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गोपेन्द्रनाथ गोस्वामी - ई. 20 वीं शती। बंगाली । “पादप-दूत" । गोवर्धन - (1) ई. 16 वीं शती। नैयायिक। इन्होंने के रचयिता।
केशवमिश्र के तर्कभाषा नामक ग्रन्थ पर तर्कभाषाप्रकाश नामक गोपेश्वर- सं. 1836-1897। इन्होंने पुष्टिमार्गीय पुरूषोत्तमजी टीका लिखी है। के "भाष्य-प्रकाश" पर "रश्मि" नामक व्याख्या लिखी है। (2) बंगाल में भी इसी नाम के एक व्यक्ति हुए जिन्होंने गोयीचन्द्र- जौमर-व्याकरण-परिशिष्ट के रचनाकार । "पुराणसर्वस्व" नामक ग्रन्थ लिखा है। जौमर-व्याकरण के खिल पाठ की वृत्ति लिखी। इस गोयीचन्द्र (3) द्रौपदीवस्त्रहरणम् के लेखक कृत वृत्ति की 6 व्याख्याकारों ने व्याख्या रची है।
(4) मधुकेलिवल्ली के लेखक गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) - इनके अविर्भाव-काल के संबंध गोवर्धनाचार्य - "आर्या-सप्तशती" नामक श्रृंगार प्रधान मुक्तक में मतभेद हैं। कुछ विद्वान इनका समय ई. 11-12 शताब्दी काव्य के रचयिता। पिता-नीलांबर सोमयाजी। बंगाल के राजा में मानते है। इनके जन्म तथा वर्ण के संबंध में मतमतान्तर लक्ष्मणसेन के आश्रित कवि। समय- 1075-1125 ई. । इन्होंने हैं। डॉ. मोहनसिंह इन्हें विधवा की अवैध सन्तान बताते हैं। अपने आश्रयदाता का उल्लेख अपने ग्रन्थ में इस प्रकार किया है। गोरक्षसिद्धान्तसंग्रह में इन्हें “ईश्वरी सन्तान" कहा गया है,
सकलकलाः कल्पयितुं प्रभुः प्रबंधस्य कुमुदबंधोश्च । जिसका अर्थ है अनौरस सन्तान। मतिरत्नाकर के अनुसार ये
सेनकुलतिलकभूपतिरेको राकाप्रदोषश्च ।।39 ।। शूद्र हैं। डा. द्विवेदी इनका जन्म ब्राह्मण-कुल में बताते हैं।
अपने काव्य की प्रशंसा करते हुए वे कहते हैं - डा. रा.चिं. ढेरे के मतानुसार इनका जन्म दक्षिण में बसे हुए
मसणपदरीतिगतयः सज्जनहृदयाभिसारिकाः सुरसाः । काश्मीरी ब्राह्मण पण्डित के कुल में हुआ है। गोरक्षनाथ अत्यंत विरक्त पुरुष थे। ज्ञानेश्वर महाराज उन्हें “विषयविध्वंसकवीर"
मदनाद्वयोपनिषदो विशदा गोवर्धनस्यार्याः ।।51 ।। विशेषण से सम्बोधित करते हैं।
आर्यावृत्त में रचित 756 श्लोकों की "आर्यासप्तशती" में इनके प्रमुख शिष्य थे- महाराष्ट्र के अमरनाथ और गहिनीनाथ,
कहीं कहीं श्रृंगार का चित्रण पराकाष्टा पर पहुंच गया है, उज्जयिनी के राजा भर्तृहरि, बंगाल के राजा गोपीचन्द्र और
जिसकी आलोचकों ने निंदा की है। अन्योक्ति का प्रयोग प्रायः
नीतिविषयक कथनों में ही किया जाता रहा है पर इन्होंने विमला देवी।
श्रृंगारात्मक संदर्भो में भी इसका प्रयोग ऐसी कुशलता के साथ इनके संस्कृत ग्रन्थः- अमनस्व, अमरौघ, प्रबोध, गोरक्षपद्धति,
किया है कि कलाप्रियता व शब्दवैचित्र्य उनका साथ नहीं छोडते। गोरक्षसंहिता, योगमार्तण्ड, गोरक्षकल्प, अवधूतगीता, गोरक्षगीता आदि।
"गीतगोविंद" के रचयिता कवि जयदेव इनकी प्रशंसा इस गोरक्षनाथ ने ईश्वरोपासना में देश, काल, धर्म, वंश, जाति प्रकार करते हैं - के बन्धनों को त्याज्य माना, और वह बात अपने आचरण "श्रृंगारोत्तरसत्प्रमेयरचनैराचार्यगोवर्धन । स्पर्धी कोऽपि न विश्रुतः" ।। से सिद्ध कर दिखाई। इनके शिष्यों में हिन्दू और मुसलमान अर्थ - श्रृंगारप्रधान कविता करने में आचार्य गोवर्धन के दोनों थे। बाबा रतन हाजी इनका प्रमुख मुसलमान अनुयायी साथ प्रतिद्वन्द्विता कर सकने वाला दूसरा कोई सुना नहीं। था। आज भी नाथ सम्प्रदाय की रावल शाखा में मुसलमान इनके दो शिष्यों के नाम है - उदयन और बलभद्र । बहुसंख्यांक हैं। स्त्रियां तथा अन्त्यज भी इनके अनुयायी थे।
गोविंद - (1) समय - 13 वीं शती। इनकी शिष्या विमलादेवी तथा मयनावती नामक दो महिलाएं
रचना-रागताल-पारिजात-प्रकाश। इस ग्रंथ में शाङ्गदेव का थीं। बंगाल के हडिपा नामक अंत्यज भी, जो आगे चल कर।
उल्लेख मिलता है। जालन्दरनाथ नाम से विख्यात हुए, इनके अनुयायी थे।
(2) समय - ई. 15 वीं शती। जाति-अग्रवाल। गोत्र-गर्ग। अखिल भारतीय स्तर पर मत-प्रसारार्थ, गोरखनाथ द्वारा
पिता- साहु। माता- पद्मश्री। ग्रंथ- पुरुषार्थानुशासन । ग्रंथस्थ लोकभाषा विशेषतः हिन्दी को अपनाया गया। आगे चल कर
प्रशस्ति के अनुसार यह ग्रंथ कायस्थ लक्ष्मण की प्रेरणा से अन्य साधुसन्तों ने उन्हीं से प्रेरणा प्राप्त कर लोकभाषा को
निर्मित हुआ। ही अपने विचार-प्रसार का माध्यम बनाया, यह विशेष लक्षणीय
(3) श्रीनिवासपुत्र। रचना कृष्णचन्द्रोदयः।। बात है। गोरखनाथ वर्णाश्रम के कट्टर विरोधक थे। वे गोविन्दकान्त विद्याभूषण - ई. 19-20 शती। गौड बारेन्द्र। शब्द-प्रामाण्य के स्थान पर आत्मानुभूतिप्रामाण्य को महत्त्व देते थे। पिता - श्रीकान्त। शालिखा ग्राम (बंगाल) के निवासी। गोलोकनाथ बंद्योपाध्याय- ई. 19 वीं शती। जियाराखी
"लघुभारत" के कर्ता। (बंगाल) के निवासी। कृतियां- देव्यागमन तथा हीरकजुबिली- गोविन्द खन्ना न्यायवागीश - ई. 17 वीं शती। रचनाएं - काव्य।
न्यायसंक्षेप, पदार्थखण्डन-व्याख्या और समासवाद ।
संस्कृत बाइपय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 313
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