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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गोतम एक वैदिक ऋषि । पिता रहुगण । शतपथ के अनुसार ये राजा जनक और ऋषि याज्ञवल्वय के समकालीन थे (शतपथ ब्राह्मण 11.4.3.20 ) । अथर्ववेद में भी इनका दो बार उल्लेख आता है। (4.29.6.18.3.16 ) । इन्हें वामदेव और नोधा नामक दो पुत्र थे । ऋग्वेदा रक्षोघ्न अग्नि का सूक्त (ऋ. 4.4) गौतम से उनके पुत्र वामदेव को प्राप्त हुआ था (ऋ. 4.4.11)। सत्कृत्य और भक्ति के संयोग से अंगिरस द्वारा प्रथम अग्नि निर्माण किया ऐसा इसने उल्लेख किया है (इ.ऋ. 83.4 ) । इन्होंने गौतम और भद्र नामक प्रसिद्ध सामों की रचना की। ये एक स्तोम के कर्ता हैं। इनकी गणना सप्तर्षियों में होती है। प्रत्येक मंगलकार्य में गौतम के निम्न मंत्र का पठन किया जाता है. स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।। (ऋ. 1.89.6) अर्थ-ज्ञानसंपन्न इंद्र, सर्वज्ञ पूषा, जिसके रथ की गति अप्रतिहत है ऐसे तार्क्ष्य तथा बृहस्पति हमारा मंगल करें। इनके विषय में प्रचलित दो आख्यायिकाओं में से एक इस प्रकार है सरस्वती नदी के किनारे विदेघमाधव अपने पुरोहित गौतम के साथ रहते थे। एक दिन विदेघमाधव के मुख से वैश्वानर- अग्नि पृथ्वी पर गिर पड़ा। वह अग्नि सभी वस्तुओं को भस्म करता हुआ पूर्व दिशा की और बढ़ता गया । विदेघमाधव और गौतम ने उसका पीछा किया। वैश्वानर- अग्नि की गति सदानीरा नदी के तट पर पहुंचते ही रुक गई। विदेघमाधव ने अग्नि से पूछा “अब में कहां रहूं? अग्नि ने उत्तर दिया- "इस सदानीरा नदी की पूर्व दिशा में तुम रहो"। विदेघमाधव वहीं रहने लगे। तब से उस क्षेत्र का नाम विदेह हुआ। (श.ब्रा. 1.4.1.10 ) । इस आख्यायिका का महत्त्व ऐतिहासिक है। इससे सूचित होता है, कि विदेषमाधव व गौतम द्वारा यज्ञप्रधान आर्य-संस्कृति का विस्तार पूर्व दिशा की ओर हुआ। ऋग्वेद में गौतम के अनेक सूक्त हैं (1.74-93, 9.31, 9.67 आदि) । गोदावर्मा (गोदवर्मा) जन्त - 1800 ई. । नम्पूतिरि ब्राह्मण । व्याकरण, ज्योतिष, हस्तिशास्त्र व धर्मशास्त्र में प्रवीण केरल के युवराज, परंतु विरक्त प्रवृत्ति । कृतियां महेन्द्रविजय (महाकाव्य) जो वाल्कुद्भव के नाम से भी ज्ञात है। त्रिपुरदहन (लघु काव्य), रससदन (भाण), रामचरित (महाकाव्य), जिसके 13 सर्गों की रचना के बाद 312 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड इनकी मृत्यु होने से, उनके वंशज रामवर्मा ने उसे 40 सर्गो में पूर्ण किया। दशावतार दण्डक (स्तोत्र ) तथा अन्य नौ स्तोत्रग्रन्थ और सुधानंदलहरी । सभी ग्रंथ मुद्रित हो चुके हैं। गोपाल - राजधर्म के निबंधकार । इन्होंने "राजनीति - कामधेनु” नामक निबंध ग्रंथ का प्रणयन किया था, जो संप्रति अनुपलब्ध है। इनका समय 1000 ई. के आसपास है। राजनीति-निबंधकारों में गोपाल सर्वप्रथम निबंधकार के रूप मे आते हैं। चंडेश्वरकृत "राजनीति - रत्नाकर" व "निबंध - रत्नाकर" में गोपाल की चर्चा की गई है। गोपाल चक्रवर्ती - ई. 17 वीं शती । कुलनाम- वंद्यघटीय । पिता दुर्गादास कृतिया अमरकोश तथा चण्डीशतक पर टीकाएं। गोपाल शास्त्री ई. 19-20 वीं शती विशाखापट्टनम् के निवासी । "सीतारामाभ्युदय" नामक काव्य के प्रणेता । गोपाल शास्त्री 20 वीं शती काशी के निवासी। ई. । व्याकरणाचार्य, साहित्याचार्य व न्यायतीर्थ । सन् 1921 से 1947 तक काशी- विद्यापीठ में दर्शन के आचार्य । भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में कारावास । वृद्धावस्था में ज्योतिर्मठस्थ बदरीनाथ वेद-वेदांग महाविद्यालय के प्रधानाचार्य । "पण्डितराज", "दर्शनकेसरी" तथा " महामहाध्यापक" - उपाधियों से अलंकृत । कृतियां - नारीजागरण, गोमहिमाभिनय तथा पाणिनीय नामक नाटक । गोपालसेन कविराज ई. 17 वीं शती सेनभूम (बंगाल) के निवासी । "योगामृत" ग्रंथ के कर्ता । गोपीनाथ कविभूषण - करणवंशीय वासुदेव पात्र के पुत्र । पिता - वासुदेव, खिमिन्डी के गजपति जगन्नाथ नारायण के राजवैद्य । समय- ई. 1766 से 1806 रचनाएं कविचिन्तामणि और रामचन्द्र-विहार (काव्य) । गोपीनाथ चक्रवर्ती- "कौतुकसर्वस्व" (प्रहसन) के प्रणेता। समय 18 वीं शती उत्तरार्ध । गोपीनाथ दाधीच जन्म सन् 1810 के लगभग । जयपुर नरेश सवाई माधवसिंह (सन् 1880-1922) का समाश्रय प्राप्त । आचार्य जीवनाथ ओझा से व्याकरण, न्याय, साहित्य, वेदान्त की शिक्षा। बाद में जयपुर के संस्कृत विद्यालय में अध्यापक कृतियां माधव-स्वातंत्र्य (नाटक), वृत्त- चिन्तामणि, शिवपदमाला, स्वानुभवाष्टक, राम सौभाग्य शतक, स्वजीवन-चरित, आनन्द- रघुनन्दन, यशवन्त प्रताप प्रशस्ति, नीति- दृष्टांत - पंचाशिका आदि 23 संस्कृत ग्रंथ । सत्य-विजय तथा समय-परिवर्तन नामक दो हिन्दी नाटक | गोपीनाथ मौनी ई. 17 वीं शती रचनाएं शब्दालोकरहस्यम्, उज्वला (तर्कभाषा टीका) और पदार्थ-विवेक-टीका। - For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - गोपेन्द्र तिम्म भूपाल- शाल्व वंशीय विजयनगर के राजा । ई. 15 वीं शती । रचना - वामन के काव्यालंकारसूत्र की टीका एवं तालदीपिका ।
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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