देह पर जलसिंचन किया, वह सचेत होकर उठ बैठी। ___ "गीतगोविंद" के अतिरिक्त जयदेव को कतिपय बंगाली पर्दो का भी रचयिता बतलाया जाता है। इन पदों का समावेश गुरुग्रंथसाहब तथा दादूपंथी साधकों के पदसंग्रहों में भी हुआ है। मूल बंगाली पदों का स्वरूप, उन ग्रंथों में हिंदी, पंजाबी या राजस्थानी हो गया है। जयदेव- केरलनिवासी। सोमयाग करने पर संन्यास ग्रहण किया। रचना- पूर्णपुरुषार्थ-चन्द्रोदयम् (नाटक)। जयराम न्यायपंचानन - ई. 17 वीं शती। कृष्णनगर के राजा रामकृष्ण का समाश्रय प्राप्त । रामभद्र सार्वभौम के शिष्य । कृति - काव्यप्रकाश पर "रहस्यदीपिका" (अपर नाम "तिलक" अथवा “जयरामी") नामक टीका। जयराम न्यायपंचानन (तर्कालंकार) - ई. 17-18 वीं शती। गुरु- रामभद्र सार्वभौम । रचनाएं- तत्त्वचिंतामणि-दीधिति- गूढार्थविद्योतन, त.चि. आलोकविवेक, न्यायसिद्धान्तमाला, दीधिति विवृत्ति, न्यायकुसुमांजलिकारिकाव्याख्या, पदार्थमणिमाला (या पदार्थमाला), वृंदावनविनोद (काव्य), काव्यप्रकाशतिलक (साहित्यशास्त्रीय) और शक्तिवाद-टीका।। उपरोक्त ग्रंथों में से “पदार्थमणिमाला'' इनका सर्वोत्तम ग्रंथ माना जाता है। भीमसेन दीक्षित ने अपने दो ग्रंथों में इन्हें तथा देवनाथ तर्कपंचानन को तर्कशास्त्र का प्रमाण कहा है। जयराम कृष्णनगर के राजा रामकृष्ण (नवद्वीपाधिपति) के आश्रय में रहते थे। जयराम पाण्डे - मुंबई के एक प्रसिद्ध व्यापारी। शेअर बाजार में प्रतिष्ठा। अर्थशास्त्रज्ञ धर्म और अर्थ पुरुषार्थ पर शतक रचनाएं-धर्मशतकम् और अर्थशतकम्। जयराम पिण्ड्ये - शिवाजी महाराज के समकालीन। 5 सर्गों के इनके "पर्णालपर्वत-ग्रहणाख्यान" काव्य में शिवाजी महाराज का पन्हाला किले पर प्रदर्शित पराक्रम वर्णित है। इस छोटे से काव्य को ऐतिहासिक महत्त्व है। ____ 12 भाषाओं के तज्ञ तथा इन सब भाषाओं में काव्य करने की क्षमता उनमें थी। प्रस्तुत काव्य, भारत इतिहास संशोधक मण्डल, पुणे के प्रसिद्ध संशोधक सदाशिव महादेव दिवेकर ने अभ्यासपूर्ण प्रस्तुति के साथ तथा मराठी अनुवाद सहित प्रकाशित किया है। अन्य रचना - राधामाधवविलास-चम्पू। जयरामशास्त्री - साहित्याचार्य । रचना - जवाहरवसन्तसाम्राज्यम्। 7 सर्ग, 500 श्लोक। 1950 ई. को पं. जवाहरलाल नेहरू की षष्ठ्यब्दिपूर्ति के वर्ष में प्रकाशित । जयराशि भट्ट - ई. 7 वीं शताब्दी। चार्वाक मतानुयायी। "तत्त्वोपप्लवसिंह" नामक ग्रन्थ के रचयिता। इसमें वैदिक और जैन तत्त्वज्ञान का खण्डन है। जयशेखर सूरि - अंचलगच्छीय महेन्द्रसूरि के शिष्य। इस गच्छ के संस्थापक आर्यरक्षित सूरि थे, जिनकी दसवीं पीढ़ी में महेन्द्रप्रभसूरि हुए। उनके तीन शिष्य थे - मुनिशेखर, जयशेखर और मेरुतुंग सूरि। समय - ई. 16 वीं शती। ग्रंथ-जैनकुमार-सम्भव (वि. सं. 1483)। (भरत की उत्पत्ति का वर्णन 11 सर्ग)। इनके अन्य ग्रंथ हैं 1) उपदेशचिन्तामणि (सं. 1436), 2) प्रबंधचिन्तामणि (वि. सं. 1464) और 3) अम्मिल्लचरित। जयसेन - ई. 10 वीं शती। भावसेन सूरि के शिष्य । लाडबागडसंघ के विद्वान । समय ई. 12 वीं शती का मध्यकाल। इन्हें जयसेन प्रथम कहा जाता है। इस नाम के अन्य विद्वान हुए हैं। रचना - धर्मरत्नाकर। ___कुन्दकुन्द के टीकाकार जयसेन द्वितीय, साधु महीपति के पुत्र चारुभट जो उत्तरकाल में जयसेन कहलाये। गुरु का नाम सोकसेन और दादा गुरु का नाम वीरसेन । समय ई. 11-12 वीं शती। रचना कुन्दकुन्द के समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय पर टीकाएं। जयसेनापति - वरंगलनरेश काकतीय गणपति (ई. स. 1200 से 1265) के गजसेनाप्रमुख। रचना-वृत्त-रत्नावली। (ई. स. 1254 में रचित)। जयस्वामी - समय - ई. 16 वीं शताब्दी से पूर्व । आश्वलायन ब्राह्मण के भाष्यकार। जयस्वामी और जयन्तस्वामी एक ही हो सकते हैं। अपने "संस्कारतत्त्व" के मलमास प्रकरण में ग्रंथकर्ता रघुनन्दन आश्वलायन ब्राह्मण के भाष्यकार जयस्वामी का निर्देश करते हैं। जयन्तस्वामी ने आश्वलायन गृह्यसूत्र पर "विमलोदय" नामक टीका लिखी है। यह भी संभव है कि जयन्त स्वामी के अतिरिक्त जयस्वामी भी कोई अन्य ग्रंथकार हुए हों। "हारीत स्मृति" पर भी जयस्वामी की टीका उपलब्ध है। जयस्वामी - हरिस्वामी के पुत्र। इन्होंने "ताण्ड्यब्राह्मण" पर भाष्य रचना की है। उस भाष्य का नामान्तर, पंचविंशार्थमाला होगा, ऐसा अनुमान है। जयादित्य और वामन - अष्टाध्यायी की काशिका नामक वृत्ति इनकी सम्मिलित रचना है। पाणिनीय व्याकरण में महाभाष्य तथा भर्तृहरि के बाद यह सब से प्राचीन तथा महत्त्वपूर्ण वृत्ति है। इत्सिंग के अनुसार जयादित्य का मृत्युकाल वि.सं. 718 है। __वामन (साहित्यकार), विश्रान्तविद्याधर (जैन व्याकरणकार) तथा लिंगानुशासनकार इन सबसे काशिकाकार भिन्न हैं। समय वि.सं. 650 से 7181 संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 327 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy