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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उर्दू-साहित्य का भी गहन ज्ञान। छात्रावस्था में ही पतितोद्धार-मीमांसा नामक प्रबंध लेखन (विषय-पतित हिन्दुओं का उद्धार)। हौत्रध्वान्त-दिवाकरः तथा सापिण्डयभास्करः नामक दो शास्त्रीय प्रबन्ध। वाचकस्तवः नामक काव्य विद्यार्थी दशा में, तथा "हरहरीयम्" श्लेषगर्भ काव्य प्रौढावस्था में। उसकी पाण्डित्य तथा प्रतिभापूर्ण टीका स्वलिखित । लोकमान्य तिलकजी से वैदिक संशोधन की स्फूर्ति। ऋग्वेद के मराठी अनुवाद में लिखित टिप्पणियों से उनका अधिकार ज्ञात होता है। वेदविषयक मराठी लेख उनके शिष्य साहित्याचार्य बालशास्त्री हरदास (नागपुर) द्वारा ई. 1949 में प्रकाशित। अनपत्य मृत्यु से घुले वंश की विद्वत्-परंपरा खण्डित । "हरहरीयम्- "काव्य सन् 1953 में नागपुर की संस्कृत-भवितव्यम् पत्रिका में क्रमशः प्रकाशित। चण्डिकाप्रसाद शुक्ल (डॉ.) - ई. 20 वीं शती। एम.ए.डी.लिट्. । प्रयाग वि. वि. के प्रवाचक "वीरवदान्य" तथा “तापसधनंजय" नामक नाटकों के प्रणेता। चण्डीदास मुखोपाध्याय - ई. 13 वीं शती के लगभग। बंगाली ब्राह्मण। गंगातटवर्ती केतुग्राम (उद्धारणपुर के पास) के निवासी। कृति-काव्यप्रकाश-दीपिका। चण्डेश्वर - मिथिला-नरेश हरिसिंह देव के मंत्री। पिता-वीरेश्वर । पितामह-देवादित्य। समय 14 वीं शताब्दी का प्रथम चरण।। चण्डेश्वर ने “निबंध-रत्नाकर' नामक विशाल ग्रंथ की रचना की है। इनकी अन्य कृतियां हैं : राजनीति-रत्नाकर, शिव-वाक्यावली एवं देव-वाक्यावली। इन्होंने राजनीति-रत्नाकर के विषयों का चयन करते समय धर्मशास्त्रों, रामायण, महाभारत तथा नीतिग्रंथों के वचनों को भी उद्धृत किया है। राज्य का स्वरूप, राज्य की उत्पत्ति, राजा की आवश्यकता व उसकी योग्यता, राजा के भेद, उत्तराधिकार-विधि, अमात्य की आवश्यकता, मंत्रणा, पुरोहित, सभा, दुर्ग, कोष, शक्ति, बल, बल-भेद, सेना के पदाधिकारी, मित्र, अनुजीवी, दूत, चर, प्रतिहार, षाड्गुण्य मंत्र आदि विषयों पर इन्होंने अपने विद्वत्तापूर्ण विचार व्यक्त किये हैं यथा - "प्रजारक्षको राजेत्यर्थः। राजशब्दोऽपि नात्र क्षत्रिय-जातिपरः। अमात्यं विना राज्यकार्य न निर्वहति । बहुभिः सह न मंत्रयेत्।" । चन्द्रकान्त तर्कालंकार (म.म.) - सन् 1836-1908 । बंगाली विद्वान्। कृतियां-सतीपरिणय (काव्य), चन्द्रवंश (महाकाव्य), कातन्त्रछन्दःप्रक्रिया (व्याकरण), कौमुदी-सुधाकर (प्रकरण) और अलंकार-सूत्र (साहित्यशास्त्र)। ___ दर्शन, धर्म व काव्य की सर्वोच्च शिक्षा पाकर कलकत्ते के राजकीय संस्कृत महाविद्यालय में अध्यापक। "महामहोपाध्याय" तथा "तर्कालंकार" की उपाधियों से अलंकृत। कई ग्रंथों का मुद्रणव्यय स्वयं वहन किया। फिर धनाभाव से चिंतित । तब सेरपुर के हरचन्द्र चतुर्धरीण द्वारा आपके सभी ग्रंथ प्रकाशित हुए। चंद्रकीर्ति (बौद्धपंथी) - जन्म