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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मैसूर विश्वविद्याय में संस्कृत विभागाध्यक्ष । रचनाएं :- काव्यः मधुकर दूत, वियोगिविलाप तथा गंगातरंग आधुनिक शैली के उपन्यास :- शैवालिनी व कुमुदिनी । दीर्घ कथाएँ विलासकुमारी व सङ्गरम् । प्रवासवर्णन तीर्थाटनम् । साहित्यशास्त्रीय प्रबंध“कविकाव्यविचारः”। “तीर्थाटनम्" के 4 अध्याय हैं, जिनमें भारत प्रवास में प्राप्त विविध अनुभवों का वर्णन है। सभी कृतियां प्रकाशित हो चुकी है। चतुर कल्लीनाथ पिता-लक्ष्मीधर विजयनगर के इम्मादि देवराव (मल्लिकार्जुन) के आश्रित ई. 15 वीं शती का उत्तरार्ध । रचना - शाङ्गदेव के संगीतरत्नाकर नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की विद्वमान्य टीका। - चतुर दामोदर चतुर कल्लीनाथ के वंशज । पिता- लक्ष्मीधर । सम्राट् जहांगीर की सभा के सदस्य। ई.स. 1605 से 1627 । रचना-संगीतदर्पण। चतुर्भुज ई. 15 वीं शती । रामकेलि ग्राम (बंगाल) के निवासी। पैतृक ग्राम- करंज । कवि नित्यानंद के पौत्र । "हरिचरित" (काव्य) के प्रणेता । चतुर्भुज रचना :- साहित्यशास्त्रीयः- प्रबन्धरसकल्पद्रुमः । इसमें 65 प्रस्ताव तथा एक सहस्र श्लोक हैं। कवि ने अपने परम मित्र आशकखान के पुत्र शाहस्तेखान की कृपा प्राप्त करने इसकी रचना की। शाईस्तेखान, श्रेष्ठ दर्जे के संस्कृत कवि थे। उनके 6 श्लोक इस प्रबन्ध र - रसकल्पद्रुम में हैं उद्धृत 1 चतुर्वेदस्वामी ई. 16 वीं शती । ऋग्वेद भाष्य के प्रणेता । भगवद्गीता पर परमार्थ नामक टीका सामभाष्य के लेखक देवज्ञ सूर्यपण्डित इन चतुर्वेदाचार्य अथवा चतुर्वेदस्वामी के शिष्य थे। सूर्यपण्डित का समय ई. 16 वीं शती निश्चित है, अर्थात् चतुर्वेदस्वामी का भी वही समय समझना चाहिये । चतुर्वेदाचार्य का ऋग्वेदभाष्य उपलब्ध नहीं है। चत्रवीर ई. 16 वीं शती । काशकृत्स्र के धातुपाठ पर इनकी टीका कन्नड भाषा में है। लेखक का पूरा नाम काशीकाण्ड चन्नवीर कवि था । गोत्र- अत्रि । शाखा - तैत्तिरीय । निवास- सह्याद्रि मण्डलवर्ती कुण्टिकापुर। सारस्वत व्याकरण, पुरुषसूक्त और नमक- चमक की कन्नड टीकाएं इनकी अन्य रचनाएं हैं। चन्नवीर की कन्नड़ टीका में काशकृत्स्र व्याकरण के 137 सूत्र उपलब्ध होते हैं। इसलिए संस्कृत व्याकरण के इतिहास में इनका महत्त्व माना गया है। चरक आयुर्वेद शास्त्र के विद्वान । इन्होंने आयुर्वेद पर ग्रंथ लिखा जो "चरकसंहिता" नाम से विख्यात है। चरक के जन्म के सम्बन्ध में भावप्रकाश में कथा इस प्रकार है। जब भगवान् विष्णु ने मत्स्यावतार ग्रहण कर वेदों का उद्धार किया, तब शेष भगवान् को सामवेद के साथ अथर्ववेदान्तर्गत आयुर्वेद की प्राप्ति हुई। एक बार शेष भगवान् पृथ्वी पर गुप्तचर बनकर भ्रमण कर रहे थे, तब उन्होंने असंख्य व्याधिग्रस्त लोगों को देखा। उन्हें अत्यंत पीड़ा हुई । लोगों के रोगोपशम के लिये क्या उपाय किये जायें, इस विचार से वे अत्यंत अस्वस्थ हुए। आगे उन्होंने इस कार्य के लिये पृथ्वी पर एक मुनि के यहाँ जन्म ग्रहण किया। चर के रूप में वे भूतल पर आये थे, इसलिये वे "चरक" नाम से विख्यात हुए । अग्निवेश चरक के गुरु थे। चरण वैद्य (अथवंशाखा) कौशिकसूत्र (6-37) की केशव कृत व्याख्या के अथर्व परिशिष्ट में (22-2), वायुपुराण में ( 61-69 ) तथा ब्रह्माण्डपुराण में चरण वैद्य का निर्देश मिलता है। - चरित्र सुन्दरगणी ई. 15 वीं शती । रचना - "शीलदूतम्” । मेघदूतपंक्तियों का समस्यापूर्तिरूप तत्त्वोपदेश इस खंड काव्य का विषय है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - चाणक्य ई. 4 थीं शती । इनका जन्मनाम विष्णुगुप्त था । शायद चणक के पुत्र होने के कारण इन्हें चाणक्य नाम प्राप्त हुआ और कुटिल राजनीतिज्ञ होने के कारण ये कौटिल्य कहलाए। बुन्देलखण्ड के नागोद के समीप नाचना नामक ग्राम है जिसे डा. हरिहर द्विवेदी चाणक्य का मूल स्थान बतलाते हैं। आर्य चाणक्य नाम ही सर्वाधिक प्रचलित है। ये ब्राह्मण थे। तक्षशिला में इनका विद्याध्ययन हुआ। बाद में इसी विद्यापीठ में इनकी आचार्यपद पर नियुक्ति हुई। यहीं से उनकी विद्वता की कीर्ति संपूर्ण भारतवर्ष में फैली। चाणक्य के समय भारतवर्ष गणराज्यों में विघटित था। कोई भी केन्द्रीय सत्ता नहीं थी। इस प्रकार की परिस्थिति में भारत की अखण्डता की सुरक्षा के लिये चाणक्य ने देश में सबल तथा सक्षम केन्द्रीय सत्ता की आवश्यकता अनुभव की। इसके लिये उन्होंने मगध के तेजस्वी युवक चंद्रगुप्त के नेतृत्व में क्रान्ति की योजना बनायी। For Private and Personal Use Only विशाखदत्त ने अपने मुद्राराक्षस नामक प्रसिद्ध नाटक में चाणक्य का चरित्र चित्रण करने का सफल प्रयास किया है। वही उनका प्रसिद्ध चरित्र माना जाता है। इतिहास तज्ञों के मतानुसार चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में मगध में शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता स्थापित कर भारत की अखण्डता की रक्षा की। चाणक्य का यह महान् कार्य भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा गया। चाणक्य का दूसरा महान् कार्य राजनीतिविषयक एक अतुलनीय ग्रंथ "अर्थशास्त्र" की रचना यह ग्रन्थ भारतीय राजनीति का आदर्श है। संस्कृत के शास्त्रीय वाङ्मय में यह अतुलनीय है। इस ग्रंथ के पन्द्रह प्रकरणों में राज्यव्यवहार संबंधी 180 विषयों की चर्चा की गयी है 1 मगध साम्राज्य के महामन्त्री बनने के पश्चात् भी चाणक्य संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड / 319 -
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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