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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra एक साधारणसी पर्णकुटी में ही ऋषि के समान निवास किया करते थे, राजप्रासाद में नहीं। I अवंती क्षेत्र में क्षिप्रा तथा चामला नदियों के संगम पर स्थित शंखोद्धार स्थान पर 82 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हुई। चामुण्डराव मूल नाम गोम्मट अथवा गोम्मटराय। ई. 10 वीं शती । माता- कालिकादेवी । पिता गंगवंश के राज्याधिकारी । महाराज मानसिंह तथा राजमल्ल द्वितीय के प्रधानमंत्री । ब्रह्मक्षत्रिय वंश । गुरु- अजितसेन तथा नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती। कन्नड और संस्कृत के विद्वान प्रसिद्ध योद्धा और सेनापति कर्नाटक में श्रवण बेलगोल के विन्ध्यगिरि पर्वत पर भगवान् बाहुबलि की 57 फीट ऊंची विशाल काय मूर्ति का निर्माण (ई. 981 में) एवं चन्द्रगिरि पर एक जैन मंदिर का भी निर्माण कराया। पुत्र - जिनदेव | ग्रंथ - चरित्रसार (चार प्रकरण) चारलु भाष्यकार शास्त्री समय 20 शर्तों का पूर्वार्ध । रचना कंकणबन्ध रामायण । यह रामायण एक ही श्लोक का है, और उस श्लोक के 128 अर्थ निकलते हैं। आचर्यकारक तथा क्लिष्ट रचना का यह नमूना है। कवि आंध्र में कृष्णा जिले के काकरपारती ग्राम निवासी थे। - - www.kobatirth.org · 1 चारायण पाणिनि पूर्वकालीन एक वैयाकरण पं. युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार, इनका समय ई. पू. 4 थी शती । ये वेद व्याख्याता, वैयाकरण व साहित्य शास्त्री थे। "लोगाक्षिगृह्यसूत्र” के व्याख्याता देवपाल (5-1) की टीका में चारायण ( अपरनाम चारायणि) का एक सूत्र व्याख्यासहित उद्धृत है । इनका उल्लेख "महाभाष्य" (1-1-73) में पाणिनि व रोढि के साथ किया गया है । वात्स्यायन - कामसूत्र व कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र (5-5) में भी किसी चारायण आचार्य के मत का उल्लेख है। चारायण को "कृष्ण यजुर्वेद" की "चारायणीय शाखा" का रचयिता भी माना जाता है, जिसका "चाराणीय मंत्रार्षाध्याय" नामक अंश उपलब्ध है। इनके अन्य ग्रंथ हैं- चारायणीयशिक्षा व चारायणीय संहिता इन्होंने साहित्य - शास्त्र संबंधी किसी ग्रंथ की भी रचना की थी, जिसका उल्लेख सागरनंदी कृत "नाटक- लक्षण - रत्नकोश" में है। चारुचन्द्र रायचौधुरी ई. 19-20 शती। बंगाली। एकवीरोपाख्यान (गद्य) के लेखक । चार्वाक ई. पूर्व 23 वीं शताब्दी युधिष्ठिर शक 661 प्रभवनाम संवत्सर में वैशाख पौर्णिमा को दोपहर में जन्म तथा युधिष्ठिर शक 727 में पुष्करतीर्थ के समीप यज्ञगिरि नामक पर्वत पर इनकी मृत्यु मानी जाती है। पिता इंदुकांत माता स्वग्विणी । ई. 8 वीं शताब्दी से साहित्य में चार्वाक का नाम अनेक बार आया है। प्रबोधचंद्रोदय नाटक में उल्लेख है कि लोकायत दर्शन के संस्थापक बृहस्पति के चार्वाक शिष्य थे। माधवाचार्य अपने सर्वदर्शनसंग्रह में चार्वाक का उल्लेख, "नास्तिकशिरोमणि" विशेषण से करते हैं। उसी ग्रंथ में चार्वाक 320 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड दर्शन का परिचय मिलता है। महाभारत में एक संन्यासी चार्वाक का उल्लेख आता है। (शांति 37, 38, शल्य 65 ) । भारतीय युद्ध की समाप्ति पर जब युधिष्ठिर अश्वमेध यज्ञ की तैयारी कर रहे थे, तब चार्वाक ने वहां उपस्थित होकर उनसे पूछा "रक्तपात कर और बांधवों की हत्या कर तुमने यह जो विजय पायी है, उसे सच्ची विजय कहा जायेगा क्या?" इस प्रश्न से वहां एकत्रित ब्रह्मवृंद कहने लगा "यह दुर्योधन का मित्र चार्वाक, मनुष्य न होकर यतिवेषधारी राक्षस है"। उस पर कृष्ण ने कहा "यह श्रेष्ठ तपस्वी है, परंतु ब्राह्मणों का अपमान करने के कारण इसे शाप मिला है कि इसकी मृत्यु ब्राह्मणों द्वारा ही होगी।" तदनुसार आगे चलकर, चार्वाक की मृत्यु ब्रह्मतेज से दग्ध होकर ही हुई । महाभारत के शल्य पर्व में चार्वाक का उल्लेख इस प्रकार है : जब दुर्योधन ने देखा कि उसका विनाशकाल सन्निकट है, तब उसे अपने परिव्राजक मित्र चार्वाक का स्मरण होता है । उसके मन में विश्वास होता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् चार्वाक ही उसका वीरोचित अंत्यसंस्कार करेगा। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रा. आठवले इनका आविर्भावकाल, ई. 2 री शती से 7 वीं शती के बीच मानते हैं । चिन्तानरसिंह- गोदावरी (आव) जिले के येनुगुमहल के (आन्ध्र) निवासी । गणित, ज्योतिष आदि के जानकार पण्डित । बहुत काल तक विजयनगर के राजा के आश्रित जीवन के उत्तरार्ध में संन्यास लिया । रचना चित्सूर्योदय नाटक । चिन्तामणि - ई. 16 वीं शती (उत्तरार्ध) । संभवतः शेषवंशीय तथा नृसिंह के पुत्र । पिता- गोदावरी परिसर छोड़ काशी में जा बसे थे। चिंतामणि ने वहां तण्डनवंशीय राजा गोविन्दचन्द्र के आश्रय में "गोविन्दार्णव' नामक धर्मशास्त्रीय ग्रंथ की रचना की। महाभाष्य कैयटप्रकाश के प्रणयन द्वारा इन्होंने काशी में वैयाकरण परम्परा की स्थापना की, जिसमें आगे चलकर भट्टोजी तथा नागोजी आदि विद्वान् हुए। भाई शेषकृष्ण को काशिराज गोवर्धनधारी का आश्रयप्राप्त था। = - अन्य कृतियां- 1) रसमंजरीपरिमल, 2) रुक्मिणीहरण (नाटक), जिसका गुजराती अनुवाद मुंबई से 1873 ई. में प्रकाशित हो चुका है। चिंतामणिकृत "महाभाष्य-कैपटप्रकाश", बीकानेर के अनूप सं. पुस्तकालय में विद्यमान है। चिन्तामणि ज्योतिर्विद् गोविन्दपुत्र शिवपुर निवासी रचना 1630 ) । प्रस्तार - चिन्तामणि (ई. चिन्तामणि दीक्षित सातारा (महाराष्ट्र) के निवासी। रचनाएं - सूर्यसिद्धान्तसारिणी और गोलानन्दः । चिट्टिगुडुर वरदाचारियर- चिट्टिगुडर (आन्ध्र) नरसिंह संस्कृत कलाशाला के संस्थापक रचनाएं- वामनशतकम्, की For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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