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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शास्त्री। इन्होंने एम.ए.डी.लिट., एलएल.बी. की उपाधियां प्राप्त कारण ये अध्ययनार्थ पैदल ही काशी पहुंचे और अनेक संकटों की। ये साहित्याचार्य व साहित्यरत्न भी थे। अध्यापन आपका का सामना करते हुए साहित्याचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण हुए। प्रमुख कार्य है। आप हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के दर्शन जयपुर के राजकुमार के शिक्षक बनकर जयपुर गये। देश के विभाग के अध्यक्ष रहे हैं। आपके ग्रंथ हैं : 1. श्रद्धाभरणम् विभिन्न भागों की उपदेशक के रूप में यात्रा करने पर अनेक (खण्डकाव्य)। इस पर उत्तरप्रदेश राज्य द्वारा पुरस्कार प्रदान कटु अनुभव आये। फलस्वरूप आजीवन नौकरी या परवशता किया गया है। 2. स्तोत्रत्रयो, 3. 16 वीं शताब्दी के अप्रकाशित से दूर रहने का संकल्प किया। स्वतंत्र लेखन ही आजीविका सुर्जनचरितमहाकाव्यम् का हिन्दी अनुवाद तथा संस्कृत टिप्पणी का एकमात्र साधन रहा। 1913 में "शारदा' पत्रिका के सहित प्रथम बार संपादन व प्रकाशन आपने कराया। सम्पादन कार्य का प्रारंभ किया। “दरिद्रकथा" उनकी स्वाभाविक चन्द्रभूषण शर्मा - रचना-जीवितवृत्तांत (संस्कृत विद्यालय प्रवृत्ति का द्योतक थी। निःशुल्क शिक्षा के कट्टर समर्थक वाराणसी के विद्वान आचार्य पं. बेचनराम का चरित्र)। होने के कारण शिक्षा से कभी कमाई नहीं की। ये धार्मिक चन्द्रमोहन घोष - ई. 20 वीं शती। कृति-छन्दःसारसंग्रह। प्रवृत्ति के थे, तथा संस्कृत भाषा के प्रचारार्थ सतत प्रयास करते रहे। चन्द्रशेखर - उत्कल निवासी। उत्कलनरेश गणपति वीरकेसरी चन्द्रशेखर सरस्वती - 18 वीं शती। कांची-कामकोटी के देव (1736-1773 ई.) का समाश्रय प्राप्त। पिता-गोपीनाथ । शांकरपीठ के 63 वें आचार्य। रचना - (1) गीतगंगाधरम् पिता तथा पुत्र दोनों राजगुरु। दोनों धर्माचार्य तथा यज्ञसम्पादन (2) शिवगीतमालिका। प्रेमी। पिता ने सप्तसोम तथा वाजपेय यज्ञ किये। पुत्र ने चंद्रसेन - ज्योतिषशास्त्र के एक आचार्य। समय ई. 7 वीं चयनयज्ञ किया। इसी कारण “चयनीचन्द्रशेखर" की उपाधि शताब्दी। कर्नाटक प्रान्त के निवासी। “केवलज्ञानहोरा' नामक से समलंकृत। न्यायशास्त्र के पण्डित। "मधुरानिरुद्ध" नामक ग्रंथ के प्रणेता। इन्होंने अपने इस ग्रंथ में बीच-बीच में कन्नड आठ अंकों के नाटक के रचयिता। भाषा का भी प्रयोग किया है। यह अपने विषय का विशालकाय चन्द्रर्षिमहत्तर - विद्वानों ने ऋषि शब्दान्त नाम के कारण, ग्रंथ है। इसमें 4 हजार के लगभग श्लोक हैं। विषय सूचि समय विक्रम की नवीं दसवीं शताब्दी माना है। ग्रंथ- पंचसंग्रह के अनुसार यह रचना होरा विषयक न होकर संहिता विषयक (मूल ग्रंथ प्राकृत में) । लगभग 1000 गाथाएं। योग, उपयोग, रचना सिद्ध होती है। ग्रंथ के प्रारंभ में चंद्रसेन ने स्वयं अपनी गुणस्थान, कर्मबन्ध, बन्धहेतु, उदय, सत्ता, बंधनादि आठ करण प्रशंसा की है। आदि विषयों का विवेचन। ग्रंथकार की वोपज्ञवृत्ति संस्कृत में। चक्र कवि - समय ई. 17 वीं सदी का अंतिम चरण । 