दक्षिण में स्थित समन्त नामक स्थान में। बाल्यकाल से ही आप प्रतिभासम्पन्न थे। बौद्ध मत स्वीकार करने के बाद, शीघ्र ही संपूर्ण पिटकों का अध्ययन संपन्न किया। आचार्य कमलबुद्धि द्वारा नागार्जुन की कृतियों का ज्ञान प्राप्त किया। आचार्य चन्द्रगोमिन् के प्रतिद्वन्दी माने जाते हैं। प्रासंगिक मत के समर्थक। ई. 7 वीं शती में माध्यमिक संप्रदाय के प्रतिनिधि माने जाते थे। दक्षिण भारतीय बुद्धिपालित नामक विद्वान् के शिष्य कमलबुद्धि के शिष्य । महायान दर्शन के प्रकांड पंडित माने जाते हैं। इन्हें नालंदा महाविहार में अध्यापक का पद प्राप्त हुआ था। इनके द्वारा रचित 3 ग्रंथ प्रसिद्ध हैं: (1) माध्यमिकावतार - इसका मूल रूप प्राप्त नहीं होता, किन्तु तिब्बती भाषा में इसका अनुवाद प्राप्त है। इसमें चंद्रकीर्ति ने शून्यवाद का विशद विवेचन प्रस्तुत किया है। (2) प्रसन्नपदा - यह मौलिक ग्रंथ न होकर, नागार्जुनरचित "माध्यमिककारिका" की टीका है। (3) चतुःशतक-टीका- यह आर्यदेवरचित चतुःशतक नामक ग्रंथ की टीका है। चन्द्रकीर्ति (जैन पंथी) - काष्ठासंध, नन्दीतरगच्छ, विद्यागण के भट्टारक श्रीभूषण के पट्टधर शिष्य। मतप्रचारार्थ दक्षिण यात्रा की। "वादिविजेता" इस उपाधि से भूषित। 17 वीं शती। रचनाएं : पार्श्वनाथपुराण (15 सर्ग, 2715 श्लोक), 2 ऋषभदेवपुराण (25 सर्ग), 3 कथाकोश, 4 पाण्डवपुराण, 5 नन्दीश्वरपूजा आदि चन्द्रगोमिन् - बंगाली क्षत्रिय कुल में जन्म। गुरु-स्थिरमति । चन्द्रकीर्ति के प्रतिपक्षी तथा समकालीन । बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न । बौद्धसाहित्य में दार्शनिक, वैयाकरण तथा कवि के रूप में ख्यात। स्तुतिकाव्य तथा नाट्यरचनाकार। ईत्सिंग ने (673 ई.) इनका एक पवित्र धार्मिक व्यक्ति तथा बोधिसत्त्वरूप में उल्लेख किया है। साथ ही इन्हें युवराज विश्वन्तर से सम्बद्ध संगीत नाटककार बताया है। राजतरंगिणिकार ने इन्हें महाभाष्य का पुनरुद्धारक माना है। इन्होंने व्याकरण में नये संप्रदाय की स्थापना की, जिसे चान्द्रव्याकरण कहते हैं। बौद्ध योगाचारसंप्रदाय के श्रेष्ठ विद्वान, वसुबन्धु के प्रशिष्य तथा स्थिरमति के शिष्य माने जाते हैं। तारादेवी के अनन्य भक्त। रचनाएं - शिष्यलेखधर्म काव्य, आर्यसाधनशतक, आर्य तारान्तर-बलिविधि (तारासाधकशतक) लोकानन्द (नाटक) और चान्द्रव्याकरण। इन्होंने दक्षिण भारत तथा लंका की यात्रा की थी। संस्कृत में बौद्ध धर्मविषयक छोटे बडे 60 ग्रंथों का प्रणयन किया। इन ग्रंथों का तिब्बती भोट भाषा में अनुवाद हुआ है। "ब" तथा "व" का समान उच्चारण मानना, इनके बंगाली होने की पुष्टि करता है। चन्द्रधर शर्मा - जन्म 11 जनवरी, 1920 ई. को। पिता-कृष्णदत्त संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 317 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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