9000 श्लोक प्रमाण। स्वोपज्ञवृत्ति के अन्त में आचार्य ने _ "द्रौपदीपरिणय-चम्पू", "रुक्मिणीपरिणय", "जानकीपरिणय", अपने को पार्श्वर्षि का पादसेवक अर्थात् शिष्य बताया है। "पार्वतीपरिणय" व "चित्ररत्नाकर" नामक ग्रंथों के प्रणेता। "पार्श्वर्षः पादसेवातः कृतं शास्त्रमिदं मया"। पिता अंबा लोकनाथ । माता- अंबा। पांड्य व चेर नरेश के चंद्रशेखर - रसवादी आचार्य (महापात्र) कविराज विश्वनाथ सभाकवि। "द्रौपदीपरिणय-चंपू" के प्रत्येक अध्याय में इन्होंने के पिता। उत्कल के प्रतिष्ठित पंडितकुल में जन्म। आप अपना परिचय दिया है। "द्रौपदीपरिणय-चम्पू", "जानकीपरिणय" विद्वान्, कवि व संधिविग्रहिक थे। इन्होंने "पुष्पमाला" व और "चित्ररत्नाकर' प्रकाशित हो चुके हैं। "भाषार्णव" नामक ग्रंथों का प्रणयन किया था। इन ग्रंथों का चक्रपाणि दत्त : 1- चक्रपाणि का समय 11 वीं शताब्दी उल्लेख, इनके पुत्र विश्वनाथ द्वारा प्रणीत "साहित्यदर्पण' नामक है। पिता का नाम नारायण जो गौडाधिपति नयपाल (1038-1055 सुप्रसिद्ध ग्रंथ में है। ई.) की पाकशाला के अधिकारी थे। आयुर्वेदशास्त्र के प्रसिद्ध चन्द्रशेखर (पं) (गौडमित्र) - ई. 17 वीं शती का पूर्वार्ध। ग्रंथ "चक्रदत्त" के प्रणेता। वीरभूम (बंगाल) के निवासी। वैद्य। पिता- जनमित्र । “सुर्जनचरित' नामक एकमात्र प्रसिद्ध इन्होंने वैद्यक ग्रंथों के अतिरिक्त शिशुपाल वध, कादंबरी, महाकाव्य के प्रणेता। कवि ने इस काव्य की रचना अपने दशकुमारचरित व न्यायसूत्र की टीकाएं लिखी हैं। इनके आश्रयदाता बूंदी के राजा राव सुर्जन के आदेश पर की थी। चिकित्साशास्त्र विषयक ग्रंथों के नाम हैं : वैद्यककोष, आयुर्वेदइस काव्य के 20 सर्ग हैं जिनमें कवि के आश्रयदाता राव दीपिका। (चरकसंहिता की टीका), भानुमती (सुश्रुत की टीका) सुर्जन का चरित्र ग्रथित है। द्रव्य-गुण-संग्रह, चिकित्सासार-संग्रह । व्यंग्य-दरिद्रशुभंकरणम् एवं चंद्रशेखर भट्ट - ई. 16 वीं शती। कृति-वृत्तमौक्तिकम् चक्रदत्त (चिकित्सासंग्रह)। (छन्दशास्त्र विषयक)। बंगाल के निवासी। 2- रचना - प्रक्रियाप्रदीपः (प्रक्रियाकौमुदी की व्याख्या)। चन्द्रशेखर शास्त्री - स. 1884-1934 ई.। इनका जन्म बिहार इस लेखक ने प्रौढमनोरमा का खण्डन भी एक ग्रंथद्वारा किया के आरा जिले में निमेज गांव में हुआ। पिता शंकरदयाल है। वह ग्रंथ अनुपलब्ध है। ओझा। परिवार के सदस्यों की शिक्षा के प्रति उदासीनता के चक्रवर्ती राजगोपाल - समय 1882-1934 ई.। 318/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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